मौलिक अधिकार

मौलिक अधिकार    – संविधान का भाग 3 (अनुच्छेद -12 से 35)

यह लोकतंत्र का हॉलमार्क माना जाता है।

मोैलिक अधिकार व्यक्ति के साथ-साथ समाज के विकास के लिए भी बनाए गए हैं।

इनकी प्रकृति न्याय प्रदान करने वाली है। (विधि के न्यायालय द्वारा ये वैधानिक रूप से लागू किए जा सकते हैं )

 यह राजनीतिक स्वतंत्राता का समर्थन करता है।

मौलिक अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं हैं। इनकी कुछ सीमा-रेखाएँ भी हैं।

संसद मौलिक अधिकाराें में संशाेधन कर सकती है। लेकिन संसद उन प्रावधानों को परिवर्तित नहीं कर सकती है जो संविधान की मूलभूत संरचना का निर्माण करते हैं।

राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकार लागू नहीं होते हैं (अनुच्छेद 21 व 22 के अतिरिक्त) मौलिक अधिकारों को हम निम्न समूहों में विभाजित कर सकते हैंः

समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)

अनुच्छेद-14: राज्य सभी व्यक्तियों के लिए एक समान कानून बनाएगा तथा उन पर एक समान लागू करेगा।

अनुच्छेद-15: इसके अंतर्गत धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म-स्थल के आधार पर कोई भेदभाव नहीं।

अनुच्छेद-16: सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता।

अनुच्छेद-17: अस्पृश्यता का उन्मूलन

अनुच्छेद-18 : उपाधियों का उन्मूलन शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21.।)

इसे 86 वें संविधान संशोधन द्वारा हाल ही में जोड़ा गया है। अतः संविधान में एक नया अनुच्छेद 21-। सम्मिलित हुआ है।

राज्य 06 वर्ष से 14 वर्ष के सारे बच्चों को मुफ्त एवं आवश्यक शिक्षा वैसे ही देगा जैसा कि राज्य विधि द्वारा निर्धारित करेगा।

स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)

हमारा संविधान अनुच्छेद 19 के अंतर्गत हमारे लिए छः मौलिक अधिकार सुनिश्चित करता है। ये स्वतंत्रताएँ –

1.स्वतंत्र भाषण, विचार- विनिमय की स्वतंत्रता के साथ ही साथ प्रेस की स्वतंत्रता 

2 बिना शस्त्र के एकत्रित होने और सभा या सम्मेलन करने की स्वतंत्रता

3.किसी भी प्रकार के संघ निर्मित करने की स्वतंत्रता 

4. देश से कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता ;अद्ध निवास की स्वतंत्रता और ;अपद्ध व्यापार, व्यवसाय एवं रोजगार की स्वतंत्रता को भी सुनिश्चित करती हैं। फिर भी ये स्वतंत्रताएँ अपने-आप में संपूर्ण नहीं हैं। राष्ट्रीय आपात के दौरान इन स्वतंत्रताओं पर प्रतिबंध लग जाता है।

शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)

शोषण के विरुद्ध अधिकार बलात श्रम के सभी प्रकारों को रोकने के साथ-साथ मानव तस्करी को भी रोकता है। इनमें से किसी भी प्रावधान का अतिक्रमण विधि के अंतर्गत एक दंडनीय अपराध है।

चौदह वर्ष से कम उम्र के बालकों को किसी कारखाने, खान या किसी खतरनाक व्यवसाय में संलग्न करने को राेका जाना।

 

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद25 – 28)

संविधान प्रत्येक नागरिक को अंतरात्मा की स्वतंत्रता, किसी व्यवसाय की स्वतंत्रता एवं किसी धर्म का प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।

यह प्रत्येक धार्मिक समूह को धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता प्रदान करता है।

राज्य द्वारा किसी भी व्यक्ति को ऐसे कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, जिसकी आय किसी विशेष धर्म या धर्मिक संप्रदाय की उन्नति में व्यय करने के लिए निश्चित कर दी गई है।

