कक्षा 7 सामाजिक विज्ञान (Class 7 Social Scence )

कक्षा 7 सामाजिक विज्ञान (Class 7 Social Science )

अध्याय 1. जैवमंडल और भू-दृश्य

❖ पृथ्वी का वह समस्त भाग जहाँ जीवन विद्यमान है, वह जैवमंडल कहलाता है। इसमें सूक्ष्म से सूक्ष्म बैक्टीरिया से लेकर विशालकाय जीव शामिल हैं।

❖ पृथ्वी की ठोस सतह को हम स्थलमंडल कहते हैं। जलीय भाग को जलमंडल और धरातल से ऊपर वाला हिस्सा जहां गैसे पाई जाती हैं, वायुमंडल कहलाता है। जब यह तीनों मंडल एक दूसरे के संपर्क में आते हैं तो जैवमंडल की रचना होती है।

❖ पृथ्वी के जैवमंडल को वस्तुतः तीन बातें खास बनाती हैं, जो निम्न है ~

1.सूर्य से पृथ्वी को लगातार ऊर्जा प्राप्त होती रहती है।
2.पृथ्वी पर विशाल मात्रा में जल उपलब्ध है।
3.पृथ्वी पर तरल गैस और ठोस पदार्थ के तीनों स्वरूपों का एक अच्छा समन्वय है।

❖ जैविक तथा अजैविक पर्यावरण के पारस्परिक अंतर्संबंध को ही पारी तंत्र कहते हैं।

❖ अलग-अलग पर्यावरणों में अलग-अलग पशु पक्षी व वनस्पति पाई जाती है।

❖ पृथ्वी की सतह पर सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट हैं जो धरती की विशालतम पर्वत श्रृंखला हिमालय में स्थित हैं इसकी ऊंचाई 8848 मीटर है।

❖ प्रशांत महासागर में मॉनाकी पर्वत समुद्र की तली से 10,205 मीटर ऊँचा हैं, लेकिन इसका अधिकांश भाग समुद्र में डूबा हुआ है।

❖ पर्वतो के जिस तरफ बादल वर्षा करते हैं। उसे पवन मुखी भाग कहते हैं क्योंकि उनका मुख पवन के सामने होता है वहीं दूसरी तरफ के भाग को पवन विमुखी भाग कहते हैं।

❖ कम ढाल वाले ऐसे ऊँचे एवं चौड़े भू-भाग जो ऊपर से समतल होते हैं, पठार कहलाते हैं।

❖ पठानों में खनिजों के भंडार अधिक होते हैं जैसे लोहा, कोयला आदि।

❖ पृथ्वी के कुल स्थलीय भाग की सतह के लगभग आधे भाग पर मैदान पाए जाते हैं।

प्रमुख रूप से पृथ्वी पर चार महासागर हैं~

प्रशांत महासागर

अटलांटिक महासागर

हिंद महासागर एवं

आर्कटिक महासागर।

❖ एक ऐसा स्थलीय भाग जो चारों तरफ से जल से गिरा हो द्वीप कहलाता है।

❖ असम में बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी में स्थित माजुली द्वीप नदी में स्थित विश्व का सबसे बड़ा द्वीप है।

❖ स्थलीय भाग जो तीन तरफ से जल से गिरा हो उसे प्रायद्वीप कहते हैं।

अध्याय 2. वायुमंडल और जलवायु

❖ हमारी पृथ्वी के चारों और कई प्रकार की गैसों का आवरण पाया जाता है जिसे हम वायुमंडल कहते हैं।

❖ वायुमंडल सूर्य से आने वाली दैनिक गर्मी तथा रात में पड़ने वाली ठंड से हमारी रक्षा करता है अतः वायुमंडल के कारण पृथ्वी के धरातल का तापमान रहने योग्य है।

❖ वर्तमान समय में अधिक जैविक ईंधनों के उपयोग के कारण वायुमंडल में कार्बन-डाई ऑक्साइड की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है, जिसके परिणाम स्वरुप पृथ्वी का तापमान भी बढ़ रहा है। इसे ‘भूमंडलीय तपन’ अथवा ‘ग्लोबल वार्मिंग’ कहा जाता है।

❖ वायुमंडल में सर्वाधिक पाई जाने वाली गैसें नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन है, जो समस्त गैसों का लगभग 99 प्रतिशत भाग है।

वायुमंडल में प्रमुख गैसों का अनुपात ~

नाइट्रोजन – 78.08%
ऑक्सीजन – 20.95%
ऑर्गन – 0.93%
कार्बन-डाई ऑक्साइड – 0.03%
अन्य – 0.01%

❖ अधिक ताप के कारण जब जल भाप बनकर वायुमंडल में चला जाता है तो वायुमंडल में विद्यमान इसी गैसीय जल जलवाष्प कहा जाता है। यह केवल क्षोभमंडल में ही पाई जाती है। इसे आद्रता भी कहते हैं।

वायुमंडल की संरचना

❖ हमारी पृथ्वी के चारों ओर फैले वायुमंडल को ऊंचाई की ओर बढ़ते हुए तापमान के आधार पर पाँच परतों में विभाजित किया जाता है।

क्षोभ मंडल
❖ यह वायुमंडल की सबसे निचली एवं महत्वपूर्ण परत हैं। सभी मौसमी घटनाएं (वर्षा, कोहरा, आंधी, तूफान, तड़ित, चालन, ओलावृष्टि, पाला आदि) इसी परत में घटित होती हैं।

❖ इस परत की औसत ऊंचाई 13 किलोमीटर है।

❖ ऑक्सीजन का अधिकांश भाग इसी परत में पाया जाता है, जो वनस्पति सहित सभी जीवों की श्वसन क्रिया के उपयोगी है।

समतापमंडल
❖ क्षोभ सीमा के ऊपर लगभग 50 किलोमीटर की ऊंचाई तक समताप मंडल स्थित हैं।

❖ समताप मंडल में मौसमी घटनाएं घटित नहीं होती हैं। इसलिए वायुयान इसी परत में उड़ते हैं।

❖ ओजोन गैस समताप मंडल में ही पाई जाती हैं जो सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों (Ultra Violet Rays) का अवशोषण कर धरातल तक नहीं आने देती है।

मध्यमंडल
❖ समताप सीमा के ऊपर लगभग 80 किलोमीटर तक मध्यमंडल नामक तीसरी परत स्थित है।

❖ अंतरिक्ष से आने वाले उनका पिंड इस परत में जल जाते हैं।

आयनमंडल
❖ मध्य मंडल के बाद 80 से 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित वायुमंडल की चौथी परत को आयन मंडल कहा जाता है।

❖ पृथ्वी से प्रसारित होने वाली रेडियो संसार तरंगे इसी परत से परावर्तित होकर पुनः पृथ्वी पर लौटती हैं।

बहिर्मंडल
❖ यह वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत हैं जिसे बहिर्मंडल कहा जाता है।

❖ यहां गैसें से अत्यंत विरल होती हैं जिसमें मुख्य रुप से हीलियम एवं हाइड्रोजन गैसें पाई जाती हैं।

मौसम तथा जलवायु

❖ किसी स्थान विशेष की अल्पकालीन पर्यावरणीय दशाओं को मौसम का जाता है।

❖ मौसम में कम समय में लगातार बदलाव होते रहते हैं जिन्हें हम प्रत्यक्ष रूप से देख सकते हैं।

❖ किसी स्थान विशेष की मौसमी दशाओं के दीर्घकालीन औसत को उस स्थान की जलवायु कहा जाता है।

❖ जलवायु में भी परिवर्तन होता रहता है लेकिन यह इतना धीमी गति से होता है कि हम प्रत्यक्ष रुप से इसे अनुभव नहीं कर पाते हैं।

❖ वायुमंडल के मुख्य तत्व तापमान, वर्षा, वायुदाब, आद्रता, पवन आदि होती है।

❖ तापमान का अर्थ है- वायु कितनी गर्म है।

❖ सर्वाधिक तापमान भूमध्य रेखा पर होता है।

❖ सामान्यत भूमध्य रेखा से जैसे-जैसे ध्रुवों की ओर जाते हैं तापमान लगातार कम होता जाता है क्योंकि भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें सीधी एवं ध्रुवों पर तिरछी पड़ती हैं। इसलिए ध्रुवों पर बर्फ होती हैं।

❖ तापमान को मापने की इकाई सेंटीग्रेड अथवा फॉरेनहाइट है जबकि तापमान मापने के यंत्र को तापमापी अथवा थर्मामीटर कहते हैं।

❖ धरातल से क्षोभमंडल में ऊपर की ओर जाने पर औसतन प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर 1° सेंटीग्रेड तापमान कम होता जाता है।

❖ पृथ्वी की सतह पर ऊपरी वायुमंडल की परतों में स्थित वायु का जो भार पड़ता है उसे वायुदाब कहा जाता है।

❖ धरातल पर एक वर्ग सेंटीमीटर पर लगभग एक किलोग्राम भार पड़ता है।

❖ सर्वाधिक वायुदाब समुद्र तल पर होता है तथा वायुमंडल में ऊपर की ओर जाने पर वायुदाब तेजी से कम होता जाता है।

❖ वायु दाब को मापने की इकाई मिलीबार है जबकि वायुदाब मापने के यंत्र को वायुदाबमापी या बेरोमीटर कहते हैं।

❖ वायु की दिशा बताने वाले यंत्र को वायु दिग्सूचक यंत्र तथा गति बताने वाले यंत्र को एनीमोमीटर कहते हैं।

❖ उच्च दाब क्षेत्र से निम्न दाब क्षेत्र की ओर वायु की गति को पवन कहते हैं।

मुख्य रूप से पवन तीन प्रकार की होती हैं~

1. स्थाई पवने :- यह तीन प्रकार की होती हैं- व्यापारिक, पछुआ एवं ध्रुवीय पवनें। ये वर्षभर लगातार एक ही निश्चित दिशा में चलती है, इसलिए इन्हें स्थाई पवनें कहते हैं।

2. सामयिक/मौसमी पवनें :- यह पवने विभिन्न ऋतुओं/मौसम में अपनी दिशा बदलती रहती हैं।
तटीय प्रदेशों में रात्रि में चलने वाली स्थल समीर तथा दिन में चलने वाली समुद्री समीर इसके अच्छे उदाहरण हैं।

3. स्थानीय पवनें- ये पवनें किसी छोटे क्षेत्र से में वर्ष या दिन के किसी विशेष समय में चलती हैं।
जैसे राजस्थान में गर्मी की ऋतु में चलने वाली गर्म पवन जिसे ‘लू’ जाता है। चिनूक (रॉकी पर्वत), फोहन एवं मिस्ट्रल (यूरोप) आदि विश्व में अन्य स्थानीय पवनें हैं।

❖ यदि किसी कारणवश जल भाप में बदलकर वायुमंडल में मिल जाता है तो वायुमंडल में भाप रुपी जल को आद्रता कहा जाता है। इसे वायुमंडल में नमी या जलवाष्प भी कहा जाता है।

❖ पृथ्वी पर जल का बूंदों के रूप में गिरना वर्षा कहलाता है।

❖ अधिक वर्षा होने पर मैदानी भागों में पानी भर जाता है तो उस स्थिति को बाढ़ कहा जाता है।

❖ वर्षा तीन प्रकार की होती हैं- संवहनीय वर्षा, पर्वतीय वर्षा तथा चक्रवातीय वर्षा

❖ विषुवत रेखीय क्षेत्र विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र है जहां वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक होती हैं।

❖ मध्यम वर्षा वाले क्षेत्र मुख्य रूप से उष्ण-शीतोष्ण कटिबंध के तटीय क्षेत्र हैं जहां वर्षा की मात्रा 100 – 200 सेंटीमीटर रहती हैं।

❖ जबकि उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के मध्य भाग तथा शीतोष्ण प्रदेशों के पूर्वी भाग में कम वर्षा होती हैं जिनकी मात्रा 25 – 100 सेंटीमीटर रहती हैं।

❖ विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान भारत के मेघालय राज्य की खासी पहाड़ियों में स्थित मासिनराम एवं चेरापूंजी हैं।

❖ समुद्रों से अधिक वाष्पीकरण होता है जिससे तटवर्ती क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती हैं।

❖ जिस प्रकार समुद्रों के जल का वाष्पीकरण होता है उसी प्रकार पेड़-पौधों से वाष्पोत्सर्जन होता है, इसलिए जहां पेड़ पौधे अधिक होते हैं, वहां वर्षा भी अधिक होती है।

❖ सामान्य रूप में चक्रवात निम्न दाब के केंद्र होते हैं, जिनके चारों तरफ उच्च वायुदाब होता है।

❖ चक्रवात समुद्र पर विकसित होते हैं और तटीय भागों पर वर्षा करते हैं।

❖ चक्रवात दो प्रकार के होते हैं-

1.उष्णकटिबंधीय चक्रवात

2.शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात

❖ उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को संयुक्त राज्य अमेरिका में ‘हरिकेन‘, कैरीबियन सागर व मेक्सिको में ‘टोरनेडो‘ चीन व जापान में ‘टायफून‘ ऑस्ट्रेलिया में ‘विली विलीज‘ तथा बंगाल की खाड़ी में ‘चक्रवात‘ कहते हैं।

❖ हवाओं के द्वारा निर्मित वृत्ताकार अंडाकार आदि लहर नुमा आकार जिसके मुद्दे में उच्च वायुदाब तथा परिधि की ओर न्यून वायुदाब होता है प्रति चक्रवात कहलाता है।

अध्याय 3 जल

❖ पृथ्वी ग्रह पर जल की उपलब्धता के कारण ही जीवन संभव है।

❖ विभिन्न जल स्रोतों के निकट बसे विश्व के कुछ प्रमुख नगर :~

नदी के किनारे स्थित नगर-

दिल्ली (भारत) – यमुना

इलाहाबाद (भारत) – गंगा यमुना के संगम पर

लंदन (इंग्लैंड) – थेम्स

रोम (इटली) – टाइबर

पेरिस (फ्रांस) – सीन

महासागर तट पर महासागर के तट पर स्थित नगर-

मुंबई (भारत) – हिंद महासागर

चेन्नई (भारत) – हिंद महासागर

न्यूयॉर्क (यूएसए) – अटलांटिक महासागर

बीजिंग (चीन) – प्रशांत महासागर

सिंगापुर (सिंगापुर) – प्रशांत महासागर

झील के किनारे स्थित नगर-

श्रीनगर (भारत) – डल

पुष्कर (भारत) – पुष्कर

शिकागो (यूएसए) – मिशीगन

डुलुथ (यूएसए) – सुपीरियर

बफेलो (यूएसए) – इरी

❖ बादलों से वर्षा होती हैं और वर्षा का जल नदियों के माध्यम से पुनः सागरों में मिल जाता है। इस प्रकार जल स्रोतों से वाष्पीकरण होकर जल विभिन्न स्वरूपों में बदलता हुआ जल स्रोतों में ही आकर मिल जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को “जल चक्र” (Water Cycle) कहा जाता है।

❖ भारत के मेघालय राज्य में स्थित मासिनराम व चेरापूंजी में विश्व की सर्वाधिक वर्षा होती है जबकि थार के मरुस्थल में भारत की सबसे कम वर्षा होती है।

❖ पृथ्वी पर मौजूद समस्त जल का लगभग 2.5 प्रतिशत जल पीने योग्य है जिसे मीठा या स्वच्छ जल कहते हैं। लेकिन इसका भी अधिकांश भाग ध्रुवों एवं ऊँचे पर्वतों पर बर्फ के रूप में जमा हुआ है।

❖ स्थल पर मीठे जल के प्रमुख स्रोत नदियां, झीलें, बांध, तालाब, कुएँ, एनीकट, भूमिगत जल आदि हैं।

❖ महासागरों का जल खारा होता है क्योंकि इसमें लवण की मात्रा अधिक होती है।

❖ स्थल पर भी कुछ झीलों का जल खारा होता है, जैसे तुर्की की वॉन झील (विश्व की सबसे खारी झील), जॉर्डन एवं इजराइल के मध्य स्थित मृत सागर, राजस्थान की सांभर झील अधिक आदि।

❖ जल का खारापन उसमें मिले सोडियम क्लोराइड, कैल्शियम, मैग्नीशियम एवं अन्य लवणों की उपस्थिति के कारण होता है।

❖ कुछ क्षेत्रों में फ्लोराइड युक्त जल भी पाया जाता है जैसे राजस्थान के शेखावाटी एवं दक्षिणी राजस्थान में।

❖ वर्षा जल जब भूमि के अंदर प्रवेश कर नीचे की कठोर चट्टानों के ऊपर एकत्रित हो जाता है तो उसे भूमिगत जल कहते हैं।

❖ वर्षा ऋतु में भूमिगत जल कम गहराई पर एवं ग्रीष्म ऋतु में अधिक गहराई पर पाया जाता है।

❖ प्रकृति द्वारा प्रदत शुद्ध जल में यदि कुछ अवांछित तत्व मिल जाते हैं तो वह जल पीने एवं मानवीय उपयोग के लिए अनुपयुक्त हो जाता है, इसे ‘जल प्रदूषण’ कहते हैं।

❖ प्रकृति प्रदत जल मानवीय गतिविधियों के कारण प्रदूषित हो जाता है।

❖ आज विश्व में हर 6 में से एक व्यक्ति स्वस्थ जल के लिए जूझ रहा है।

❖ भारत में जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण कानून, 1974 तथा पर्यावरण संरक्षण कानून, 1986 आदि कानून बनाए गए हैं।

