कक्षा 6 सामाजिक विज्ञान (Class 6 Social Science)
भाग 1 – भूगोल
अध्याय 1 हमारा ब्रह्मांड
1.आसमान में दिखाई देने वाले तारो के समूह को तारामंडल या नक्षत्र मंडल कहा जाता है।
2.भारत मेआसमान में दिखने वाले सात तारो के समूह को सप्त ऋषि मंडल के नाम सेजाना जाता है।
3.फ्रांस में चार तारो के समूह को सॉसपेन (हत्थेवाली ढेगची ), ब्रिटेन में इसे खेत जतुाई वाला हल और यूनान में इसे स्माल बीयर के नाम सेजाना जाता है।
4.पोल स्टार को हिन्दू धर्म के अनुसार ध्रुव तारा कहा जाता है।
5.ध्रुव का शाब्दिक अर्थ – अटल या स्थिर।
6.ध्रुव नामक बालक राजा उतानपाद एवं सुनीति का पुत्र था।
अध्याय 2 सौर परिवार
1.हमारे सौर परिवार में कुल आठ ग्रह है।
2.सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी पर पहुँचने में लगभग 8 मिनट 30 सेकंड का समय लगता है।
3.आंतरिक ग्रह – बुध ,शुक्र, पृथ्वी व मंगल को कहते हैं।
4.बाह्य ग्रह – बृहस्पति ,शनि ,अरुण व वरुण का कहते हैं।
5.बाह्य ग्रह को गैसीय ग्रह भी कहते हैं।
6.आंतरिक ग्रह – इनका निर्माण चट्टानों से हुआ है ।इनका घनत्व अधिक है।
बुध – सूर्य की एक परिक्रमा – 88 दिन
अपने अक्ष पर घूर्णन – 59 दिन में।
उपग्रह की संख्या – 0
शुक्र – सूर्य की परिक्रमा – 225 दिन में
अपने कक्ष पर घूर्णन – 243 दिन में
उपग्रह की संख्या – 0
पृथ्वी – सूर्य की परिक्रमा – 365 दिन में
अपने अक्ष पर घूर्णन – 01 दिन में ।
उपग्रह की संख्या – 01
मंगल – सूर्य की परिक्रमा -687 दिन में
अपने अक्ष पर घूर्णन -01 दिन में
उपग्रह की संख्या – 02
7.बाह्य ग्रह – इनका निर्माण गैस और तरल पदार्थों से हुआ है।इनका घनत्व कम है।
बृहस्पति -सूर्य की परिक्रमा – 11 वर्ष 11माह में
अपने अक्ष पर घूर्णन – 09 घण्टे व 56 मिनट में
उपग्रह की संख्या – 16
शनि – सूर्य की परिक्रमा – 29 वर्ष 5 माह में।
अपने अक्ष पर घूर्णन -10 घंटे 40 मिनट में
उपग्रह की संख्या – 18 (सर्वाधिक)
अरुण – सूर्य की परिक्रमा – 84 वर्ष में
अपने अक्ष पर घूर्णन – 17 घण्टे 14 मिनट में
उपग्रह की संख्या – 17
वरुण – सूर्य की परिक्रमा 164 वर्ष में।
अपने अक्ष पर घूर्णन – 16 घण्टे 7 मिनट में।
उपग्रह की संख्या – 08
8.उपग्रह – ऐसे आकाशीय पिंड जो किसी ग्रह के चारों ओर चक्कर लगाता है ।
9.बौना ग्रह – ऐसा पिण्ड जो सूर्य की परिक्रमा करता है और दूसरे पिंडो का रास्ता भी काटता है ।
10.पृथ्वी ग्रह – सूर्य से दूरी के अनुसार तीसरा और आकार के अनुसार पृथ्वी सौर परिवार का पाँचवा बड़ा ग्रह है।
11.पृथ्वी का औसत तापमान 15° सेंटीग्रेड है , जो जीवन के लिए आदर्श है।
12.बुध और शुक्र के कोई उपग्रह नही है।
13.चंद्रमा को अपने अक्ष पर घूमने में लगभग 29 दिन एवं पृथ्वी के चारो ओर चक्कर लगाने में लगभग 27 दिन का समय लगता है।