संविधान कहता है कि जिन शिक्षण संस्थानों का रखरखाव पूर्णतया राज्य के कोष से किया जाता है, वे शिक्षण संस्थाएँ अपने विद्यार्थियों को किसी धर्मिक अनुष्ठान में भाग लेने या किसी धर्मोपदेश को बलात् सुनने के लिए बाध्य नहीं कर सकते।

संस्कृति एवं शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29-30)

अनुच्छेद 29 एवं 30 नागरिकों को उनकी संस्कृति एवं भाषा को संरक्षित रखने, बनाए रखने एवं बढ़ाए जाने की गारंटी प्रदान करता है।

संविधान अल्पसंख्यकों को इस बात की स्वतंत्रता देता है कि वे अपनी इच्छानुसार शैक्षिक संस्थान स्थापित करें एवं उनका रखरखाव करें।

अनुच्छेद 29 एवं 30 यह अधिकार प्रदान करता है कि किसी शैक्षिक संस्थान काे वित्तीय सहायता प्रदान करते समय राज्य इस आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा कि यह एक अल्पसंख्यक समुदाय के द्वारा चलाया जा रहा है।

ये अधिकार यह सुनिश्चित करते हैं कि अपनी भाषा एवं संस्कृति को संरक्षित रखने के लिए अल्पसंख्यकाें काे राज्य द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी।

 

संवैधानिक उपचारों का अधिकार : (अनुच्छेद 32)

डॉ अम्बेडकर के अनुसार भारतीय संविधान का अनुच्छेद-32 सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रावधान है। कभी-कभी राज्य, किसी संस्था या व्यक्ति विशेष के द्वारा इन अधिकाराें का अतिक्रमण किया जाता है। संविधान का अनुच्छेद 32 हमें इन सब अधिकाराें की रक्षा हेतु वैधानिक उपचार प्रदान करता है।

यह भारत के नागरिकों को यह अधिकार प्रदान करता है कि वे इन अधिकारों को लागू कराने हेतु उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय
में जाएँ। यदि कोई नियम माैलिक अधिकारों का विरोधाभासी होगा तो वह अमान्य होगा। इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय को निम्नलिखित पाँच रिटों ( याचिकाओं ) की शक्ति प्राप्त है।

मूल कर्तव्य

भाग 4 क  अनुच्छेद 51-A , 42 वें संविधान संशोधन 1976 के द्वारा जोड़ा गया।

यह कहता है कि भारत के प्रत्येक नागरिक के ग्यारह मौलिक कर्त्तव्य हैंः

1  संविधान का पालन करना एवं इसके सिद्धांतों तथा संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करना।

2. उन आदर्शों को मानना एवं उनका अनुसरण करना जिन्होंने हमारी स्वतंत्रता के राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित किया।

3. भारत की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता को बनाए रखना एवं उसकी रक्षा करना।

4. देश की रक्षा करना एवं जब कहा जाए तो देश की सेवा करना।

5. भारत के सभी लोगों के मध्य धार्मिक, भाषिक, क्षेत्रीय एवं पंथीय भेदभाव के बिना समान
विचारधारा को बढ़ावा देना एवं समबंधुत्व की भावना काे विकसित करना। महिलाओं के प्रति अपमानजनक व्यवहार का त्याग करना।

6. हमारी मिश्रित संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व देना एवं उसे सुरक्षित करना।

7. प्राकृतिक पर्यावरण जैसे कि वन, झील, नदी एवं वन्य जीवाें की रक्षा करना एवं उसमें
सुधार करना, जीवित प्राणियों के प्रति सहानुभूति की भावना रखना।

8. वैज्ञानिक प्रकृति, मानवीयता, अन्वेषण एवं सुधार की भावना काे विकसित करना।

9. सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करना एवं हिंसा को छोड़ना।

10. व्यक्तिगत एवं सामूहिक क्रियाकलापों में सर्वोत्कृष्टता के लिए संघर्ष करना ताकि राष्ट्र
उपलब्धियाें के क्षेत्रा में नियमित रूप से उच्च स्तर को प्राप्त कर सके।

11. चाहे माता-पिता हों या अभिभावक, छः वर्ष से चौदह वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा का अवसर उपलब्ध कराना (86 वें संविधान संशोधन एक्ट, 2002 से सम्मिलित)

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