❖ गंगा नदी को साफ करने के लिए भारत सरकार द्वारा ‘गंगा एक्शन प्लान’ एवं ‘नमामि गंगे‘ नामक कार्य योजनाएँ चलाई जा रही है।

❖ संरक्षण का अर्थ है जल का उचित उपयोग एवं भविष्य के लिए सुरक्षित रखना। अतः जल के दुरुपयोग को रोक कर स्वच्छ जल को लंबे समय तक बचा कर रखना जल संरक्षण कहलाता है।

❖ प्राचीनकाल से ही जल की कमी की समस्याओं से बचने के लिए राज्य और सार्वजनिक सहयोग से झीले, तालाब, कुएँ बावड़िया आदि का निर्माण किया जाता है।

❖ प्रतिवर्ष 22 मार्च को जल दिवस के रूप में मनाया जाता है।

❖ ‘रूफ टॉफ जल संग्रहण विधि’ कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए अधिक उपयोगी विधि हैं। इस विधि में वर्षा जल को भवन की छत से एक पाइप द्वारा नीचे बनी जल की टंकी/हॉज में एकत्रित कर लिया जाता है। बाद में आवश्यकतानुसार उस जल का उपयोग किया जाता है।

अध्याय 4. भूमि

❖ गांव के अधिकांश भूभाग का उपयोग कृषि चारागाह और तालाब के रूप में होता है। जबकि नगर या शहर में आवासों, कार्यालय, उद्योग, परिवहन एवं बाग-बगीचों आदि में। इसी तरह पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि का उपयोग खनन, वन, पशुचारण आदि कार्यों में होता है।

❖ भूमि उपयोग के कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं~

1. वन भूमि – वह विस्तृत भू-भाग जो प्राकृतिक वनस्पति से ढका हो वन भूमि कहलाता है। राष्ट्रीय उद्यान, वन्य जीव अभ्यारण, आखेट निषिद्ध क्षेत्र आदि इसी में सम्मिलित है।

2. कृषि भूमि – वह भूमि जिस पर मानव द्वारा फसलें उगाई जाती है उसे कृषि भूमि कहते हैं।

3. बंजर भूमि – बेकार पड़ी वह भूमि जिसे कृषि योग्य भूमि में नहीं बदला जा सकता है उसे बंजर भूमि कहते हैं। जैसे ऊंचे पर्वत, पथरीली भूमि, दलदल आदि।

4. कृषि योग्य व्यर्थ भूमि – बेकार पड़ी वह भूमि जिसे कृषि योग्य व्यर्थ भूमि में बदला जा सकता है, कृषि योग्य व्यर्थ भूमि कहलाती है।

5. चारागाह भूमि – वह सार्वजनिक भूमि जिस पर पशुओं को चराया जाता है, उसे चारागाह भूमि कहा जाता है।

6. उद्यान भूमि – वह भूमि जिस पर फलदार वृक्ष उगाए जाते हैं, उसे उद्यान भूमि कहते हैं।

7. वर्तमान परती भूमि – भूमि का उपजाऊपन बढ़ाने के लिए किसानों द्वारा एक यहां दो वर्षों के लिए खाली छोड़ी गई भूमि को वर्तमान परती भूमि कहा जाता है।

8. पुरानी परती भूमि – यदि किसी भूमि पर 5 वर्षों तक कृषि नहीं की जाती है उसे पुरानी परती भूमि कहते हैं।

9. अन्य कार्यों में प्रयुक्त भूमि – ऊपर वर्णित भूमि उपयोग को छोड़कर शेष सभी कार्यों में प्रयुक्त भूमि को इस वर्ग में रखा जाता है। जैसे मानव अधिवास, परिवहन, नहरें, उद्योग, दुकानें, खनन आदि में प्रयुक्त भूमि।

❖ कृषि भी दो प्रकार से की जाती हैं। किसान अपने परिवार के पालन-पोषण के उद्देश्य से कृषि करता है तो उसे जीवन निर्वाह कृषि कहते हैं। किसान द्वारा व्यापार के उद्देश्य से की गयी कृषि को व्यापारिक कृषि कहा जाता है।

❖ अर्जेंटीना, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, डेनमार्क, भारत आदि देशों की अर्थव्यवस्था में पशुपालन का योगदान भी अधिक है। इसलिए यहां चारागाहों का भी विशेष महत्व है।

❖ हमारी अर्थव्यवस्था को संबल देने के लिए कुछ भूमि का उपयोग खनन एवं उद्योगों के लिए भी किया जाता है।

❖ पर्यटन स्थलों के रूप में हमारे मनोरंजन के लिए तथा पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से वन्य जीव उद्यानों एवं अभयारण्य में भी कुछ भूमि का उपयोग किया जाता है।

❖ निजी भूमि पर किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार होता है, जबकि सार्वजनिक भूमि पर पूरे समुदाय समुदाय का अधिकार होता है। बाग-बगीचे, खेल का मैदान, चारागाह, वन, जलीय क्षेत्र आदि सार्वजनिक भूमि के उदाहरण हैं जिस पर समुदाय के सभी लोगों का समान अधिकार होता है इसे साझा भू-संपत्ति संसाधन भी कहा जाता है।

❖ कृषि, उद्योग, आवास, परिवहन आदि कार्यों का विकास पर्वतीय क्षेत्रों की तुलना में मैदानी क्षेत्रों में आसानी से हो जाता है।

❖ पठारी और पर्वतीय भू-भाग असमतल होते हैं इसीलिए यहां मानवीय क्रिया-कलाप का कम विकास हो पाता है।

❖ पर्वतीय भूमि का उपयोग सुरक्षा, पर्यटन, वन, चारागाह विकास हेतु अधिक होता है।

❖ किसी क्षेत्र का भूमि उपयोग मुख्यतः वहां किए जाने वाले आर्थिक क्रिया-कलापों पर निर्भर करता है।

❖ शहरों के निकटवर्ती ग्रामीण क्षेत्र में सर्वाधिक भूमि उपयोग परिवर्तन देखा जाता है।

❖ पश्चिमी राजस्थान में इंदिरा गांधी नहर से मरुस्थलीय भूमि में व्यापक भूमि उपयोग परिवर्तन हुआ है।

❖ कृषि भूमि का प्रतिशत विश्व के कुल भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 11 प्रतिशत ही है तथा वन व घास के मैदानों का प्रतिशत भी घट कर क्रमश: 31 और 20 प्रतिशत रह गया है।

❖ जब भी किसी एक कार्य के लिए भूमि उपयोग बढ़ता है तो किसी दूसरे कार्य का भूमि उपयोग कम हो जाता है और इसे ही भूमि उपयोग में परिवर्तन कहा जाता है।

❖ भारत में वन एवं अन्य भूमि उपयोग में वृद्धि हुई तथा कृषि, चारागाह एवं बंजर भूमि उपयोग में कमी आ रही है।

❖ उपजाऊ भूमि की गुणवत्ता, उपयोगिता एवं उत्पादकता में कमी आना भूमि अवनयन कहलाता है। इसे भू-निम्नीकरण या भूमि की गुणवत्ता में कमी भी कहा जाता है।

❖ भूमि अवनयन प्राकृतिक व मानवीय दोनों कारणों से होता है लेकिन मानवीय कारणों से होने वाला भूमि अवनयन वर्तमान में चिंता का विषय है।

❖ भारत का सबसे बड़ा महानगर मुंबई प्रारंभ में सात दीपों पर बसा था। बाद में इन दीपों के बीच के कम गहरे समुद्री भाग को मलबा डाल कर भर दिया गया जिस पर वर्तमान महानगर का विकास हुआ है।

❖ नीदरलैंड का उत्तरी-पश्चिमी भाग समुद्र तल से लगभग 1 मीटर ऊँचा है, जो ज्वार के समय डूब जाता है। इस समस्या से बचने के लिए समुद्र एवं स्थल के मध्य एक कृत्रिम बांध बनाया गया है। बांध द्वारा ऐसी सुरक्षित भूमि को यहां पोल्डर कहा जाता हैं।

❖ भूमि संरक्षण से तात्पर्य भूमि की गुणवत्ता में आ रही कमी को रोककर उसे हमेशा के लिए सुरक्षित करना है।

❖ पश्चिमी राजस्थान में मरुस्थल के विस्तार को रोकने के लिए जोधपुर में केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान केंद्र “काजरी” (CAZRI) की स्थापना की गयी है।

❖ कादरी का कार्य मरुस्थल में पेड़-पौधों, चारागाह, पशु, जल एवं मृदा का संरक्षण कर मरुस्थल की पारिस्थितिकी को बनाए रखना है।

अध्याय 5. वन और वन्य जीव

❖ जलवायु, मृदा, स्थलाकृति, वनस्पति, जीव-जंतु आदि इसी परिवेश के विभिन्न तत्व या कारक हैं। ये सारे तत्व या कारक एक दूसरे से मिलकर एक ऐसे परिवेश का निर्माण करते हैं जिसे हम पर्यावरण कहते हैं।

❖ किसी भौगोलिक परिवेश में स्थित वृक्ष, छोटे पौधे, लताए, झाड़ियां, घास, काई आदि को सम्मिलित रूप से वनस्पति कहा जाता है।

विश्व में पाए जाने वाले वनों के प्रकार

❖ वृक्षों एवं झाड़ियों से ठके विस्तृत भू-भाग को वन कहते हैं।

सदाबहार वन

1. उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन –

❖ यह वन अत्यधिक गर्म और अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

❖ भूमध्य रेखा तथा उष्ण कटिबंध के पास ऐसे घने वन पाए जाते हैं।

❖ यह वन विषुवत रेखा के दोनों ओर 10° उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों तक पाए जाते हैं।

❖ वर्ष के अलग-अलग समय में अपनी पत्तियां गिराने से यह वन क्षेत्र वर्ष भर हरा भरा दिखाई देता है इसलिए इन्हें सदाबहार वन कहा जाता है।

❖ अत्यधिक घने इन वनों में विश्व की सर्वाधिक लताएं पाई जाती हैं जो पेड़ों पर चढ़कर पेड़ों से लिपटी रहती हैं।

❖ इन वनों में कठोर लकड़ी वाले वृक्ष आबनूस, महोगनी तथा रोजवुड अधिक पाए जाते हैं।

❖ विश्व में दक्षिण अमेरिका के अमेजन बेसिन में इन वनों का सर्वाधिक विस्तार है।

❖ ब्राजील में इन्हें सेल्वा कहा जाता है, जिन्हें ‘पृथ्वी के फेफड़े’ भी कहते हैं।

❖ इसके अतिरिक्त यह वन अफ्रीका के कांगो बेसिन एवं दक्षिण पूर्वी एशिया में भी पाए जाते हैं।

❖ दक्षिण अमेरिका में विश्व का सबसे बड़ा सांप इन्हीं वनों में पाया जाता है जिसे ऐनाकोंडा कहते हैं।

2. शीतोष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन-

❖ ये वन मध्य अक्षांश के तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। मुख्यतः ये वन महाद्वीपों के पूर्वी किनारों पर होते हैं – जैसे दक्षिण पूर्व अमेरिका, दक्षिण पूर्व ब्राजील तथा दक्षिण चीन।

पतझड़ी वन

1. ऊष्ण कटिबंधीय मानसूनी वन-

❖ इन्हें पतझड़ी या पर्णपाती वन भी कहते हैं।

❖ ये वन वर्ष में एक बार शुष्क मौसम में जल संरक्षण हेतु 6 से 8 सप्ताह के लिए अपनी पत्तियां गिरा देते हैं।

❖ नीम, शीशम, महुआ, जामुन, साल तथा सागवान यहां पाए जाने वाले कठोर लकड़ी के वृक्ष हैं।

❖ फर्नीचर बनाने के लिए सागवान सबसे अच्छी लकड़ी मानी जाती हैं।

❖ दक्षिणी तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया, दक्षिणी चीन, पश्चिमी द्वीप समूह, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया, पूर्वी अफ्रीका तथा ब्राजील के तटीय क्षेत्रों में ये वन पाए जाते हैं।

2. शीतोष्ण कटिबंधीय पतझड़ी वन-

❖ उच्च अक्षांश में शीतोष्ण पतझड़ी वन पाए जाते हैं।

❖ ये न्यूजीलैंड, चिली, उत्तर पूर्व अमेरिका तथा पश्चिमी यूरोप के तटीय भागों में पाए जाते हैं।

भूमध्यसागरीय वन

❖ महाद्वीपों के पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम किनारे पर दोनों गोलार्द्दों में 30° से 40° अक्षांशों के मध्य पाए जाने वाले वनों को भूमध्यसागरीय वन कहते हैं।

❖ ये वन पश्चिमी एशिया, उत्तरी अफ्रीका, दक्षिण यूरोप में भूमध्यसागर के किनारों पर पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त ये वन संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिमी भाग में स्थित कैलिफोर्निया, दक्षिण अफ्रीका के दक्षिण पश्चिमी भाग में, दक्षिण अमेरिका के मध्य चिली में एवं दक्षिणी पश्चिमी आस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं।

❖ विश्व में जैतून, अंगूर, संतरा, अंजीर तथा नींबू वर्गीय रसदार फलों की सर्वाधिक कृषि इसी क्षेत्र में की जाती हैं।

❖ फलों की कृषि के कारण भूमध्यसागरीय प्रदेश को भूमध्यसागरीय प्रदेश को विश्व का ‘फलोद्यान’ भी कहा जाता है।

कोणधारी वन

❖ उत्तरी गोलार्द्ध के उच्च अक्षांशों (50° -70°) में उत्तरी अमेरिका तथा यूरेशिया के विस्तृत भाग पर शंकुधारी वन मिलते हैं। इनका सर्वाधिक विस्तार रूप में है।

❖ दक्षिणी गोलार्द्ध में ये वन नहीं पाए जाते हैं क्योंकि अक्षांशों में दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थल भाग का अभाव है

❖ इन्हें कनाडा में टैगा वन भी कहते हैं

❖ अधिक ठंडी जलवायु एवं बर्फबारी के कारण इन वनों की पत्तियां नुकीली होती हैं। कागज बनाने की लूग्दी अधिकांशतः इन्ही से बनाई जाती हैं।

❖ माचिस और पैकिंग के डिब्बे बनाने के लिए भी इनकी लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।

घास स्थल

1. उष्णकटिबंधीय घास के मैदान-

❖ ऐसे वन भूमध्य रेखा के दोनों ओर से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों तक फैले हैं।

❖ अफ्रीका के सवाना घास के मैदान में जो विश्व में सबसे बड़े हैं, इसी प्रकार के हैं।

❖ इन्हें अफ्रीका में सवाना, ब्राजील में कंपोज व वेनेजुएला में लानोस कहते हैं।

2 . शीतोष्ण घास के मैदान-

❖ ये मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों और महाद्वीपों के भीतरी हिस्सों में मिलते हैं।

❖ यहां मुख्यत: छोटी एवं पौष्टिक घास पाई जाती है।

❖ घास के साथ-साथ ओक, पाइन, एल्म मैपिल, बर्च, आस्पेन, बिलों आदि वृक्ष भी पाए जाते हैं।

❖ इनका सर्वाधिक विस्तार यूरेशिया के मध्यवर्ती भाग में है, जहां इन्हें स्टेपी का जाता है।

❖ इस प्रकार के मैदानों को अर्जेंटीना में पंपास, उत्तरी अमेरिका में प्रेयरी, दक्षिण अफ्रीका में वेल्ड एवं ऑस्ट्रेलिया में डाउंस कहा जाता है।

मरुस्थलीय वन

1 . उष्णकटिबंधीय मरुस्थलीय वन-

❖ महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में 20° से 30° अक्षांशों के मध्य उष्णकटिबंधीय रेगिस्तानों में पाई जाने वाली वनस्पति मरुद्भिद कहलाती है।

❖ अधिक तापमान एवं कम वर्षा (25 सेमी से कम) के कारण इस वनस्पति की ऊंचाई कम, पत्तियां छोटी-मोटी, छाल मोटी और जड़ें गहरी होती है ताकि यह लंबे शुष्क काल में जीवित रह सके।

❖ उत्तरी अफ्रीका में सहारा, दक्षिण अफ्रीका में कालाहारी, उत्तरी अमेरिका में कैलिफोर्निया,एरिज़ोना और मेक्सिको, दक्षिण अमेरिका में अटाकामा, दक्षिण पश्चिमी एशिया में अरब, भारत एवं पाकिस्तान में थार, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में विश्व के प्रमुख मरुस्थल स्थित है।

❖ नागफनी, कैक्टस, खैर, बबूल, कीकर, खेजड़ी आदि यहाँ के मुख्य वृक्ष है।

शीत मरुस्थलीय वन

ध्रुवीय क्षेत्र-

❖ ध्रुवीय क्षेत्रों में तापमान अत्यधिक कम होता है इसीलिए वहां प्राकृतिक वनस्पति का विकास बहुत कम होता है।

❖ अल्पकालिक ग्रीष्म ऋतु के दौरान यहां काई एवं कुछ छोटे फूलों की वनस्पति उगती हैं। जो एशिया, यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका के ध्रुवीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं।

पर्यावरण संरक्षण संबंधी प्रमुख आन्दोलन

1. खेजड़ली आन्दोलन

❖ राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में ठेकेदारों द्वारा वृक्षों को काटा जा रहा था। इन्हें बचाने के लिए उस क्षेत्र के लोगों ने विरोध किया।