14.सौरमंडल में सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति तथा सबसे छोटा ग्रह बुध है।
15.चंद्रमा की तुलना में पृथ्वी लगभग 81 गुना बड़ी है।
अध्याय 3 अंतरिक्ष खोज
1.आर्यभट्ट भारत के महान खगोलविद थे जिनकी मान्यता थी कि पृथ्वी गोल है ।
2.भारत द्वारा अंतरिक्ष मे भेजे गए प्रथम कृत्रिम उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा गया ।
3.भास्कराचार्य द्वितीय ने मात्र 36 वर्ष की आयु में सिद्धान्त शिरोमणी नामक ग्रंथ की रचना की।
4.प्रथम दूरबीन का आविष्कार हॉलैंड (नीदरलैंड ) के हेन्स लिप्परर्सी ने किया।
5.आकाशीय पिंडो को देखने मे प्रयोग किये जाने वाले दूरबीन का आविष्कार इटली में गैलीलियो ने 1610 ई. में किया था।
6.देश की सबसे बड़ी दूरबीन उदयपुर के फतेहसागर झील के टापू पर स्थापित की गई है।
7.मास्ट (Multi Application Solar Telescope ) नामक इस सौर दूरबीन की सहायता से सूर्य का अध्ययन किया जाता है।
8.वेणु बापू दूरबीन को दक्षिण भारत के कावलूर (तमिलनाडु) में स्थापित की गई।
9.अंतरिक्ष के रहस्यों को उद्घाटित करने के लिए वैज्ञानिकों ने अप्रैल 1990 में हब्बल अंतरिक्ष दूरबीन को अंतरिक्ष मे स्थापित किया गया।
10.सवाई जयसिंह ने भारत मे पांच वेधशालाओं का निर्माण करवाया गया।
दिल्ली ,वाराणसी ,मथुरा ,उज्जैन ,जयपुर
11.सबसे पहली वेधशाला दिल्ली में 1724 ईसवी में बनाई
12.इन पाँचो वेधशालाओ में सबसे बड़ी वेधशाला जयपुर वाली है , जिसका निर्माण 1734 ई. में करवाया।
13.सवाई जयसिंह ने तीन यंत्रो का आविष्कार किया ,जिनके नाम सम्राट यंत्र ,जयप्रकाश यंत्र और रामयंत्र।
14.विश्व का पहला उपग्रह 1957 में स्पूतनिक 1 सोवियत संघ द्वारा अंतरिक्ष मे रॉकेट के द्वारा पहुँचाया गया।
15.भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की स्थापना होमी जहाँगीर के नेतृत्व में सन 1962 को की गई।
16.प्रथम भारतीय कृत्रिम उपग्रह आर्यभट्ट जिसको 1975 ई. में पूर्व सोवियत संघ के बेकानूर अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया।
17.मंगल ग्रह के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए भारत ने मंगल यान नामक एक अंतरिक्ष यान नवम्बर 2013 ई. को आंध्रप्रदेश के श्री हरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया ।
अध्याय 4 ग्लोब
1.पृथ्वी दोनो ध्रुवो पर थोड़ी चपटी है तथा मध्य भाग से उभरी हुई है । इस तरह की आकृति को भू-आभ या पृथ्व्याकार कहा जाता है।
2.पृथ्वी के इस भू- आभीय आकार का पता सन 1671 ई. में फ्रांस के एक खगोलशास्री जाँ रिचहर ने लगाया।
3.ग्लोब पृथ्वी का एक लघु प्रतिरूप है ।
4.समान अक्षांशो को मिलाने वाली रेखा को अक्षांश रेखा कहते हैं।