❖ अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व में 1730 ईस्वी में 363 स्त्री-पुरुषों ने वनों को बचाने के लिए वृक्षों से लिपट कर अपना बलिदान दिया था। उनकी स्मृति में यहां एक मृत उपवन स्थापित किया गया है।

❖ प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को यहां विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला लगता है।

❖ राजसमंद के जिले के पिपलांत्री गांव में एक बेटी के जन्म पर 111 वृक्ष लगाए जाते हैं।

2. चिपको आंदोलन

❖ 1972 में उत्तराखंड के गांवों की महिलाओं ने पेड़ काटने वालों का विरोध किया और उन वृक्षों से चिपक गई जिनको काटा जा रहा था।

❖ गौरा देवी के नेतृत्व में वहां के निवासियों द्वारा किए गए इस कार्य को ही ‘चिपको आंदोलन’ के रुप में जाना जाता है।

❖ इस आंदोलन से पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा भी जुड़े।

3. अप्पिको आंदोलन

❖ कर्नाटक राज्य के सिरसी जिले के जिले में सितंबर 1983 को सलकानी वन क्षेत्र में वृक्ष काटे जा रहे थे। तब वहां के स्त्री, पुरुष और बच्चों ने पेड़ों को बाहों में भर लिया और लकड़ी काटने वालों को भागने के लिए मजबूर होना पड़ा।

अध्याय 6. विभिन्न परिवेशों में मानव जीवन (1)

गर्म एवं ठंडे मरुस्थल में अंतर

गर्म मरुस्थल- 

❖ यह मध्य अक्षांशों में पाए जाते हैं।

❖ इनमें धरातल रेतीला या पथरीला होता है। इनमें वर्षा अत्यंत कम होती हैं।

❖ इनमें कृषि कम की जाती हैं लेकिन सिंचाई के साधनों का विकास कर कृषि की जा सकती हैं।

❖ सहारा मरुस्थल,अरब मरुस्थल, ऑस्ट्रेलिया का मरुस्थल, कालाहारी मरुस्थल, थार का मरुस्थल आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

ठंडे मरुस्थल

❖ यह उच्च अक्षांशों एवं ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

❖ इनमें धरातल बर्फीला होता है।

❖ इनमें वर्षा बर्फबारी के रूप में होती हैं।

❖इनमे कृषि की संभावना अत्यंत कम है लेकिन वर्तमान में ग्रीन हाउस बनाकर की जा सकती हैं।

❖ गोबी मरुस्थल, पेटागोनिया मरुस्थल, ग्रीनलैंड, अंटार्कटिका एवं लद्दाख आदि ठंडे मरुस्थल के उदाहरण हैं।

1. गर्म मरुस्थल में मानव जीवन

❖ राजस्थान में अरावली पर्वत के पश्चिम में मरुस्थल हैं, जो पंजाब एवं हरियाणा के दक्षिणी भागों से गुजरात में कच्छ की रण तक फैला हुआ है। इसे थार का मरुस्थल कहा जाता है।
इसका अधिकांश हिस्सा राजस्थान में स्थित है। पश्चिम में इसका विस्तार पाकिस्तान तक है।

❖ संपूर्ण प्रदेश रेतीला मैदान हैं जिससे यत्र तत्र रेतीले टीले मिलते हैं। इन्हें बालुका स्तूप कहा जाता है।

❖ इसके पूर्वी भाग में अरावली की पहाड़ियां पाई जाती हैं।

❖ थार के इस गर्म मरुस्थल की जलवायु बहुत शुष्क हैं और मुख्यत: ग्रीष्म ऋतु में रेत की आंधियां भी चलती हैं।

❖ इस क्षेत्र में वर्षा बहुत ही कम होती हैं, जो वर्षा ऋतु में मानसूनी पवनों द्वारा होती हैं।

❖ अनिश्चित वर्षा होने से कभी-कभी भयंकर बाढे भी आ जाती हैं। सन 2006 में बाड़मेर जिले के कवास में एवं सन 2015 में जालौर जिले में वर्षा ऋतु के दौरान आई बाढ़ इसके उदाहरण हैं।

❖ भूमिगत जल अधिक गहराई पर मिलता है, जो अधिकांशत: खारा होता है, लेकिन जैसलमेर जैसलमेर जिले की लाठी सीरीज क्षेत्र में मीठा भूमिगत जल उपलब्ध हैं।

❖ यहां अधिकतर छोटे, कंटीले वृक्ष और झाड़ियां पाई जाती हैं।

❖ बबूल, खेजड़ी, रोहिड़ा आदि इस क्षेत्र के मुख्य वृक्ष हैं।

❖ यहां खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, लिग्नाइट, जिप्सम, संगमरमर, इमारती पत्थर, नमक आदि कई महत्वपूर्ण खनिज पाए जाते हैं।

❖ बाड़मेर जिले से खनिज तेल का उत्पादन किया जा रहा है यहां खनिज तेल के शोधन के लिए एक शोधनशाला (Refainary) भी प्रस्तावित हैं।

❖ यहां के लोगों की आजीविका अधिकांशत: पशुपालन, कृषि, मजदूरी, हस्तशिल्प आदि पर निर्भर हैं।

❖ कम पानी की आवश्यकता वाली ज्वार, बाजरा, मोठ, मूंग प्रमुख फसलें हैं।

❖ इंदिरा गांधी नहर के विकास के बाद क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं की वृद्धि के कारण अब कई महत्वपूर्ण फसलों का उत्पादन एवं पेयजल उपलब्ध होने लगा है।

❖ यहां भेड़, बकरियां, गाय और ऊँट आदि पशु पाले जाते हैं।

❖ हथकरघा, हाथी दांत से वस्तुओं का निर्माण, संगमरमर की मूर्तियां, चमड़े की वस्तुएं, नमकीन जैसे खाद्य पदार्थ आदि बनाए जाते हैं।

❖ इस प्रदेश में जनसंख्या का घनत्व राज्य में सबसे कम है।

2. शीत मरुस्थल में मानव जीवन-

❖ भारत के सुदूर उत्तर में स्थित जम्मू और कश्मीर राज्य के उत्तर-पूर्व में स्थित है शीत मरुस्थल लद्दाख। यह तिब्बत के पठार का ही एक भाग है। यहां लद्दाख, लेह और कराकोरम पर्वत श्रेणियां हैं।

❖ यह प्रदेश अधिक ऊंचाई पर होने से शीतकाल में तापमान हिमांक बिंदु से भी नीचे पहुंच जाता है।

❖ वर्ष के अधिकांश समय में यहां बर्फ जमी रहती हैं।

❖ यहां की घाटियों में सफेदा और वेद के वृक्ष अधिक मिलते हैं।

❖ कुछ क्षेत्रों में सेव, खुबानी और अखरोट के वृक्ष भी बहुतायत में पाए जाते हैं।

❖ ठंडी जलवायु के कारण यहां वर्ष पर्यंत कृषि नहीं होती हैं।

❖ लद्दाख में पशुओं की संख्या अधिक हैं। इन पशुओं में भैड़े, बकरियां, याक, घोड़े, जो और जोमो (गाय तथा याक के मिश्रित रूप) आदि प्रमुख हैं।

❖ जानवरों के साथ मौसमी परिवर्तन के अनुसार होने वाले पलायन को मौसमी (ऋतु) प्रवास का जाता है।

❖ लद्दाख जल और विद्युत शक्ति के साधनों से भरपूर हैं।

❖ शियोक, सिंधु, वाका छू, द्रास, जास्कर जैसी बड़ी नदियां हैं।

❖ घाटियों में हर जगह घर नहीं है बस कुछ-कुछ उपजाऊ भूखंडो पर ही पत्थर और गारे की ईंटों से बने घर मौजूद हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘खंभा’ कहा जाता है।

❖ लद्दाख के निवासी भारत-इरानी और भारत-मंगोल प्रजाति के माने जाते हैं।

अध्याय 7. विभिन्न परिवेशों में मानव जीवन (2)

1. मैदानी प्रदेश में मानव जीवन-

❖ हमारे देश के उत्तरी पर्वतीय प्रदेश और प्रायद्वीपीय पठार के मध्य गंगा-यमुना का विशाल मैदान स्थित हैं। यह नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी से निर्मित उपजाऊ क्षेत्र हैं।

❖ यह भारत का सबसे उपजाऊ मैदान हैं। इसे चार भागों में बांटा जा सकता है। हिमालय पर्वत के निचले भागों में जहां कंकड़-पत्थर अधिक पाए जाते हैं, भाबर कहलाता है। यहां नदियां भूमिगत हो जाती है। इसके निकट ही दलदली क्षेत्र पाया जाता है जिसे तराई प्रदेश कहते हैं। नदियों द्वारा बिछाई गई पुरानी जलोढ़ मिट्टी के मैदानों को बांगर जाता है तथा नवीन जलोढ़ मिट्टी के मैदान को खादर कहा जाता हैं।

❖ पोल्पर, साल, सेमल, शीशम, बबूल, हल्दु एवं कई प्रकार की घास पाई जाती है।

❖ पोल्पर का उपयोग प्लाईवुड बनाने में होता है।

❖ यहां की उपजाऊ मिट्टी के कारण अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती हैं।

❖ वर्षा ऋतु में मुख्य रूप से चावल, मक्का, बाजरा, उड़द, गन्ना आदि बोया जाता है। वहीं सर्दियों में गेहूं, सरसों और बरसीम की अच्छी पैदावार होती हैं।

❖ प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों में कानपुर, आगरा, अलीगढ़, मेरठ, मुरादाबाद, फिरोजाबाद और सहारनपुर आदि हैं।

2. तटीय मैदानों में मानव जीवन-

❖ यहां के पूर्वी और पश्चिमी तटीय मैदानों का विभाजन निम्नानुसार किया जा सकता है-

(क) पश्चिमी तटीय मैदान-

काठियावाड़ तट,

कोकण तट,

कन्नड़ तट,

मालाबार तट

(ख) पूर्वी तटीय मैदान-

उत्तरी सरकार तट,

कोरोमंडल तट,

❖ यह प्रदेश भारत के पश्चिमी तट पर गोआ से कन्याकुमारी तक एक संकरी पट्टी में फैला हुआ है जो सामान्यतः 70 से 90 किलोमीटर चौड़ा हैं। इसके पश्चिम में अरब सागर, पूर्व में पश्चिमी घाट में स्थित नीलगिरी, अनामलाई और इलायची की पहाड़ियां स्थित है।

❖ मालाबार तट पश्चिमी तटीय मैदान के दक्षिणी भाग में स्थित है, जो एक संकीर्ण एवं उपजाऊ मैदान हैं। इस तट पर कई लैगून पाए जाते हैं। वेंबानाद इसी प्रकार का एक प्रसिद्ध लैगून है।

❖ वर्ष भर इसका तापमान 25 डिग्री से 30 डिग्री के आसपास ही रहता है।

❖ यहां वार्षिक वर्षा लगभग 250 सेमी से 400 सेमी तक होती हैं जो जून से आरंभ होकर नवंबर तक होती रहती हैं।

❖ इस प्रदेश का एक तिहाई भाग वनों से ढका हुआ है। ऊंचे तापमान और अधिक वर्षा के कारण यहां सघन सदाबहार वन पाए जाते हैं।

❖ यहां पर नारियल के वृक्ष अधिक मिलते हैं। इसके अतिरिक्त सागवान, सिनकोना, साल, रबड़, एबोनी, रोजवुड आदि वृक्ष भी पाए जाते हैं।

❖ मालाबार प्रदेश प्रमुख रूप से उन्नत कृषि प्रदेश हैं।

❖ कालीमिर्च, लौंग, इलाइची और अन्य मसाले यहां अधिक पैदा किए जाते हैं।

❖ तट के निकट स्थित होने के कारण मछलियां पकड़ना भी एक प्रमुख व्यवसाय हैं।

❖ यहां के तटीय भागों में आणविक खनिज, मोनोटाईज, जिरकन, थोरियम तथा भीतरी भागों में चीनी मिट्टी, चूना पत्थर, गारनेट और ग्रेफाइट पाए जाते हैं।

❖ तिरुवनंतपुरम, अलवाये, कोजीकोड़ प्रमुख औद्योगिक नगर है।

अध्याय 8. समाज और हमारे दायित्व

❖ साधारण शब्दों में समाज को व्यक्तियों का एक ऐसा समूह माना जाता है, जिसकी एक समान संस्कृति होती हैं।

❖ समाज सामाजिक संबंधों की एक व्यवस्था है।

❖ सामाजिक संबंध अमूर्त होते हैं, अतः समाज सामाजिक संबंधों की अमूर्त व्यवस्था है।

❖ मनुष्य में स्वभाव से ही सहयोग एवं सह-अस्तित्व की भावना पाई जाती है।वह समाज से अलग अकेला नहीं रह सकता।

❖ मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समाज में रहता है।

❖ समाज में मानव के व्यक्तित्व का विकास होता है। समाज व्यक्ति में अंतर्निहित शक्तियों को विकसित और मर्यादित करता है।

❖ समाज हमारी संस्कृति को न केवल सुरक्षित रखता है, बल्कि उसे अगली पीढ़ी तक भी पहुंचाता है।

❖ समाज के सदस्यों का दृष्टिकोण और सामाजिक व्यवस्थाएँ लोकतांत्रिक, समानतावादी और मानवतावादी होनी चाहिए।

❖ व्यक्ति को समाज के प्रति कर्तव्यों का निर्वाह करने में सक्षम बनाना समाज का कर्तव्य है।

❖ समाज और व्यक्ति परस्पर निर्भर होते हैं, अतः स्वस्थ और सुखी समाज की स्थापना के लिए व्यक्ति के समाज के प्रति कर्तव्य बनते हैं।

❖ हमें बदलते सामाजिक परिवेश को समझकर उसके अनुरूप व्यवहार करना चाहिए।

❖ देश की अर्थव्यवस्था एवं उत्पादन बराबर चलता रहे, इसके लिए नागरिकों को निरंतर कार्य में लगे रहना चाहिए।

❖ प्रजातंत्र में प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता प्राप्त होती हैं।

❖ स्वतंत्रता का अर्थ है- इच्छानुसार काम करना, परंतु इसका मतलब मनमानी करना नहीं है।

❖ सभी व्यक्तियों और संस्थाओं के लोकतांत्रिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।

❖ हमारा संविधान हमसे अपेक्षा करता है कि हम भारतीय सामासिक संस्कृति व परंपराओं का महत्व समझे और उनके स्वस्थ व गौरवशाली स्वरूप का परिरक्षण करें।

❖ वह नागरिक राजनीतिक रूप से जागरूक कहलाता है जो अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सजग रहता है और अपने कर्तव्यों का पालन स्वत: ही करता है।

❖ दूरदर्शन, रेडियो, समाचार पत्र और पत्रिकाएं आदि जन संचार के माध्यमों के उपयोग से हमारे ज्ञान का विस्तार होता है और हमारी राजनीतिक जागरूकता बढ़ती है।

❖ मत (वोट) देने का अधिकार प्रत्येक नागरिक की सबसे बड़ी शक्ति है।

❖ हमें राष्ट्रहित में सोच समझकर मतदान करना चाहिए।

❖ दूसरों का जीवन बचाने के लिए हमें रक्त दान करना चाहिए। रक्तदान महादान है।

❖ कानून और व्यवस्था को बनाए रखने में प्रशासन का सहयोग करना चाहिए।

❖ भूकंप, बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं के समय नागरिकों व प्रशासन की सहायता करनी चाहिए।

❖ प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि हमारी प्राकृतिक धरोहर वन, झील और नदियों की रक्षा और संवर्धन करें।

❖ हमें प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखना चाहिए।

❖ हमें भारतीय संस्कृति के शाश्वत जीवन मूल्यों के साथ राष्ट्रीयता, प्रजातंत्र, समता और विश्व बंधुत्व के आदर्शों को एक समन्वित रूप में समाज में विकसित करना है।

अध्याय 9. लोकतंत्र और समानता

❖ समानता का एक अर्थ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति से उसकी आवश्यकता का ध्यान रखते हुए समान व्यवहार करना और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार काम करने का अवसर उपलब्ध करवाना।

❖ ‘समानता’ लोकतंत्र की मुख्य विशेषता हैं।

❖ हमारे संविधान में समानता का अधिकार एक मौलिक अधिकार हैं।

❖ किसी व्यक्ति का दर्जा या पद चाहे जो हो, सब पर कानून समान रूप से लागू होता है। इसे कानून का शासन कहते हैं।

❖ लोकतंत्र के विभिन्न घटकों में (1)अपने प्रतिनिधि चुने जाने का अधिकार ‘राजनीतिक लोकतंत्र’ है। (2)व्यवसाय व उपभोग की स्वतंत्रता ‘आर्थिक लोकतंत्र’ है। (3)व्यक्ति की प्रतिष्ठा और अवसर की समानता ‘सामाजिक लोकतंत्र’ है।

❖ भारतीय संविधान सरकार को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना का निर्देश देता है।

❖ सरकार किसी से भी उसके धर्म, जाति, समुदाय, लिंग, और जन्म-स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती।

❖ सरकार में किसी भी पद पर नियुक्ति या नौकरी में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता है। धर्म, जाति, समुदाय, लिंग और जन्म-स्थल के आधार पर किसी भी नागरिक को रोजगार के अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता या उसके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।

❖ भारत जैसे लोकतंत्रीय देश में सभी वयस्कों अर्थात 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके नागरिकों को मत (वोट) देने का, अर्थात सरकार सुनने का अधिकार है; चाहे उनका धर्म कोई भी हो, शिक्षा का स्तर या जाति कुछ भी हो, वे गरीब हो या अमीर, स्त्री हो या पुरुष। हर एक को मत देने का अधिकार है।

❖ भारत में कोई भी धर्म या पंथ राजकीय धर्म या पंथ के रूप में मान्य नहीं क्योंकि भारत एक पंथनिरपेक्ष देश हैं।

❖ प्रत्येक को अपने धर्म या पंथ के पालन की स्वतंत्रता है।

❖ संविधान सरकार को निर्देशित करता है कि वह आर्थिक न्याय और अवसर की समानता स्थापित करने के लिए कार्य करे।

❖ अवसर की समानता सुनिश्चित करने के लिए कुछ लोगों को विशेष अवसर देना जरूरी होता है आरक्षण के पीछे उद्देश्य यह है कि समाज के वंचित व पिछड़े वर्गों को विकास के विशेष अवसर देकर उनके सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक विकास के द्वारा उन्हें समाज की मुख्यधारा में बराबरी की स्थिति में लाना।

अध्याय 10. लैंगिक समझ और संवेदनशीलता

❖ हमारी सांस्कृतिक धारणा है कि जिस परिवार में नारी के साथ अच्छा तथा सम्मानजनक व्यवहार होता है, उस पर देवता प्रसन्न रहते हैं। वहां सुख-शांति और समृद्धि होती हैं। अतः नारी को गृहालक्ष्मी कहा गया है।

❖ नारी ने अपने त्याग, प्रेरणा, क्षमा, सहिष्णुता, प्रेम और ममता से परिवार, समाज और राष्ट्र को सम्मुनत किया है।

❖ प्राचीन भारत में नारी की स्थिति सुखद थी। उस काल में महिलाएं सभी कार्यों में पुरुषों के समान बराबरी से भाग लेती थी। कोई कार्य लिंग के आधार पर बंटा हुआ नहीं था।

❖ हमें उस काल की गार्गी, मैत्री, लोपामुद्रा आदि उच्च शिक्षित महिलाओं का उल्लेख मिलता है, जो पुरुषों के साथ शास्त्रार्थ में भाग लेती थी।

❖ राजतरंगिणी में उल्लेख है कि सुगंधा, विद्दा और कोटा नामक महिलाओं ने बहुत समय तक कश्मीर में शासन का संचालन किया था।

❖ परवर्ती काल में विशेषकर मध्य काल में भारतीय नारी के पारंपरिक स्थिति में गिरावट आ गई थी।

❖ बदली हुई परिस्थितियों में उसे शिक्षा से वंचित रहना पड़ा।

❖ बाल विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा, दहेज प्रथा जैसी अनेक कुप्रथाओं से उसे पीड़ित होना पड़ा।

❖ इस काल में दुर्गावती, अहिल्याबाई, और 19वीं शताब्दी में झांसी की रानी लक्ष्मी बाई जैसी साहसी महिलाओं ने अपने राज्य का शासन-संचालन करते हुए शत्रु से लोहा लिया। भक्ति मति मीराबाई ने जनमानस पर व्यापक प्रभाव डाला।

❖ 19वीं शताब्दी में समाज सुधारकों ने नारी की स्थिति में सुधार के लिए अनेक प्रयास किए।

❖ राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के विरुद्ध कानूनी प्रतिबंध लगवाया।

❖ ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने विधवा-विवाह के समर्थन में जागृति पैदा की। इनके संबंध में कानून भी बनाए गए।

❖ स्वामी दयानंद सरस्वती ने महिला शिक्षा के लिए कार्य किये।

❖ महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने भी नारी-उत्थान के लिए कार्य किया।

❖ लिंग-भेद स्त्री और पुरुष की शारीरिक बनावट पर आधारित जैविक अन्तर है, जो स्त्रीत्व और पुरुषत्व का आधर है। प्राकृतिक होने के कारण इस प्रकार का अंतर सभी जगह और सभी समय समान होता है।

❖ लैंगिक भेद को ‘लैंगिक असमानता’ भी कह सकते हैं।

❖ स्त्रियों और पुरुषों के बीच अधिकारों, अवसरों, कर्तव्यों तथा सुविधाओं के बीच असमानता पर आधारित बटवारा लैंगिक भेद हैं।

❖ लैंगिक संवेदनशीलता का अर्थ है कि स्त्री और पुरुष दोनों के प्रति समान भाव अनुभव करना। लैंगिक संवेदनशीलता को लैंगिक समानता भी कहते हैं।

लैंगिक भेदभाव के विभिन्न रूप

❖ लड़के और लड़कियों के पालन-पोषण के दौरान ही यह मान्यता उनके मन में बैठा दी जाती हैं की महिलाओं की मुख्य जिम्मेदारी घर चलाने और बच्चों का पालन पोषण करने की है।

❖ हम देखते हैं कि परिवार में खाना बनाना, सफाई करना, बर्तन और कपड़े धोना आदि घरेलू कार्य महिलाएं करती हैं।

❖ पुरुषों की तुलना में शिक्षित स्त्रियों की संख्या कम है। वर्तमान समय में बड़ी संख्या में लड़कियां स्कूल जा रही हैं। परंतु बहुत-सी लड़कियां गरीबी, शिक्षण-सुविधाओं के अभाव व अन्य कारणों से शिक्षा पूरी किए बिना ही विद्यालय छोड़ देती है। विशेषकर वंचित वर्ग, आदिवासी और मुस्लिम वर्ग की लड़कियां बड़ी संख्या में बीच में स्कूल छोड़ देती है।

❖ घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिए जाने के कारण सार्वजनिक जीवन में खासकर राजनीति में महिलाओं की भूमिका नगण्य है। सार्वजनिक जीवन पुरुषों के कब्जे में हैं और महिलाओं को कम भागीदारी दी जाती है। उन्हें सामुदायिक कार्यों के नेतृत्व के पर्याप्त अवसर नहीं दिए जाते हैं।

❖ यद्यपि भारत में महिलाओं ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, न्यायाधीश जैसे उच्च पदों को सुशोभित किया है, किंतु संसद, विधानसभाओं और मंत्री मंडलों में पुरुषों का वर्चस्व रहा है।

❖ महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए सामाजिक और वैधानिक दोनों स्तरों पर अनेक प्रयास किए गए हैं।

❖ आज सेना, पुलिस, वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रबंधक और विश्वविद्यालय शिक्षक जैसे पेशों में भी बहुत सी महिलाएं कार्य कर रही हैं।

अध्याय 11 राजस्थान का सामाजिक आर्थिक और प्रौद्योगिकी विकास

❖ राजस्थान क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य है। इसका क्षेत्रफल 342239 वर्ग किलोमीटर है।

सामाजिक विकास

❖ शिक्षा लोगों की उत्पादकता और रचनात्मकता में वृद्धि करती है और तकनीकी विकास को भी बढ़ावा देती हैं।

❖ राज्य सरकार विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं, जैसे सतत शिक्षा एवं साक्षरता कार्यक्रम, सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान और साक्षर भारत मिशन आदि के माध्यम से संपूर्ण साक्षरता और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु प्रयासरत हैं।

❖ सन 1951 में राजस्थान का साक्षरता प्रतिशत 8.02 था जो 2011 में बढ़कर 7.17 प्रतिशत हो गया है।

❖ राज्य में ‘निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009’ दिनांक 01 अप्रैल 2011 से लागू किया गया है जिसमें 6 से 14 वर्ष तक के प्रत्येक बालक-बालिका के लिए प्रारंभिक शिक्षा को निशुल्क प्राप्त करने का कानूनी अधिकार दिया गया है।

❖ शिक्षा के गुणवत्तापूर्ण सार्वजनीकरण हेतु प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर पर आदर्श विद्यालय योजना प्रारंभ की गई हैं।

❖ शिक्षा में गुणवत्ता वृद्धि के लिए स्टेट इनिशिएटि फोर क्वालिटी एजुकेशन (एस. आई. क्यू. ई.) कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है।

❖ सरकार ने गरीब से गरीब व्यक्ति और दूरस्थ क्षेत्रों में भी सस्ती व गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ करवाने के लिए अनेक कदम उठाए हैं।

❖ मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना, निशुल्क जांच योजना, जननी-शिशु सुरक्षा योजना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मुख्यमंत्री बीपीएल जीवन रक्षा कोष जैसी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्रदेश चिकित्सा एवं स्वास्थ्य क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है।

❖ ‘108 निशुल्क एंबुलेंस सेवा’ व ‘104 निशुल्क सेवा’ तथा जननी एक्सप्रेस योजना के उपलब्ध होने से चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच जनसाधारण तक हो गई हैं।

❖ मुख्यमंत्री आवास योजना और मुख्यमंत्री जन आवास योजना के माध्यम से आवासहीन गरीब परिवारों को सस्ता आवास उपलब्ध करवाने का कार्य किया जा रहा है।

❖ स्वच्छता अभियान के अंतर्गत सरकार शौचालयहीन घर वाले गरीब परिवारों को शौचालय निर्माण करवाने के लिए सहायता दे रही हैं।

❖ खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के माध्यम से आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को सस्ती दर पर खाद्यान्न उपलब्ध करवाए जा रहे हैं।

आर्थिक विकास

❖ हमारी राज्य की अर्थव्यवस्था मूलत: कृषि एवं ग्राम आधारित हैं।

❖ लगातार पड़ने वाले अकाल एवं सूखे की वजह से राजस्थान की गिनती पिछड़े राज्यों में की जाती थी।

❖ राज्य संगमरमर, खनिज, तांबा, जस्ते की खानों और नमक के भंडारों के लिए प्रसिद्ध है।

❖ राज्य में मुख्यतः खनिज और वस्त्र आधारित उद्योग हैं।

❖ राजस्थान देश का द्वितीय सबसे बड़ा पॉलिएस्टर फाइबर और सीमेंट का उत्पादक राज्य है।

❖ उद्योगों की स्थापना व अन्य आवश्यक सुविधाएं व सहायता उपलब्ध कराने हेतु राज्य में वर्तमान में 36 जिला उद्योग केंद्र एवं 7 केंद्र कार्यरत हैं।

❖ राज्य में प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों, जैसे- जैव प्रौद्योगिकी, कृषि आधारित खाद्य प्रसंस्करण, रसायन, चमड़ा, कपड़ा, परिशुद्ध घटक, गृह उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी (आई. टी.) सौर ऊर्जा एवं ऑटोमोबाइल उद्योगों के विकास में तेजी लाने के लिए रिको द्वारा विशिष्ट पार्क यथा- एग्रो फूड पार्क, नीमराना में जापानी पार्क आदि विकसित किए गए हैं।

❖ राज्य में विद्युत ऊर्जा उत्पादन की मुख्य परियोजनाओं में राजस्थान आण्विक ऊर्जा परियोजना-रावत भाटा; कोटा और सूरतगढ़ तापीय परियोजनाएँ; धौलपुर गैस आधारित तापीय परियोजनाएँ; माही जल विद्युत परियोजना है।

❖ भाखड़ा, व्यास, चम्बल और सतपुड़ा अन्तरराज्यीय भागीदारी वाली परियोजनाएं है।

❖ केंद्रीय सेक्टर से राज्य को सिंगरोली, रिहंद, अन्ता, औरेया, दादरी गैस संयत्र, टनकपुर, उरी हाइड्रल परियोजनाओं से विद्युत प्राप्त हो रही है।

❖ राज्य में सौर ऊर्जा संयंत्रों में वृद्धि होती जा रही है।

❖ बाड़मेर एवं जैसलमेर जिलों में पेट्रोलियम उत्पाद प्राप्त होने से राजस्थान में औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिला है।

❖ दिल्ली मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (डी.एम.आई.सी.) का एक बड़ा हिस्सा राजस्थान राज्य से होकर गुजरेगा।

प्रौद्योगिकी विकास

❖ कम समय एवं कम खर्च में प्रकृति में निहित संसाधनों के उपयोग के तरीके खोजना प्रौद्योगिकी विकास कहलाता है।

❖ राजस्थान में प्रौद्योगिकी शिक्षा तथा विकास को बढ़ावा देने के लिए ‘राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय’ की स्थापना की गई हैं।

❖ राज्य में ‘सूचना प्रोद्योगिकी पार्क’ एवं ‘नॉलेज कॉरिडोर’ की स्थापना की योजनाओं पर भी कार्य हो रहे हैं।

❖ राजकीय सेवाओं से संबंधित जानकारी प्रदान करने एवं जनता की शिकायतों के निवारण के उद्देश्य से राजस्थान संपर्क पोर्टल www.sampark.rajasthan.gov.in का सफलतापूर्वक संचालन किया जा रहा है।

❖ जोधपुर, नागोर, बीकानेर में सौर उर्जा तथा बाड़मेर और जैसलमेर में तेल व गैस के भंडारों के विकास से एवं दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरीडोर के एक बड़े भाग के राजस्थान से जुड़े होने से राज्य में विकास और रोजगार के नये अवसर पैदा हो रहे हैं।

अध्याय 13. सरकार और लोक कल्याण

❖ लोक कल्याणकारी सरकार अपने नागरिकों के लिए विभिन्न प्रकार के कल्याणकारी कार्यों की व्यवस्था करती है।

❖ एक अच्छे शासन में समाज के विभिन्न समूहों और उनके विचारों को उचित सम्मान दिया जाता है।

❖ स्वतंत्रता के पश्चात भारत के संविधान ने भारत को एक लोकतांत्रिक और लोक कल्याणकारी राज्य घोषित किया है।

❖ संविधान ने सरकार को यह जिम्मेदारी दी है कि वे ऐसे कार्यक्रम और योजनाएं संचालित करेगी जिन से आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक न्याय स्थापित हो।

❖ भारतीय संविधान के भाग 4 में वर्णित राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में सरकार की इन जिम्मेदारियों का वर्णन किया गया है, जिनसे लोक कल्याण हो।

लोक कल्याणकारी कार्यक्रम

❖ सरकार के लोक कल्याणकारी कार्यक्रम और योजनाएं दो प्रकार की होती है – प्रथम वे, जो कि सभी नागरिकों के लिए होती है तथा दूसरी वे, जो किसी वर्ग विशेष के उत्थान के लिए होती हैं, जैसे निर्धन रेखा से नीचे (बी.पी.एल) जीवन जीने वालें वर्गों के लिए योजनाएं।

1. शिक्षा-
❖ व्यक्तित्व के विकास के लिए शिक्षा का महत्व सर्वाधिक है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार ने प्राथमिक शिक्षा को एक नागरिक अधिकार का दर्जा दिया है। इसके लिए नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम बनाया गया है। इसके अंतर्गत 6 से 14 वर्ष की आयु वर्ग के बालकों के लिए नि:शुल्क, अनिवार्य और गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा की व्यवस्था का प्रावधान है।

❖ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक वर्ग और विशेष योग्यजन वर्ग के विद्यार्थियों, अनाथ विद्यार्थियों तथा अन्य प्रतिभावान विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति व अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाती हैं।

2. खाद्य सुरक्षा-
❖ लोक कल्याणकारी राज्य के लिए यह आवश्यक है कि उसके नागरिकों को सम्मानपूर्वक दो वक्त का भोजन प्राप्त हो।

❖ सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी.डी.एस.) के माध्यम से सरकार आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों (जो कि ‘अंत्योदय योजना’ में चयनित हैं या बी.पी.एल. वर्ग से संबंधित हैं) और अन्य समूह को सस्ती दरों पर गेहूं, चीनी आदि खाद्यान्न उपलब्ध करवा रही है। उचित मूल्य पर केरोसिन भी उपलब्ध करवाया जाता है।

3. चिकित्सा- 
❖ राजस्थान सरकार द्वारा ‘मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा व जांच योजना’ के अंतर्गत सरकारी अस्पतालों में रोगियों को निशुल्क दवाइयां उपलब्ध करवाई जा रही है तथा अधिकतर चिकित्सा जांचें भी निशुल्क की जाती हैं। पशुओं के लिए भी निशुल्क दवाइयां उपलब्ध करवाई जा रही है।

❖ टोल फ्री 104 टेलीफोन नंबर पर कोई भी नागरिक स्वास्थ्य समस्या के समाधान हेतु विशेषज्ञ चिकित्सकों से परामर्श प्राप्त कर सकता हैं।

❖ ‘जननी व शिशु सुरक्षा’ योजना के अंतर्गत माता व शिशु को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा रही हैं।

4. आवास-
❖ आवासहीन चयनित ग्रामीण गरीब परिवारों को ‘मुख्यमंत्री आवास योजना’ और ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ में नि;शुल्क भूखंड व आवास निर्माण हेतु अनुदान उपलब्ध करवाया जा रहा है।

❖ शहरी क्षेत्रों में ‘मुख्यमंत्री जन आवास योजना’ में आवासहीन गरीब परिवारों को वहनीय मूल्य पर आवास उपलब्ध करवाया जा रहा है।

5. रोजगार-
❖ ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम’ (महात्मा गांधी नरेगा) के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में पंजीकृत अकुशल श्रमिक द्वारा रोजगार की मांग करने पर उसके घर के निकट ही वर्ष में न्यूनतम 150 दिन का रोजगार उपलब्ध करवाने की गारंटी सरकार द्वारा प्रदान की गई हैं।