5.विषुवत रेखा को 0° अक्षांश कहते हैं।
6.231/2° उत्तरी अक्षांश रेखा को कर्क रेखा और 231/2° दक्षिणी अक्षांश रेखा को मकर रेखा कहते हैं।
7.कर्क रेखा से आर्कटिक वृत तथा मकर रेखा से अंटार्कटिका वृत के मध्य स्थित भू भाग को क्रमशः उत्तरी व दक्षिणी शीतोष्ण कटिबंध कहते हैं।
8.आर्कटिक वृत से उत्तरी ध्रुव तक तथा अंटार्कटिका वृत से दक्षिण ध्रुव तक के मध्य भाग को शीत कटिबंध कहते है।
9.0° देशांतर रेखा को प्रधान मध्यान्ह रेखा या मानक या ग्रीनविच रेखा कहते हैं।
10.1° देशान्तर रेखा को पार करने पर चार मिनट का समय लगता है।
11.पृथ्वी अपने अक्ष पर 231/2 ° के कोण पर झुकी हुई है।
12.21 जून को सूर्य की सीधी किरणे कर्क रेखा पर गिरती है।
अध्याय 5 मानचित्र
1.हिकेटियस के मानचित्र में तीन महाद्वीपों यूरोप ,एशिया व अफ्रीका में बाँटा गया था।
2.नई दुनिया (अमेरिका ) की खोज कोलम्बस ने 1492 ई. में की।
3.यूरोप से भारत तक के समुद्री मार्ग की खोज वास्कोडिगामा ने की ।
4.वास्कोडिगामा 1498 ई. में भारत के केरल राज्य के कालीकट पहुंचे थे।
5.मानचित्र में दूरी ,दिशा ,आकार एवं आकृति को समतल सतह पर प्रदर्शित किया जा सकता है।
6.मानचित्रों को रूढ़ चिन्हों का उपयोग किया जाता है।
7.मानचित्र पर उत्तर दिशा एक तीर के द्वारा तथा N लिखकर इंगित की जाती है।
8.मानचित्र निर्माण में पैमाने का उपयोग किया जाता है।
9.दिशा ज्ञात करने के लिए जो यंत्र काम मे लिया जाता है उसे दिशा सूचक या दिकसूचक यंत्र(कम्पास) कहा जाता है।
10.किसी छोटे क्षेत्र का बड़े पैमाने पर खींचा गया रेखाचित्र खाका कहलाता है।
11.मानचित्र – यह एक बड़े क्षेत्र को प्रदर्शित करता है , जिसमे एक निश्चित पैमाने का उपयोग किया जाता है ।मानचित्र – दूरी,स्थिति, दिशा व वितरण दर्शाने हेतु उपयोग में लाया जाता है।
12.प्रमुख मानचित्र के प्रकार –
1.भौतिक मानचित्र 2.राजनैतिक मानचित्र 3.विषयक मानचित्र 4.भूसंपत्ति मानचित्र
13.यूरोप में 16 वी सदी में प्रिटिंग मशीन का आविष्कार हुआ।
14.भूसंपत्ति मानचित्र साधारणतः पटवारी के पास होते है।
15.भौतिक मानचित्र – पृथ्वी की प्राकृतिक आकृतियाँ जैसे पर्वतों ,पठारों, मैदानों, नदियां, महासागरों आदि को दर्शाने वाले मानचित्र को भौतिक मानचित्र कहते हैं।
अध्याय 6 महाद्वीप और महासागर
1.पृथ्वी पर लगभग 71 प्रतिशत भाग पर महासागर और 29 प्रतिशत भाग पर महाद्वीप का विस्तार है।
2.समस्त जलीय भाग को चार भागों में विभाजित किया गया है ।
प्रशांत महासागर , हिन्द महासागर ,अटलांटिक महासागर व आर्कटिक महासागर ।
3.समस्त स्थलीय भाग को सात भागो में विभाजित किया गया।
एशिया , यूरोप , अफ्रीका ,उत्तरी अमेरिका , दक्षिण अमेरिका ,अंटार्कटिका व आस्ट्रेलिया