❖ राज्य में जगह-जगह रोजगार प्रशिक्षण केंद्र खोले गए हैं, जिनमें युवाओं में कौशल विकास के लिए विभिन्न उद्योगों से संबंधित कौशलों का प्रशिक्षण दिया जाता है।

6. श्रम कानून-
❖ मजदूरों एवं कामगारों को शोषण से बचाने के लिए उनके काम के घंटे और न्यूनतम मजदूरी निश्चित की गई है। उनके श्रम संबंधी विवादों के समाधान के लिए श्रम कानून बनाए गए हैं।

7. सामाजिक सुरक्षा पेंशन एवं बीमा योजनाएं-
❖ वृद्धजन, एकल महिलाओं, विशेष योग्यजनों व अन्य चयनित जरूरतमंदों को सरकार द्वारा हर महीने पेंशन प्रदान कर उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जा रही है।

❖ किसानों की फसलों के लिए ‘फसल मौसम बीमा’ प्रदान किया जा रहा है।

8. भामाशाह योजना-
❖ यह वित्तीय समावेशन हेतु एक योजना है। इस योजना के अंतर्गत परिवार की महिला को परिवार का मुखिया बनाकर परिवार के सदस्यों का नामांकन किया जाता है।

❖ इससे महात्मा गांधी नरेगा मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा पेंशन राशि, छात्रवृत्ति राशि एवं अन्य योजनाओं का धन सीधे व शीघ्रता से खाताधारक के खाते में जमा करवाने की सुविधा मिल जाती है।

❖ इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक ग्राम पंचायत मुख्यालय पर स्थापित ‘अटल सेवा केंद्र’ पर मिनी बैंकिंग सेवाएं भी उपलब्ध है।

9. ई गवर्नेंस-
❖ नागरिक बिना सरकारी कार्यालय में जाए अपने घर के नजदीक ही या घर बैठे भी अपना काम करवा सके इसके लिए इंटरनेट प्रणाली पर आधारित ई-गवर्नेंस व्यवस्था प्रारंभ की गई हैं।

❖ ग्राम पंचायत स्तर पर स्थित अटल सेवा केंद्र पर ई मित्र व मिनी बैंकिंग जैसी अनेक सेवाएं उपलब्ध करवाई जा रही है।

❖ कंप्यूटर शिक्षा प्रदान करने के लिए डिजिटल इंडिया अभियान चलाया जा रहा है।

लोक कल्याण एवं सरकार की जवाबदेही

1. सूचना का अधिकार अधिनियम-
❖ सूचना के अधिकार की प्राप्ति के लिए राजस्थान का योगदान में देश में महत्वपूर्ण रहा है।

❖ सन 2000 में राजस्थान में तथा सन 2005 में राष्ट्रीय स्तर पर कानून बने। इन कानूनों के बन जाने पर कोई भी नागरिक सरकार की नीति, योजना, कार्य एवं हिसाब-किताब से संबंधित रिकॉर्ड की सूचना सरकार के संबंधित विभाग से मांग सकता हैं।

2. राजस्थान लोक सेवाओं की प्रधान की गारंटी अधिनियम-2011-
❖ इस अधिनियम के द्वारा 18 सरकारी विभागों के 53 विषयों की 153 सेवाओं को शामिल किया गया हैं। इनमें मुख्य हैं – उर्जा, पुलिस, चिकित्सा, यातायात, स्थानीय निकाय, खाद्य एवं आपूर्ति, सार्वजनिक निर्माण विभाग आदि।

3. राजस्थान सुनवाई का अधिकार अधिनियम-
❖ अगस्त 2012 से इस अधिनियम को पूरे राज्य में लागू किया गया हैं।

❖ ग्राम पंचायत से लेकर संभाग स्तर तक प्रशासन के प्रत्येक स्तर पर जनता की शिकायतें सुनने के लिए लोक सुनवाई अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। उदाहरण के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में किसी भी विभाग की शिकायत या समस्या ग्राम पंचायत स्तर के लोक सुनवाई अधिकारी (ग्राम सेवक पदेन सचिव) को दी जा सकती हैं।

अध्याय 14. संचार माध्यम और लोकतंत्र

❖ मीडिया अंग्रेजी शब्द मीडियम से बना है जिसका अर्थ होता है- ‘माध्यम’। विचारों और सूचनाओं के आदान-प्रदान की प्रणाली को हम ‘संसार माध्यम’ या ‘मीडिया’ कहते हैं।

❖ रेडियो, दूरदर्शन, सिनेमा, समाचार-पत्र व पत्रिकाएं, टेलीफ़ोन, कंप्यूटर आदि मीडिया के विभिन्न रुप हैं जो वर्तमान समय में प्रचलित हैं।

❖ अखबार, रेडियो, टेलीविजन और इंटरनेट की सोशल साईट्स की पहुंच बड़े जनसमूह तक होने एवं अधिक लोगों को एक साथ प्रभावित करने के कारण इन्हें ‘जन संसार के माध्यम’ (मास मीडिया) कहा जाता है।

❖ समाचार-पत्र, पत्रिकाएं, जर्नल आदि ‘मुद्रण माध्यम’ (प्रिंट मीडिया) के उदाहरण है। इन्हें हम मीडिया का सबसे पुराना रुप कह सकते हैं।

❖ रेडियो, टेलिविजन आदि ब्रॉडकास्टिंग माध्यम या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (इलेक्ट्रॉनिक मीडिया) की श्रेणी में आते हैं। ये माध्यम घटनाओं को प्रभावी ढंग से दिखाते हैं और विशेषज्ञों के माध्यम से उनका विश्लेषण करते हैं जिससे दर्शकों को किसी घटना के सभी पहलुओं को समझने का मौका मिलता है।

❖ संचार के माध्यमों से हमें देश-विदेश में होने वाली राजनीतिक, प्राकृतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, खेल, गीत-संगीत, शिक्षा, विज्ञान तथा तकनिकी से संबन्धित सूचनाओं और महत्वपूर्ण घटनाओं की जानकारी प्राप्त होती है।

❖ समाचार-पत्र, टेलीविजन, रेडियो आदि संचार माध्यम जनमानस के विचारों एवं दृष्टिकोण के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

❖ स्वतंत्र एवं निष्पक्ष संचार माध्यम (मीडिया) लोकतंत्र की अनिवार्य शर्त हैं। यह सरकार एवं जनता के बीच मध्यस्थता का कार्य करता हैं।

❖ मीडिया द्वारा ना केवल समाचार व सूचना प्रसारण किया जाता हैं, बल्कि व्यापक स्तर पर जनमत के निर्माण में भी इसकीअहम भूमिका होती हैं। व्यापक जनसमूह तक पहुंच के कारण इसे सशक्त माध्यम माना गया हैं।

❖ ‘प्रेस’ मीडिया का ही एक रुप हैं जिसे शासन का चौथा स्तंभ माना गया है। लोकतांत्रिक देशों में विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। इस स्वतंत्रता का उपयोग प्रेस के कारण सही ढंग से हो सकता हैं।

❖ अखबार में लेखों एवं टेलीविजन पर चर्चा द्वारा वास्तविकताओं को जनता के समक्ष रखा जाता है जिससे साधारण नागरिक भी सरकार द्वारा किए जाने वाले कार्यों को जान सके एवं विचार निर्माण कर सके।

❖ एक आदर्श मीडिया की अवधारणा में मीडिया सूचना प्रदाता, सकारात्मक, सृजनात्मक, प्रेरणादायी और मनोरंजक होता है।

❖ मीडिया लोकतंत्र एवं मानव अधिकारों का एक सशक्त रक्षक हैं।

❖ एक उत्तरदायी मीडिया देश में कानून व्यवस्था को बनाए रखने तथा राष्ट्रीय एकता अखंडता को कायम रखने में अद्वितीय भूमिका निभाता है।

अध्याय 15. वृहत्तर भारत

भारतीय संस्कृति और सभ्यता का प्रचार

1. संस्कृति व ज्ञान-विज्ञान –
❖ भारत की सभ्यता व संस्कृति विश्व में उन्नत रही हैं। सम्राट हर्ष के काल तक भारत कला, साहित्य, शिक्षा और विज्ञान में संपूर्ण विश्व में आगे था, इसलिए प्राचीन काल में भारत विश्व गुरु कहलाता था।

❖ भारत में नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला और गया के विश्वविद्यालय शिक्षा के बड़े केंद्र थे। भारत के अलावा चीन, जापान, तिब्बत, श्रीलंका, कोरिया, मंगोलिया आदि देशों के विद्यार्थी भी यहां ज्ञान प्राप्त करने आते थे।

❖ भारत की प्रसिद्धि सुनकर अनेक विदेशी यात्री भी इस काल में यहां आए। फाह्यान, ह्वेनसांग और इत्सिंग नामक चीनी यात्री प्रमुख थे।

❖ भारत से मलमल, छींट, रेशम व जरी के वस्त्र; नील, गरम मसाले, लोह-इस्पात की वस्तुएं आदि भारी मात्रा में निर्यात की जाती थी। यह माल जावा-सुमात्रा आदि दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों तथा पश्चिम व मध्य एशिया से आगे तक भेजा जाता था।

❖ बर्मा, स्याम, मलय प्रायद्वीप, कंबोडिया, सुमात्रा, जावा, बोर्निया, बाली, अन्नाम, सुवर्णदीप, हिंद-चीन आदि स्थानों पर भारतीय भाषा, साहित्य, धर्म, कला आदि के प्रभाव वहां के जन-जीवन में आज भी देखने को मिलते हैं।

2. भाषा और साहित्य
❖ संस्कृत में लिखें गए अभिलेख बर्मा, स्याम, मलय प्रायद्वीप, कंबोडिया, अन्नाम, सुमात्रा, जावा और बोर्नियो में पाए गए हैं। इनमें से सबसे प्राचीन लेख ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी के हैं। वहां संस्कृत का प्रयोग 1000 वर्षों से अधिक काल तक होता रहा।

❖ हिंद-चीन के अधिकांश भागों में आज पालि भाषा जो संस्कृत से निकली हुई है, दैनिक प्रयोग में आती हैं।

❖ चंपा में 100 से अधिक संस्कृत अभिलेख मिले हैं। कम्बुज में मिले अभिलेखों की संख्या न केवल इनसे अधिक हैं वरन वे साहित्य की दृष्टि से भी उच्च कोटि के हैं।

❖ यशोवर्मन के चार अभिलेखों क्रमश: 50, 75, 93 और 108 छंदों के हैं। राजेंद्रवर्मन का एक लेख 218 छंदों और दूसरा 268 छंदों का हैं।

❖ राजा और बड़े अधिकारी भी साहित्यिक कार्यों में नेतृत्व करते थे। चंपा के तीन नरेशों के विद्वान होने का उल्लेख मिलता है। उनमें से एक तो चारों वेदों का ज्ञाता था। कंबुज नरेश यसोवर्मन के बारे में कहा जाता है कि वह शास्त्र और काव्यों का रसिक था।

❖ महत्वपूर्ण रचनाओं में रामायण और महाभारत का जावी भाषा में गद्य अनुवाद उल्लेखनीय हैं।

❖ बोधिरुचि नामक विद्वान 693 ई में चालुक्य राजसभा में नियुक्त चीनी राजदूत के साथ नालंदा से चीन गया। उसने 53 ग्रंथों का अनुवाद किया।

3. धर्म-
❖ बर्मा और स्याम में बौद्ध धर्म प्रधान था। जहाँ बौद्ध धर्म प्रधान था वहा सभी हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी पाई गयी है।

❖ यद्यपि त्रिमूर्ति अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु और शिव की पूजा प्रचलित थी। परंतु शिव की पूजा मुख्य रुप से होती थी।

❖ कुछ अवस्थाओं में तो पुराने विश्वास और रीति रिवाजों ने नये पंथों को भी प्रभावित किया। इसका श्रेष्ठ उदाहरण जावा की बहुत लोकप्रिय मूर्ति ‘भटार गुरु’ है।

❖ कम्बुज के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि अनेक विद्वान लोग भारत से कम्बुज जाते थे और वहां सम्मान प्राप्त करते थे। वहां के कई विद्वान लोग भारत आते थे। उदाहरण के लिए हम शिवसोम को ले सकते है जो वहां के राजा इन्द्रवर्मन के गुरु थे। इन्होनें भगवत शंकर, जो शंकराचार्य हो सकते है, के साथ शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया था।

❖ कम्बुज की दूसरी मुख्य विशेषता आश्रमों की संख्या है, जो सारे कम्बुज में फैली थी। राजा यशोवर्मन ने 100 आश्रम स्थापित किये थे।

4. समाज-
❖ बाली और कंबोज के निवासियों में जो जाति व्यवस्था का स्वरूप आज दिखता है, उसे हम भारत की प्राचीन वर्ण व्यवस्था का उदाहरण समझ सकते हैं।

❖ जुआ, मुर्गों की लड़ाई, संगीत, नृत्य, और नाटक लोगों के मनोरंजन के प्रमुख साधन थे। जावा में नाटक का लोकप्रिय रूप ‘छाया नाट्य’ हैं जो ‘वयंग’ कहलाता है। ‘वयंग’ के कथानक मुख्यत: रामायण और महाभारत से लिए गए हैं।

❖ भारत की तरह ही वहां के समाज का मुख्य खाद्य चावल और गेहूँ ही था।

5. कला-
❖ वहां के प्राचीन कलाकृतियां, वहां जाकर बसने वाले भारतीय कलाकारों की ही कृतियां मानी जाती हैं।

(A) जावा का मंदिर-
❖ जावा का सबसे महत्वपूर्ण वास्तुशिल्प वहां का ‘बरोबोदूर’ मंदिर हैं, जो 750 से 850 ईस्वी के बीच शैलेंद्रों के संरक्षण में बना था। इस भव्य भवन में एक के ऊपर एक नौ मंजिलें बनी हुई हैं तथा सबसे ऊपर एक घंटानुमा स्तूप हैं।

❖ बरोबोदूर की दूसरी उल्लेखनीय विशेषता इसके बरामदों में बनी मूर्तियों की पंक्तियां हैं। मूर्तियों की पंक्तियों की कुल 11 श्रंखलाएं हैं और कुल संख्या लगभग 1500 हैं।

❖ ‘बरोबोदूर’ की बुद्ध की मूर्तियां और ‘मेनदूत’ की बोधिसत्व मूर्तियां की स्वतंत्र मूर्तियां जावा की मूर्तिकला के सुंदरतम नमूनों में मानी जा सकती हैं।

❖ यद्यपि जावा का कोई अन्य मंदिर ‘बरोबोदूर’ के मंदिर जितना विशाल नहीं हैं और न ही उसके जैसी भव्यता पा सका, तथापि वहां की प्रम्बनन की घाटी में स्थित ‘लारो-जंगरंग’ के मंदिर का स्थान द्वितीय माना जा सकता है। इसमें आठ मुख्य मंदिर हैं। उनमें शिव की मूर्ति प्रतिष्ठित हैं।

❖ ‘बरोबोदूर’ और ‘लोरो-जंगरंग’ जावा और भारतीय कला के शास्त्रीय और रोमांचक स्वरुपों को व्यक्त करते हैं।

(B) कम्बुज का मंदिर-
❖ कम्बुज में ‘अंगकोर’ नामक स्थान के आरंभिक वास्तुशिल्पों में कुछ मंदिर हैं, जिनकी भारतीय मंदिरों से बहुत कुछ साम्यता हैं। मंदिर के मध्य और किनारे के शिखर उत्तर भारतीय शैली के हैं।

❖ मंदिर की चारदीवारी के बाहर 650 फीट चौड़ी खाई हैं एवं 36 फीट चौड़ा पत्थर का रास्ता हैं। खाई मंदिर के चारों ओर हैं, जिसकी लंबाई लगभग 2 मील हैं। पश्चिम फाटक से पहले बरामदें तक की सड़क 1560 फीट लंबी और 7 फीट ऊंची हैं। अंतिम मंजिल का केंद्रीय शीर्ष जमीन से 210 फीट की ऊंचाई पर हैं।

(C) आनन्द मंदिर-
❖ बर्मा में सर्वोत्तम मंदिर पेगन का ‘आनंद’ मंदिर हैं। यह 1564 वर्ग फीट के चौकोर आँगन के बीच में स्थित हैं।

❖ मुख्य मंदिर ईंटों का बना हुआ और वर्गाकार हैं।

❖ पत्थर की उत्कीर्ण मूर्तियों की संख्या 80 हैं और उनमें बुद्ध के जीवन की मुख्य घटनाएं अंकित है। यह मंदिर भारतीय शैली में ही विकसित हुआ हैं।

अध्याय 16. हर्षकालीन व बाद का भारत

❖ हर्ष एक वीर योद्धा और विजेता था। उसके प्रमुख अभियानों में बंगाल, पंजाब, चालुक्य और वल्लभी से हुए युद्ध शामिल है।वह सिन्धु, नेपाल, उड़ीसा तक अपने अभियानों से अपना प्रभाव डालने में सफल रहा।

❖ हर्ष प्रारंभ में सुर्य और शिव का उपासक था, बाद में बौद्ध बन गया, किन्तु सभी धर्मों के प्रति उसकी नीति उदार थी। उसके राज्य में शैव, वैष्णव, जैन और बौद्ध धर्म स्वतंत्रता पूर्वक प्रचलित थे।

❖ हर्षवर्धन ने कन्नौज में में एक विशाल धर्म सम्मेलन का आयोजन किया। चीनी यात्री ह्वेनसांग को इसका अध्यक्ष बनाया। यह सम्मेलन 23 दिन तक चला। अनेक बौद्ध भिक्षु, चीनी यात्री, राजा और विद्वानों ने भाग लिया था।

❖ हर्ष प्रत्येक पाँच वर्ष के अंतराल में प्रयाग में एक सभा का आयोजन करता था। 643 ईस्वी में छठी सभा हुई थी।

❖ हर्ष अपने पांच वर्ष की एकत्रित संपति को बांट देता था। यहाँ तक कि स्वयं के धारण किये हुए वस्त्र तक दान में दे देता था। स्वयं के पहिनने के लिए बहिन से मांग कर बदन ढकता था। इस सभा को ‘मोक्ष परिषद्’ भी कहा जाता था।

❖ अभिलेखों तथा बाणभट्ट के ‘हर्ष चरित’ में हर्ष को ‘हर्षदेव’ कहा गया है।

❖ नालंदा मुहर में एक अभिलेख हैं, जिसमें हर्ष को महाराजाधिराज कहा गया है।

❖ हर्ष को ‘रत्नावली’, ‘प्रियदर्शिका’ और ‘ नागानन्द’ की रचना का श्रेय भी दिया जाता है।

❖ जयदेव ने अपनी कृति ‘गीत गोविन्दम’ में कहा है कि कालिदास और भास की भाँति हर्ष भी एक महाकवि था।

❖ हर्ष के दरबार में कई विद्वान भी थे। बाणभट्ट उनमे प्रमुख था और उसने ‘हर्ष चरित’ और ‘कादम्बरी’ की रचना की।

❖ हर्ष वर्धन ने दिन को तीन भागों में बांट दिया था, जिनमे से एक भाग राज्य कार्य के लिए निश्चित था। वह प्रजा को देखने स्वयं नगरों और ग्रामों में यात्रा करता था।

❖ हर्ष का साम्राज्य प्रान्तों, भुक्तियों (डिविजन) और विषयों (जिलों) में विभक्त था। सबसे छोटी इकाई ग्राम थी।

❖ प्रशासन चलाने के लिए तीन प्रकार के करों का उल्लेख मिलता है- “भाग” भूमि कर था, “हिरण्य” नकद कर था, “बलि” अतिरिक्त कर था।

❖ दानशीलता के लिए हर्ष विख्यात था। हर्ष ने नालंदा विश्वविद्यालय के लिए 100 से अधिक गाँव दान में दिये थे।

नालंदा विश्वविद्यालय

❖ उत्तर कालीन गुप्त सम्राटों में से एक ने पांचवी शती में इसकी स्थापना की।

❖ नालंदा विश्वविद्यालय में कम से कम आठ कॉलेज थे, जिन्हे आठ विद्यानुरागियों ने बनवाया था।

❖ इस विश्वविद्यालय में 10,000 से भी अधिक विद्यार्थी पढते थे और लगभग 1500 अध्यापक अध्यापन कराते थे। वे कोरिया, मंगोलिया, जापान, चीन, तिब्बत, श्री लंका, वृहत्तर भारत और भारत के विभिन्न भागों से छात्र यहाँ पढ़ने आते थे तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए यहाँ से विभिन्न भागों में लोग जाते भी थे।

❖ नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन के प्रमुख विषय वेद, तर्क विद्या, व्याकरण,चिकित्सा, विज्ञान, गणित, ज्योतिष, दर्शन, सांख्य, योग, न्याय आदि एवं बौद्ध धर्म की विभिन्न शाखाओं को पढ़ाया जाता था।

दक्षिण भारत के प्रमुख राज वंश

1. राष्ट्रकूट वंश-
❖ राष्ट्रकूटों ने नर्मदा नदी के दक्षिण में वर्तमान महाराष्ट्र प्रदेश में अपना राज्य स्थापित किया।

❖ प्रारंभ में वे चालुक्यों के अधीन थे। बाद में राष्ट्रकूट दंतदुर्ग ने चालुक्यों को हराकर 753 ईस्वी में अपने राज्य का विस्तार किया।

❖ इस वंश के पराक्रमी शासक कृष्ण तृतीय, ध्रुव, गोविंद, अमोघवर्ष आदि थे।

2. चालुक्य वंश-
❖ इस वंश का राज्य नर्मदा नदी के दक्षिण से कृष्णा नदी तक फ़ैला हुआ था।

❖ इस वंश का प्रतापी शासक पुलकेशिन द्वितीय था, जिसने सम्राट हर्षवर्धन को भी पराजित किया था। विक्रमादित्य द्वितीय भी इस वंश का शक्तिशाली शासक था।

❖ एक बार 753 ईस्वी में राष्ट्रकुटों से पराजित होकर चालुक्यों ने 973 ईस्वी में पुन: अपना राज्य स्थापित किया और मध्य हैदराबाद में कल्याणी को अपनी राजधानी बनायी।

3. पल्लव वंश-
❖ इस वंश का शासक महेंद्रवर्मन था जो चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय से पराजित हो गया था। बाद में उसके पुत्र नरसिंह वर्मन ने 642 ईस्वी में चालुक्यों की राजधानी पर अधिकार कर लिया।

❖ 885 ईस्वी में चोल शासक आदित्य प्रथम ने पल्लवों को हराकर उनकी राजधानी कांची पर अधिकार कर लिया और इस प्रकार पल्लव राज्य का अन्त हो गया।

4. चोल वंश-
❖ चोल राज्य कृष्णा और कावेरी नदियों के बीच समुद्रतट पर स्थित था। इस राज्य का विस्तार 864 ईस्वी में चोल शासक विजयालय द्वारा किया गया।

❖ इस वंश का सबसे प्रतापी शासक राजेन्द्र प्रथम था जो 1012 ईस्वी में गद्दी पर बैठा।

❖ राजेन्द्र प्रथम कलिंग व बंगाल को जीतता हुआ गंगा तट तक पहुंच गया और ‘गंगे कौण्ड’ की उपाधि धारण की। उसने जल सेना बना कर बंगाल की खाड़ी और बर्मा पर भी विजय प्राप्त की।

शासन व्यवस्था-
❖ दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंशों की शासन व्यवस्था में राजा सर्वोपरि माना जाता था।

❖ पल्लवों ने राज्य को राष्ट्र, कोट्टम तथा ग्रामों में विभाजित किया था। चोलों ने मंडल तथा नाडू में विभाजित किया। तमिल प्रदेश के इन नाडूओं के कारण ही वर्तमान नाम तमिलनाडू रखा गया है।

साहित्य एवं कला-
❖ दक्षिण भारत में तमिल एवं संस्कृत दोनों भाषाओं की उन्नति हुई।

❖ राष्ट्रकूटों के समय वल्लभी और कन्हेरी विश्वविद्यालय प्रसिद्ध थे। कांची विद्या का बड़ा केंद्र था।

❖ तमिल भाषा में लिखित ‘कम्बन रामायण’ दक्षिण में बहुत लोकप्रिय हैं।

❖ चालुक्य राजाओं ने हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर बनवाए, इनमें वातापी का विरुपाक्ष मंदिर प्रसिद्ध हैं।

❖ महाबलीपुरम का मंदिर, एलोरा का कैलाश मंदिर और होसबल मंदिर इसी काल में बने।

❖ तंजौर के वृहदेश्वर मंदिर में धातु की बनी नटराज की मूर्ति स्थापित है।

❖ अजंता के भिति चित्र और वृहदेश्वर मंदिर में देवचित्र चित्रकला के अनुपम उदाहरण है।

❖ चोल शासकों द्वारा विष्णु, राम-सीता आदि की सुन्दर मूर्तियाँ बनवाई गई।

उत्तर भारत के प्रमुख राजवंश

1 प्रतिहार वंश-
❖ राजा मिहिर भोज इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था। वह 840 ईस्वी में शासक बना और 50 वर्ष तक राज्य किया।

❖ प्रतिहार शासकों ने सिन्ध से आगे बढ़ती हुई विदेशी शक्ति को लम्बे समय तक रौके रखा था।

❖ इनके शासन में भारत ने सांस्कृतिक उन्नति की।

2. गहड़वाल वंश-
❖ इस वंश का संस्थापक चंद्रदेव था। उसने प्रतिहारों को हराकर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।

❖ गहडवाल वंश का अन्तिम शासक जयचन्द था। वह 1170 ईस्वी में शासक बना।

❖ गौर वंश के शासक मुहम्मद गौरी ने जयचन्द पर आक्रमण किया और कन्नौज पर अधिकार कर गहडवाल वंश की सत्ता समाप्त कर दी।

3. चौहान वंश-
❖ चौहान वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक विग्रह राज था।

❖ पृथ्वीराज चौहान तृतीय इस वंश का सबसे प्रतापी शासक मना जाता है।

❖ पृथ्वीराज चौहान ने 1182 ईस्वी में चंदेल शासक परमाल को पराजित कर साम्राज्य विस्तार किया एवं 1191 ईस्वी में अफगानिस्तान के गौर वंश के शासक मुहम्मद गौरी को तराईन के प्रथम युद्ध में पराजित किया व द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को पराजय का सामना करना पड़ा।

4. गुहिल वंश-
❖ प्राप्त सिक्कों से यह माना जाता है कि इस वंश के प्रथम शासक श्री गुहिल थे।

❖ मेवाड़ के इस शक्तिशाली राजवंश का पराक्रमी शासक बप्पा रावल के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध हुआ।

❖ बप्पा रावल ने नागभट्ट प्रथम आदि शासकों का संघ बनाकर सिन्ध को अरब आक्रमणकारियों से स्वतंत्र किया तथा अनेक क्षेत्रों को जीतकर अपना प्रभाव स्थापित किया। आगे चल कर यही वंश सिसोदिया वंश कहलाया।

❖ इस वंश में राणा हम्मीर, क्षेत्र सिंह, राणा मोकल, राणा कुम्भा, राणा साँगा, राणा प्रताप एवं राणा राज सिंह प्रतापी शासक गिने जाते है।

अन्य-
❖ इन प्रमुख राजवंशों के साथ उत्तर भारत में ‘चंदेल वंश’ भी था।

❖ ‘परमार वंश’ का प्रमुख प्रतापी शासक राजा भोज था।

❖ ‘सोलंकी वंश’ के समय महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण कर मंदिर को लूटा व तोड़ा।

❖ ‘पाल वंश’ के काल में विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना हुई।

❖ सेनवंश के काल में गीत गोविंद के रचयिता जयदेव उनके दरबारी थे।

शासन व्यवस्था-
❖ उत्तर भारत के स्वतंत्र राजवंशों की शासन व्यवस्था पूर्णतः निरंकुश थी।

❖ सामन्त प्रथा प्रचलित थी, जो स्वतंत्र रुप से शासक के अधीन रहते हुए कार्य करते थे।

❖ उस समय ग्राम पंचायतें थी जो राजकिय हस्तक्षेप से मुक्त थी।

साहित्य एवं कला-
❖ इस काल में संस्कृत भाषा में विभिन्न विषयों पर ग्रंथ लिखे गये, जिनमें माघ का शिशुपालवध, शारवी का किरतार्जुनियम, कल्हण की राजतंरगिणी और जयदेव का गीत गोविंद प्रमुख है।

❖ इस कल में स्वतंत्र शासकों ने अनेक सुन्दर भवनों एवं मंदिरों का निर्माण कराया, जिनमें भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर, कोणार्क का सूर्य मंदिर, पुरी का जगन्नाथ मंदिर तथा ग्वालियर, चित्तौड़, रणथम्भौर के दुर्ग, राजस्थान के आबूपर्वत पर देलवाड़ा में सफेद संगमरमर के जैन मंदिर आदि बनाये गये।

अध्याय 17. राजस्थान एवं दिल्ली सल्तनत

❖ तुर्की आक्रमणकारियों में गजनी के महमूद गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किये।

❖ महमूद गजनवी ने 1025 ईस्वी में गुजरात के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया और मंदिर को तोड़-फोड़ कर प्रचुर मात्रा में धन लूट कर ले गया।

❖ महमूद गजनवी के बाद गौर प्रदेश के मुहम्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण किये और भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना का बीजारोपण किया।

❖ गौरी ने भारत में कई लड़ाइयाँ लड़ी, परंतु उसके अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान के साथ लड़े गये तराईन के युद्ध महत्वपूर्ण रहे।

❖ तराईन के प्रथम युद्ध में गौरी को बुरी तरह पराजित हुआ और भाग गया। किन्तु तराईन के दुसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान हार गया।

❖ भारत में गौरी का अन्तिम अभियान 1206 ईस्वी में खोखरों के विरुद्ध था। यह अभियान समाप्त कर गौरी जब लौट रहा था तो झेलम के किनारे खोखरों ने उसकी हत्या कर दी।

❖ मुहम्मद गौरी के कोई पुत्र नही था। सत्ता प्राप्ति के संघर्ष में गौरी का गुलाम और सूबेदार कुतुबुद्दीन ऐबक विजयी हुआ। इसके साथ ही भारत में प्रथम मुस्लिम शासन की स्थापना हुई।

❖ दिल्ली सल्तनत की स्थापना 1206 ईस्वी में हुई और 1526 ईस्वी में हुए पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी की पराजय तक यह सल्तनत राज चला।

❖ दिल्ली सल्तनत के दौरान विभिन्न राजवंशों ने दिल्ली पर राज किया, जिनमें दास वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, सैयद वंश और लोदी वंश प्रमुख है। इन वंशों को राजस्थान से निरन्तर चुनौती मिलती रही।

हम्मीरदेव चौहान

❖ हम्मीर रणथम्भोर के चौहान शासकों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था। इसके बारे में हमें नयचंद्र सूरी कृत ‘हम्मीर महाकाव्य’, जोधराज कृत ‘हम्मीर रसो’ आदि ग्रंथों से जानकारी मिल्ती है।

❖ 1282 ईस्वी में वह अपने पिता के जीवित रहते हुए ही गद्दी पर बिठा दिया गया।

❖ हम्मीर देव ने 1291 ईस्वी से पूर्व तक दिग्विजय करके अपनी सीमा व शक्ति में अभिवृद्धि कर ली थी।

❖ हम्मीर देव ने भीमरस के शासक अर्जुन, धार के परमार शासक और मेवाड़ के शासक समर सिंह को हराकर राजस्थान में अपना दबदबा स्थापित कर लिया।

❖ मेवाड़ के बाद वह आबू, वर्धनपुर (काठियावाड़), पुष्कर, चम्पा, त्रिभुवनगिरी होता हुआ स्वदेश लौटा। इन विजयों से राजस्थान में रणथम्भौर के चौहानों की राजनितिक प्रतिष्ठा बढ़ गई।

❖ हम्मीर के इस बढते कद के कारण खिलजी वंश का संस्थापक जलालुद्दीन खिलजी रणथंभौर की ओर आकर्षित हुआ।

❖ 1291 ईस्वी में जलालुद्दीन ने झाईन के दुर्ग पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया और दुर्ग की शिल्पकला और मन्दिरों को काफी क्षति पहुंचाई। इस जीत के बाद जलालुद्दीन रणथंभौर की ओर बढ़ा।

❖ जलालुद्दीन को रणथंभौर के आक्रमण में काफी दिनों के प्रयास के बाद भी सफलता नही मिली तो उसे युद्ध बंद करके वापस दिल्ली लौटना पड़ा।

❖ सुल्तान के लौटते ही हम्मीर ने झाईन के दुर्ग पर पुन: अधिकार कर लिया।

❖ 1299 ईस्वी में जलालुद्दीन ने फिर रणथंभौर को जीतने का प्रयास किया किन्तु वह सफल नही हो सका।

❖ 1296 ईस्वी में अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या कर अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना।

❖ दिल्ली के निकट सामरिक महत्व के रणथंभौर के अभेद्य दुर्ग को जीतने के लिए अलाउद्दीन लालायित था।

*रणथम्भौर पर आक्रमण-*
❖ सुल्तान के आदेश पर उलुग खाँ और नुसरत खाँ सेना लेकर रणथंभौर की ओर बढे। दोनों की संयुक्त सेना ने झाईन की ओर से रणथंभौर पर आक्रमण किया।

❖ हम्मीर के आदेश पर राजपूती सेना झाईन की ओर बढी तथा तुर्की सेना को खदेड़ दिया।

❖ तुर्की सेना ने जवाबी हमला किया और रणथंभौर पर घेरा डाल दिया।

❖ रणथंभौर दुर्ग की प्राचीर से राजपूती सेना के प्रहारों से नुसरत खाँ बुरी तरह घायल हो गया और मारा गया।

❖ राजपूती सेना ने दुर्ग से निकलकर तुर्की सेना पर जोरदार हमला किया तो उलुग खाँ को अपने प्राण बचाने के लिए भागना पड़ा व उसकी सेना भी बिखर गई।

❖ अब अल्लाउद्दीन खुद एक विशाल सेना लेकर रणथंभौर आया। लगभग एक वर्ष तक सुल्तान रणथंभौर दुर्ग पर घेरा डाले रहा, पर उसे कोई सफलता नही मिली।

❖ सुल्तान ने संधि वार्ता के बहाने हम्मीर के सेनापतियों को बुलाया और उन्हें प्रलोभन देकर अपनी ओर मिला लिया।

❖ किले में अब रसद सामग्री खत्म हो रही थी और जो बची थी उसमें अलाउद्दीन ने हड्डियों का चूरा मिलाकर अपवित्र कर दिया। जल स्रोतों को भी अपवित्र करवा दिया। ऐसी स्थिति में भूखे-प्यासे राजपूत सैनिक केसरिया वस्त्र पहन कर दुर्ग से बाहर आ गए और शत्रु से भिड़ गए।

❖ दिल्ली की विशाल सेना के सामने राजपूती सेना टिक न सकी। हम्मीर वीरतापूर्वक लड़ता हुआ मारा गया।

❖ 1301 ईस्वी में अलाउद्दीन का रणथंभौर पर अधिकार हो गया।

❖ अलाउद्दीन ने सैनिक बलबूते पर नही, बल्कि छल-कपट से रणथंभौर को जीता था।

❖ हम्मीर देव ने 17 युद्ध किए थे, जिनमें से वह 16 युद्धों में विजयी रहा। राजा हम्मीर देव का नाम इतिहास में स्मरणीय रहेगा।

रावल रतनसिंह

❖ 1302 ईस्वी में रावल रतनसिंह मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ मे राजसिंहासन पर बैठा। एक वर्ष के भीतर ही अल्लाउद्दीन खिलजी ने चितौड़ पर आक्रमण किया।

❖ अलाउद्दीन एक विशाल सेना के साथ दिल्ली से रवाना हुआ और चित्तौड़ के समीप गंभीरी और बेड़च नदियों के किनारे अपना सैनिक शिविर स्थापित किया।

❖ चित्तौड़ पर आठ माह के घेरे के पश्चात भी अल्लाउद्दीन को कोई सफलता नही मिली।

❖ संधि वार्ता के दौरान रतनसिंह को बात-चीत करते हुए अपने पड़ाव तक ले गया एवं उसे कैद कर लिया।

❖ गौरा और बादल के प्रयासों से रतनसिंह अलाउद्दीन की कैद से मुक्त हुए और वे पुन: किले में आ गए।

❖ अब युद्ध होना अवश्यभावी हो गया था। अत: दोनों के मध्य भीषण युद्ध हुआ।

❖ किले के भीतर रसद सामग्री भी खत्म हो गई थी और राजपूत सेना के लिए किले के भीतर से निकल कर शत्रु सेना पर टूट पड़ना आवश्यक हो गया था। राजपूत सरदारों ने केसरिया वस्त्र धारण किए और किले के द्वार खोल दिये।

❖ रावल रतन सिंह तथा उसके सेनापति गौरा व बादल वीरतापूर्वक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

❖ इधर रानी पद्मिनी के नेतृत्व में विशाल संख्या में स्त्रियों ने किले के अन्दर जौहर किया। यह चितौड़ का पहला जौहर था।

❖ चितौड़ पर अलाउद्दीन का अधिकार हो गया। विजय के बाद अल्लाउद्दीन ने चितौड़ की जनता का कत्ले-आम करने का आदेश दिया।

❖ सुल्तान के दिल्ली लौटने के बाद राजपूत वीरों ने चितौड़ जीतने के प्रयास जारी रखे। सरदार हम्मीर, जो सिसोदा गाँव आ था, ने 1326 ईस्वी के आसपास चित्तौड़ को पुन: जीत लिया और मेवाड़ में ‘सिसोदिया’ राजवंश की नींव डाली।

कान्हड़ देव

❖ 1305 ईस्वी में कान्हड़ देव जालोर का शासक बना।

❖ अलाउद्दीन ने सोमनाथ मंदिर को ध्वंस करने तथा गुजरात विजय के लिए उलुग खाँ और नुसरत खाँ को एक विशाल सेना देकर भेजा।गुजरात जाने का सीधा मार्ग जालोर होकर गुजरता था।

❖ अलाउद्दीन ने अपनी सेना को जालोर होकर गुजरने के लिए अनुमती मांगी, जिसे कान्हड़ देव ने ठुकरा दिया।

❖ सुल्तान की सेना मेवाड़ होकर गई। इस सेना ने मार्ग में पड़ने वाले गांवों को लूटा और नष्ट-भ्रष्ट किया।

❖ गुजरात में काठियावाड़ को जीता और सोमनाथ के मंदिर तथा शिवलिंग को तोड़ डाला।

❖ कान्हड़ देव ने गुजरात में तबाही मचाकर लौट रही सुल्तान की सेना पर भीषण आक्रमण किया और गुजरात से लूट कर लाया गया धन छीन लिया।

❖ सुल्तान ने जालोर को जीतने के लिए अपने सेनापतियों और सेना को भेजा। ऐसे ही एक संघर्ष में कान्हड़ देव का युवा पुत्र वीरमदेव मारा गया।

❖ अन्ततः 1308 ईस्वी में अल्लाउद्दीन ने एक विशाल सेना को जालोर पर अधिकार करने के लिए दिल्ली से रवाना किया।

❖ 1308 ईस्वी में जालोर के प्रवेश द्वार सिवाणा पर मुस्लिम सेना ने आक्रमण किया, पर उसे सफलता नही मिली। बाद में देशद्रोहियों की मदद से छल-कपट द्वारा खिलजी की सेना ने सिवाणा के दुर्ग को जीत लिया।

❖ इस पर कान्हड़ देव ने सभी राजपूत सरदारों का आह्वान किया। फलत: जगह-जगह खिलजी सेना पर प्रहार होने लगे।

❖ मेड़ता के पास मलकाना में राजपूत सैनिक सुल्तान की सेना पर टूट पड़े और सेनापति शम्स खाँ को उसकी पत्नी सहित बन्दी बना लिया। ये समाचार जब सुल्तान के पास पहुंचे तो वह स्वयं एक विशाल सेना लेकर जालोर ले लिए चल पड़ा।

❖ जालोर पहुंच कर सुल्तान ने दुर्ग पर घेरा डाला। कान्हड़ देव ने अपनी सम्पुर्ण शक्ति के साथ शत्रु का मुकाबला किया।

❖ ऐसी संकट पुर्ण स्थिति में एक दहिया सरदार ने कान्हड़ देव से विश्वासघात करते हुए राज्य पाने के लालच में खिलजी सेना को एक गुप्त दरवाजे से किले में प्रवेश करवा दिया। इस विश्वासघात का पता चलते पर राजद्रोही पति को उसकी पत्नी ने तलवार से टुकड़े-टुकड़े कर मार डाला।

❖ दुर्ग में आसानी से पहुंची खिलजी सेना का कान्हड़ देव ने राजपूती सैन्य सरदारों के साथ वीरतापूर्वक मुकाबला किया, किन्तु वह वीरगति को प्राप्त हुआ।

महाराव शेखा

❖ राव शेखा पंद्रहवी शताब्दी का एक अद्वितीय व्यक्तित्व था। उसका जन्म 1433 ईस्वी में हुआ।

❖ आमेर शासक चंद्रसेन राव शेखा के बड़े भ्राता थे। उन्हें शेखा का स्वतंत्र राज्य मान्य नहीं था और उसको किसी प्रकार आमेर की अधीनता में लाने के लिए प्रयासरत थे।

❖ राव शेखा, जो एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे, को आमेर अधीनता स्वीकार नहीं थी। अत: दोनों भाईयों के मध्य एक दशक तक युद्ध होते रहे। अन्त में 1471 ईस्वी के युद्ध में शेखा की विजय हुई। इसलिये चंद्रसेन को शेखा को एक स्वतंत्र शासक स्वीकार करना पड़ा।

❖ शेखा युद्ध कला में पारंगत था। इसके बाद उसने अपने आस-पास के स्थानों को हस्तगत करना शुरु किया। परिणामस्वरुप भिवानी, हिसार व अन्य अनेक क्षेत्रों पर शेखा का आधिपत्य हो गया।

❖ इनके राज्य में गांवों की संख्या 360 तक पहुंच गई थी।

❖ राव शेखा ने शासक के रुप में धार्मिक सहिष्णुता का भी परिचय दिया।

❖ इन्ही के प्रयासों से पठानों ने गाय के मांस को न खाने का संकल्प लिया, वे नारी अस्मिता के रक्षक थे।

❖ सन 1488 में इनकी मृत्यु हो गई।

महाराणा कुम्भा

❖ महाराणा कुम्भा के शासनकाल की जानकारी ‘एकलिंग महात्म्य’, ‘रसिक प्रिया’, ‘कुम्भलगढ प्रशस्ति’ आदि से मिलती है। वह 1433 ईस्वी में गद्दी पर बैठा।

❖ महाराणा कुंभा ने 1437 ईस्वी में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर भीषण आक्रमण किया और दोनों सेनाओं के मध्य सारंगपुर के पास जोरदार संघर्ष हुआ।

❖ इस युद्ध में महमूद खिलजी की सेना को परास्त होकर भागना पड़ा। इस भागती सेना का कुंभा ने मांडू तक पीछा किया और महमूद को बंदी बना लिया, किंतु 6 माह चित्तौड़ में रखने के बाद महमूद को मुक्त कर दिया।

❖ मुक्त होकर महमूद ने बार-बार कुंभा के विरुद्ध युद्ध किए, मगर वह कभी सफल नहीं हुआ।

❖ इसके बाद कुंभा ने गुजरात के शासक कुतुबुद्दीन और नागौर के शासक शम्स खाँ की संयुक्त सेना को तथा मालवा और गुजरात की संयुक्त सेना को हराया और अपने समय का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक बन गया।

❖ महाराणा कुंभा का काल भारतीय कला के इतिहास में ‘स्वर्णिम काल’ कहा जा सकता हैं।

❖ मेवाड़ में स्थित 84 दुर्गों में से 32 दुर्ग कुंभा द्वारा निर्मित हैं। इनमें कुंभलगढ़ का दुर्ग विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं, जो कि अजय दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है।

❖ दुर्ग के चारों और विशाल प्राचीर हैं, जिसे चीन की दीवार के बाद विश्व की दूसरी सबसे लंबी दीवार माना जाता है।

❖ महाराणा कुंभा का 1468 ईस्वी में स्वर्गवास हुआ।

अध्याय 18. राजस्थान के राजवंश एवं मुगल

 सन 1526 ई. के पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराकर बाबर ने दिल्ली पर मुगल साम्राज्य की नींव रखी, किंतु बाबर की मृत्यु के बाद उसका बेटा हुमायूं बिहार से आये अफगान सेनापति शेरशाह सूर से हार गया।

 दिल्ली पर शेरशाह सूर के वंशज अधिक समय तक शासन नहीं संभाल सके। 15 वर्ष के भीतर उसके एक प्रधान हरियाणा में रेवाड़ी के हेमचंद्र जोकि हेमू के नाम से प्रसिद्ध है, ने दिल्ली की गद्दी पर अधिकार कर लिया।

❖ एक माह बाद नवंबर, 1556 ई. में मुगल सेना ने उसे परास्त कर दिया। कालांतर में दिल्ली पर लंबे समय तक मुगलों का शासन रहा। इन शासकों में मुख्यतः अकबर, जहांगीर, शाहजहाँ, औरंगजेब इत्यादि थे। मुगल शासकों का सर्वाधिक प्रतिरोध मेवाड़ के महाराणाओं ने किया, जिसमें वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप प्रमुख थे।

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप महान

❖ वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 ई. (ज्येष्ठ शुक्ल 3, विक्रम संवत 1597) को कुंभलगढ़ में हुआ।

❖ इनके पिता का नाम महाराणा उदय सिंह व माता का नाम जैवंता बाई सोनगरा था।

❖ महाराणा उदयसिंह की 28 फरवरी, 1572 ई. में मृत्यु हो गई और उसी दिन महाराणा प्रताप का 32 वर्ष की आयु में गोगुंदा में राज्याभिषेक हुआ।

❖ मेवाड़ से 1567 – 1568 ईस्वी में हुए संघर्ष की भयंकरता से अकबर परिचित था। अतः शांति प्रयासों एवं कूटनीति से समस्या को सुलझाने का प्रयास किया। उसने एक – एक करके चार शिष्ट मंडलों को महाराणा प्रताप के पास भेजा किंतु महाराणा प्रताप ने उसके कूटनीतिक प्रयासों को एकदम विफल कर दिया।

हल्दीघाटी का युद्ध

❖ अकबर ने मानसिंह को प्रदान सेनानायक बनाकर प्रताप के विरुद्ध भेजा, जो लगभग 5000 सैनिकों के साथ आया 18 जून 1576 ईस्वी को प्रातः हल्दीघाटी के मैदान में युद्ध शुरू हुआ।

❖ महाराणा प्रताप ने युद्ध की शुरुआत की। उनके साथ रावत किशनदास, भीम सिंह डोडिया, रामदास मेड़तिया, रामशाह तंवर, झाला मान, जाला बिंदा, मान सिंह सोनगरा आदि थे।

❖ मुगल सेना पर सर्वप्रथम आक्रमण इन्होंने किया, जिससे मुगल सेना पूर्ण रूप से अस्त-व्यस्त हो गई। रही कसर प्रताप के आक्रमण ने पूरी कर दी।

❖ मुगल इतिहासकार बदायूंनी स्वीकार करता है कि मेवाड़ सेना के आक्रमण का वेग इतना तीव्र था कि मुगल सैनिकों ने बनास के दूसरे किनारे से पाँच- छह कोस तक ( 10-15 KM) भाग कर अपनी जान बचाई।

❖ अब प्रताप ने अपने चेतक घोड़े को छलाँग लगवाकर हाथी पर सवार मानसिक पर अपने भाले से वार किया, पर मानसिंह बच गया।

❖ इस घटना में चेतक का पिछला पैर हाथी की सूंड में लगी तलवार से जख्मी हो गया।

❖ प्रताप को शत्रु सेना ने घेर लिया। लेकिन प्रताप ने संतुलन बनाए रखा तथा अपनी शक्ति का अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए मुगल सेना में उपस्थित बलिष्ठ पठान बहलोल खान के वार का ऐसा प्रतिकार किया कि खान के जिरह बख्तर सहित उसके घोड़े के भी दो फाड़ हो गए।

❖ अब प्रताप ने युद्ध को मैदान के बजाय पहाड़ों में मोड़ने का प्रयास किया। उनकी सेना के दोनों भाग एकत्र होकर पहाड़ों की ओर मुड़े और अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचे तब तक मुगल सेना को रोके रखने का उत्तरदायित्व झालामान को सौंपा।

❖ इस युद्ध में मुगल सैनिकों का मनोबल इतना टूट चुका था कि उसमें प्रताप की सेना का पीछा करने का साहस नहीं रहा।

युद्ध का परिणाम

❖ भारत में पहली बार मुगल सेना को करारी हार का सामना करना पड़ा।

❖ हल्दीघाटी की पराजय से त्रस्त होकर अकबर ने मानसिंह व आसफ खाँ के मुगल दरबार में उपस्तिथ होने पर रोक लगा दी थी।

❖ शाही सेना के जाने के बाद प्रताप फिर कुम्भलगढ लौट आये।

❖ हल्दीघाटी के युद्ध के बाद अगले 5 वर्ष तक प्रताप छापामार युद्ध प्रणाली से मुगलो को छकाते रहे।

❖ अकबर ने तीन बार शाहबाज खान को प्रताप के विरुद्ध भेजा, किंतु उसे असफल होकर लौटना पड़ा।

❖ अक्टूबर 1582 ईस्वी में प्रताप ने अपने सैनिकों के साथ मुगलों के प्रमुख थाने दिवेर (राजसमंद) को घेर लिया।

❖ सुल्तान खान हाथी पर सवार था और महाराणा प्रताप के साथ युवराज अमर सिंह सहित अनेक सरदार व भील सैनिक थे।

❖ प्रताप ने सुल्तान खान के हाथी को मार डाला तो वह भाग गया और घोड़े पर सवार होकर पुनः युद्ध भूमि में आया।

❖ अमर सिंह तलवार लेकर सुल्तान खान की तरफ लपके और तलवार का वार किया। सुल्तान खान ने तलवार के वार से बचने की कोशिश की तो अमर सिंह ने अपने भाले से उसे बिंद डाला।

❖ दिवेर युद्ध में भी प्रताप की निर्णायक जीत रही।

❖ अब प्रताप ने चावंड को अपनी नई राजधानी बनाई और आक्रामक नीति अपनाकर एक-एक कर अपने पिता के काल में अकबर के हाथों गए स्थानों को पुनः विजीत कर दिया।

❖ 19 जनवरी 1597 ईस्वी को 57 वर्ष की अवस्था में चावंड में स्वाधीनता के इस महान पुजारी ने अंतिम सांस ली।

❖ चावंड के निकट बडोली गांव में प्रताप की समाधि बनी हुई है।

प्रताप महान का व्यक्तित्व

❖ महाराणा प्रताप सृष्टि युद्ध और सच्चे जननायक थे।

❖ अपने देश की स्वतंत्रता और सार्वभौमिकता के लिए सतत संघर्ष और उनका विविध क्षेत्र में योगदान उन्हें महान सिद्ध करता है।

❖ प्रताप ने कैद की गई मुगल स्त्रियों को सुरक्षित लौटा कर नारी सम्मान का पाठ पढ़ाया।

❖ विद्वानों और दूरदर्शी लोगों को संरक्षण दिया। इनमें संस्कृत विद्वान पंडित चक्रपाणि मिश्र प्रमुख थे।

❖ प्रताप के संरक्षण में लिखी गई राज्य अभिषेक पद्धति भारतीय शासकों के लिए आदर्श बनी।

❖ अपने दरबार में निसारुद्दीन जैसे चित्रकार से चित्रकार और छतीश रागिनियों के ध्यान चित्र बनवा कर चावंड चित्र शैली को जन्म दिया।

❖ उदयपुर के निकट हरिहर जैसे मंदिर उनके काल में शैव वैष्णव धर्म की एकता को दर्शाता है।

स्वाभिमानी अमर सिंह राठौड़

❖ राजस्थान के एक अन्य सबूत जिसने मुगल शासक शाहजहां को उसके दरबार में जाकर चुनौती दी थी वह अमर सिंह राठौड़ राजस्थान में शौर्य, स्वाभिमान एवं त्याग का प्रतीक माना जाता है।

❖ उसका जन्म 12 दिसंबर 1613 ईस्वी में हुआ था।

❖ वह जोधपुर के शासक गज सिंह का जेष्ठ पुत्र था।

❖ गजसिंह की उपपत्नी अनारा के षड्यंत्र के कारण अमर सिंह को राजगद्दी ना देकर कनिष्ठ पुत्र जसवंत सिंह को मारवाड़ का शासक बना दिया गया।

❖ मुगल शासक शाहजहां ने जसवंत सिंह को मारवाड़ के शासक की मान्यता दे दी।

❖ पिता के समय में ही अमर सिंह मुगल बादशाह की सेवा में आ गया था।

❖अमर सिंह की सूझबूझ और योग्यता से शाहजहाँ परिचित था। अतः अनेक कठिन अभियानों में अमर सिंह को भेजता रहता था। उसे झुंझार सिंह बुंदेला, राजा जगत सिंह कांगड़ा, ईरान के शाह सफी, शाह भोसले के विरुद्ध और कंधार के अभियानों पर भेजा गया।

❖ मुगल दरबार में अमर सिंह जब अकेला था, मुगल मनसबदार द्वारा धोखे से मार दिया गया।

वीर दुर्गादास राठौड़

❖ जन्म 13 अगस्त 1638 ईस्वी में मारवाड़ के सालवा गांव में हुआ था।

❖ उसका पिता आसकरण मारवाड़ के महाराजा जसवंत सिंह का मंत्री था।

❖ दुर्गा दास की माता ने उसमें देश तथा मातृभूमि के प्रति भक्ति की भावना भर दी थी।

❖ 28 नवंबर,1678 ईस्वी को महाराजा जसवंत सिंह की जमरूद में मृत्यु हो गई। उस समय उनका कोई पुत्र जीवित नहीं था, लेकिन उनकी दौरान रानियां गर्भवती थी। उन्हें दुर्गादास तथा अन्य सरदार अपने साथ लेकर लाहौर के लिए चल पड़े। लाहौर पहुंचने पर दोनों रानियों ने दो पुत्रों को जन्म दिया। एक की कुछ समय बाद मृत्यु हो गई तथा दूसरा जो जीवित बचा उसका नाम अजीत सिंह रखा।

❖ औरंगजेब ने रानियों सहित मारवाड़ के दल को दिल्ली पहुंचने का आदेश भिजवा दिया।

अजीत सिंह की रक्षा

❖ दुर्गादास राठौड़ सरदारों के दल के साथ अजीत सिंह को लेकर राजधानी दिल्ली पहुंचा और औरंगजेब से अजीत सिंह को मारवाड़ राज्य देने का आग्रह किया। औरंगजेब ने इस्लाम स्वीकार कर लेने की शर्त पर ही उसे मारवाड़ का राज्य देने की बात कही।

❖ दुर्गादास राठौड़ सरदार इस अपमानजनक शर्त को मानने के लिए तैयार नहीं थे।

❖ दुर्गादास अजीत सिंह को जिस दूरदर्शिता के साथ औरंगजेब के चंगुल से बसाकर मारवाड़ लाया। वह एक चमत्कार से कम नहीं था उसने पीछा करती हुई मुगल सेना का भी सामना किया।

❖ सिरोही के महाराज वेरी साल सिंह की देखरेख में कालिंद्री गांव के ब्राह्मण जय देव की पत्नी ने उन्हें पाला।

❖ औरंगजेब ने जोधपुर पर पुनः अधिकार हेतु विशाल सेना भेजी तथा स्वयं अजमेर में आ गया।

राठोड़- सिसोदिया गठबंधन

❖ दुर्गादास ने संघर्ष बढ़ता देखकर मेवाड़ के महाराणा राज सिंह से अजीत सिंह को आश्रय देने की प्रार्थना की। महाराणा ने इसे स्वीकार कर लिया।

❖ औरंगजेब ने शहजादे अकबर को मारवाड़ में भेजा किंतु वह भी राठौड़ों को नियंत्रित करने में पूर्णता सफल रहा।
इसके विपरीत दुर्गादास ने शहजादे अकबर को उसके पिता औरंगजेब के विरुद्ध उकसा दिया।

❖ दुर्गादास राठौड़ के प्रयासों से मारवाड़ और मेवाड़ के मध्य राठौड़ सिसोदिया गठबंधन हुआ।

❖ दुर्गादास जीवन के अन्तिम वर्षों में उज्जैन (मध्यप्रदेश) में ही रहे। वही 22 नवंबर 1718 को उनका देहांत हो गया।

महाराज सूरजमल

❖ महाराजा सूरजमल भरतपुर के लोकप्रिय शासक थे।

❖ उसके पिता बदन सिंह ने डीग बसा कर इसे अपनी राजधानी बनाया।

❖ सूरजमल ने भरतपुर शहर की स्थापना की।

❖ जयपुर के महाराजा जय सिंह की मृत्यु के बाद हुए उत्तराधिकार युद्ध में सूरजमल के सहयोग से ईश्वरी सिंह विजयी हुआ और जयपुर की गद्दी पर बैठा।

❖ मराठों के पतन के बाद सूरजमल ने गाजियाबाद, रोहतक, झज्जर,आगरा, धौलपुर, मैनपुरी, हाथरस, बनारस, फर्रूखनगर इत्यादि इलाके जीत लिए।

❖ 25 दिसंबर 1763 ईस्वी को महाराजा सूरजमल की मृत्यु हो गई ।

अध्याय 19. कला एवं स्थापत्य

❖चित्र शैली से तात्पर्य चित्र बनाने के एक विशेष प्रकार के तरीके से हैं।

मध्ययुगीन चित्र शैली

❖मध्ययुगीन चित्रकला शैली के दो प्रधान केंद्र रहे हैं पश्चिमी भारत के क्षेत्र का केंद्र गुजरात व राजस्थान बना।

❖दोनों केंद्रों के विषय जैन व बोध कथाओं पर आधारित थे। इसे पाल शैली कहा कहते हैं।

❖यह चित्र ताड़ पत्र व कागज पर बनाए जाते थे। इन्हें पोथी चित्र भी कहा जाता था।

❖इस शैली की पहचान है, गरुड़ की सी आगे निकली हुई नाक, पतली आंखें, छोटी ठूड्डी,एंठी अंगुलियां, पतली कमर इत्यादि।

❖इन चित्रों में लाल, नीले व पीले रंगों का प्रयोग किया जाता था।

❖पश्चिमी भारतीय शैली से राजस्थानी चित्रकला की उत्पत्ति मानी जाती है।

सल्तनत कालीन स्थापत्य

❖इस्लामिक शैली वाला देश का सबसे पहला भवन समूह दिल्ली के पास महरौली में बना। यहां कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के समीप ही दुनिया की मशहूर कुतुब मीनार है।

मुगलकालीन स्थापत्य

❖दिल्ली में हुमायूं का मकबरा और आगरा में ताजमहल मुगल स्थापत्य के अभूतपूर्व नमूने हैं।

❖शाहजहां द्वारा निर्मित दिल्ली का लाल किला मुख्यतः रिहायशी किला था, सामरिक महत्व का नहीं। वहीं आगरा में बना लाल किला सामरिक महत्व का भी था। इस किले को यूनेस्को (UNESCO) ने ‘वैश्विक विरासत’ घोषित किया है।

❖दिल्ली के लाल किले को हिंदुस्तान में राज्य सत्ता का घोतक माना गया है।

राजस्थान की स्थापत्य कला

❖ऐसा माना जाता है कि सिंधु-सरस्वती सभ्यता से ही ईटों के भवन बनाने की परंपरा आरंभ हुई थी, जिसका निरंतर विकास होता रहा।

❖मौर्य युग में लकड़ी से निर्मित भवनों व राज महलों के निर्माण का विवरण मिलता है।

राजस्थान के दुर्ग

❖राजस्थान में स्थित प्रमुख दुर्गों की एक सूची-

चित्तौड़गढ़ (चित्तौड़)

मेहरानगढ़ (जोधपुर)

कुंभलगढ़ (राजसमंद)

सोनार गढ़ (जैसलमेर)

जालौर दुर्ग (जालौर)

गागरोन (झालावाड़)

रणथंबोर (सवाई माधोपुर)

जूनागढ़ (बीकानेर)

तारागढ़ (बूंदी)

आमेर (जयपुर) इत्यादि।

❖ये दुर्ग ना केवल सामरिक दृष्टि से वरन शासकों के आवास, सेना और सामान्य लोगों के रहने के लिए भी उपयुक्त थे। इसमें खाद्य भंडारण, कुंड, जलाशय आदि आवश्यक सुविधाएं होती थी।

तारागढ़-

❖इस दुर्ग का निर्माण 1354 ईस्वी में राव बरसिंह ने करवाया था।

❖बूंदी दुर्ग का स्थापत्य राजपूत व मुगल कला के समन्वय का सुंदर उदाहरण है।

❖दुर्ग के छत्रशाल महल तथा यंत्र शाला को सुंदर भित्ति चित्रों से सजाया गया है, वहीं बादल महल व अनिरुद्ध महल की चित्र शाला में चित्रित भित्ति चित्र राजस्थान की भित्ति चित्र परंपरा के सुंदर उदाहरण है।

रणथंबोर-

❖किले के निर्माण की निश्चित तिथि ज्ञात नहीं है, परंतु ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि इस दुर्ग का निर्माण चौहान वंशी राजाओं ने करवाया, जिन्होंने 600 वर्षों तक इस क्षेत्र पर एकछत्र राज्य किया।

❖वर्तमान में यह दुर्ग व इसके आसपास का सघन वन क्षेत्र ‘रणथंभौर बाघ परियोजना’ के अंतर्गत आ गया, जिससे इसके जीर्णोद्धार व संरक्षण का कार्य प्रगति पर है।

जालौर दुर्ग-

❖दुर्ग का निर्माण परमार राजाओं धारावर्ष और मूंज ने 10 वीं सदी में करवाया था।

❖दुर्ग में कई इंदु व जैन देवालय तथा बुर्ज आदि बनाए गए हैं।

❖दुर्ग पर मुस्लिम पीर मलिक साहब की मस्जिद हैं।

❖इस दुर्ग पर लगभग 13 वीं सदी तक परमार राजाओं का अधिकार था।

चित्तौड़गढ़-

❖इस किले का निर्माण मौर्य वंशी शासक चित्रांगद मौर्य द्वारा सातवीं सदी में करवाया गया।

❖चित्तौड़ का किला मेसा के पठार पर स्थित है।

❖मेवाड़ के महाराणा कुंभा द्वारा गढ़ में कई स्थलों का जीर्णोद्धार करवाया गया।

विजय स्तंभ-

❖चित्तौड़गढ़ के अत्यंत प्राचीन तीर्थ स्थल गौमुख कुंड के उत्तर-पूर्वी कोण पर कुंभा द्वारा निर्मित ‘विजय स्तंभ’ 47 फीट वर्गाकार और 10 फीट ऊंची जगती (चबूतरा) पर बना हुआ है।

❖यह 122 फीट ऊंचा 9 मंजिला स्मारक अपनी कारीगरी का सुंदर उदाहरण है।

❖इस स्तंभ का निर्माण 1440 में प्रारंभ होकर 1448 में पूर्ण हुआ।

राजस्थान की चित्रकला

राजस्थान में चित्रकला निर्माण की प्रमुख शैलियाँ निम्न है-

1.मेवाड़ शैली- उदयपुर, नाथद्वारा, देवगढ़,चावंड,

2.मारवाड़ शैली- सिरोही,जोधपुर,बीकानेर,जैसलमेर

3.हाडोती शैली- बूंदी, कोटा, झालावाड़,

4.ढूंढाड़ शैली- जयपुर, अलवर, उनियारा, शेखावाटी

5.किशनगढ़ शैली- अजमेर, किशनगढ़।

❖चित्रों की सामान्य विशेषताएं, रंग,विषय वस्तु आदि में परिवर्तन होने से राय कृष्णदास ने राजपूताना राज्य में पल्लवित चित्रकला को ‘राजस्थानी चित्र शैली’ का नाम दिया।

❖राजस्थानी चित्रों की विषय वस्तु मुख्य रूप से धार्मिक कथाओं पर आधारित रही हैं।

❖17वीं सदी का युग राजस्थानी चित्रकला का स्वर्णिम काल माना है।

राजस्थान के मंदिर

❖मंदिरों का विकास गुप्त काल से माना जाता है।

❖मंदिर का तलछन्द/भूमितल विस्तार (ग्राउंड प्लान) मुख्यतः-

1.प्रवेश मंडप

2.सभा मंडप और

3.गर्भगृह में विभाजित किया जाता है।

❖मेवाड़ क्षेत्र के प्रमुख मंदिर- जगदीश मंदिर (उदयपुर), सास बहू मंदिर (नागदा जयपुर), अंबिका मंदिर (जगत उदयपुर), श्रीनाथजी का मंदिर (राजसमंद), श्री एकलिंग नाथ मंदिर (उदयपुर), ऋषभदेव मंदिर (उदयपुर), जैन मंदिर आदि।

❖मारवाड़ क्षेत्र के प्रमुख मंदिर- दिलवाड़ा का जैन मंदिर (आबू पर्वत सिरोही), रणकपुर का जैन मंदिर (पाली), किराडू के मंदिर (बाड़मेर), ओसिया के मंदिर (जोधपुर), जैसलमेर के जैन मंदिर आदि।

❖हाडोती क्षेत्र के प्रमुख मंदिर- बाडोली (रावतभाटा), भण्डदेवरा (बारां), कमलेश्वर महादेव (बूंदी), झालरापाटन (झालावाड़), आदि।

❖शेखावाटी क्षेत्र के प्रमुख मंदिर- आभानेरी (दौसा), खाटू श्याम जी (सीकर), गोविंद देव जी (जयपुर) आदि।

राजस्थान की मूर्ति कला

❖राजस्थान में मूर्तियों से अलंकृत देवालयों का निर्माण गुर्जर-प्रतिहार, परमार, चौहान, गुहिल शासकों के संरक्षण में हुआ हैं, किंतु प्रतिहारों का योगदान सर्वाधिक रहा है।

❖वैष्णव धर्म का प्रसार राजस्थान में ईसा पूर्व प्रथम-द्वितीय सदी में नगरी के अभिलेखीय विवरण से मिलता है।

❖वैष्णव प्रतिमाओं में दशावतार प्रतिमाएं,लक्ष्मीनारायण, गजलक्ष्मी, गरुड़ासीन विष्णु आदि की प्रतिमाएं प्रतिमाओं में वैकुंठ, अनंत त्रेलोक्य के मोहन इत्यादि पर्याप्त रूप में उत्कीर्ण की गई है।

❖सूर्य मत का प्रभाव 8-9 वीं सदी से देखा जा सकता है। ओसिया, वरमाण (सिरोही), झालरापाटन, चित्तौड़गढ़, उदयपुर में आज भी सूर्य मंदिर स्थित है।

हवेलियां

❖रामगढ़, नवलगढ़, मुकुंदगढ़ की विशाल हवेलियां, हवेली-शैली स्थापत्य के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

❖जैसलमेर की सालम सिंह की हवेली, नथमल की हवेली तथा पटवों की हवेली तो पत्थर की जाली एवं कटाई के कारण संसार में प्रसिद्ध है।

❖करौली, भरतपुर, कोटा की हवेलियां भी अपने कलात्मक कार्यो के कारण बेजोड़ गिनी जाती है।

छतरियां

❖ अलवर में मूसी महारानी की छतरी,

❖ करौली में गोपाल सिंह की छतरी

❖ बूंदी में 84 खंभों की छतरी

❖रामगढ़ में सेठों की छतरी

❖ गेटोर में ईश्वर सिंह की छतरी

❖ जोधपुर में जसवंत सिंह का थड़ा

❖ उदयपुर में आयड़ की छतरियां

❖जैसलमेर में बड़ा बाग की छतरियों का स्थापत्य सौंदर्य देखते ही बनता रहता है।

शेखावाटी की छतरियां

❖सीकर के शासक देवीसिंह और लक्ष्मणसिंह पर विशाल छतरियाँ सीकर में बनी हुई है।

❖माधोसिंह, कल्याण सिंह और हरदयाल सिंह की छतरियों की सादगी, विशालता, उन्नत अधिष्ठान आदि इनके मूलभूत तत्व हैं।

❖रामगढ़, शेखावाटी धनाढ्य सेठों की नगरी कहलाती हैं।

❖रामगोपाल पोद्दार की छतरी शेखावाटी संभाग की सबसे बड़ी छतरी मानी जाती है।

मंडोर की छतरिया

❖मंडोर में देवलों के नाम से विख्यात स्मृति स्मारक है, जिसमें राव मालदेव से लेकर तखत सिंह तक के मारवाड़ के शासकों के विख्यात स्मारक है।

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