4.एशिया महाद्वीप –
⇒क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप ।
⇒पृथ्वी के समस्त स्थलीय भाग के लगभग 30℅ भू भाग पर फैला हुआ है ।
⇒इस महाद्वीप में विश्व की लगभग दो तिहाई जनसंख्या रहती है।
⇒एशिया अफ्रीका से स्वेज नहर और लाल सागर द्वारा अलग होता है।
⇒पूर्व में प्रशांत महासागर उत्तर में आर्कटिक महासागर और दक्षिण में हिन्द महासागर से घिरा हुआ है।
⇒यूराल पर्वत एशिया और यूरोप को अलग करता है।
⇒सम्पूर्ण एशिया महाद्वीप उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है।
⇒विश्व की सबसे ऊँची पर्वत शृंखला हिमालय श्रेणी इस महाद्वीप में है , जिसका सर्वोच्च पर्वत शिखर माउंट एवरेस्ट है ,जो 8848 मीटर ऊँचा है।
⇒विश्व का सबसे नीचा स्थान मृत सागर है जो समुद्र तल से 418 मीटर नीचा है । ये स्थान जॉर्डन इजराइल सीमा पर स्थित है ।
⇒तिब्बत का पठार एशिया महाद्वीप में ही है , जो विश्व का सबसे बड़ा पठार है ।अधिक ऊँचा होने के कारण यह एक बर्फीला पठार है।
⇒चीन में बहने वाली यांगटीसी नदी एशिया की सबसे लंबी नदी है।
⇒विश्व की लगभग 60% जनसंख्या अकेले एशिया महाद्वीप में पाई जाती है ।इस महाद्वीप में जनसंख्या का सर्वाधिक संकेन्द्रण दक्षिण एवं दक्षिण पूर्वी भाग में है।
अफ्रीका महाद्वीप
⇒क्षेत्रफल एवं जनसंख्या दोनो के आधार पर एशिया के बाद अफ्रीका महाद्वीप विश्व का दूसरा बड़ा महाद्वीप है।
⇒भूमध्य रेखा ,कर्क रेखा एवं मकर रेखा तीनो इस महाद्वीप से होकर गुजरती है।
⇒इस महाद्वीप का अधिकांश भाग उष्ण जलवायु में आता है।
⇒इस महाद्वीप को यूरोप से भूमध्य सागर और एशिया से लाल सागर अलग करता है।
⇒हिन्द महासागर इसके पूर्व में तथा अटलांटिक महासागर पश्चिम में स्थित है।
⇒विश्व का सबसे बड़ा मरुस्थल सहारा उत्तरी अफ्रीका में विस्तृत है , जबकि नामिब और कालाहारी मरुस्थल इसके दक्षिणी हिस्से में स्थित है।
⇒अफ्रीका में बहकर भूमध्यसागर में गिरने वाली विश्व की सबसे लंबी नदी नील है।
⇒कांगो नदी अटलांटिक महासागर में गिरती है । कांगो बेसिन में विश्व का दूसरा बड़ा वर्षा वनों वाला क्षेत्र है।
⇒एटलस पर्वत श्रेणी मोरक्को से ट्यूनीशिया तक यहां की सबसे लंबी पर्वत शृंखला है।
⇒तंजानिया में किलीमंजारो पर्वत और केन्या में केन्या पर्वत प्रमुख ज्वालामुखी क्षेत्र है।
⇒किलीमंजारो ही अफ्रीका महाद्वीप का सबसे ऊँचा स्थान है।
⇒अफ्रीका की सबसे बड़ी झील विक्टोरिया है जो विश्व की ताजे पानी वाली दूसरी सबसे बड़ी झील है।
उत्तरी अमेरिका
⇒क्षेत्रफल के अनुसार तीसरा बड़ा महाद्वीप ।
⇒इस महाद्वीप के उत्तर में आर्कटिक महासागर , दक्षिण में मेक्सिको की खाड़ी , पूर्व में अटलांटिक महासागर एवं पश्चिम में प्रशांत महासागर हैं।
⇒इस महाद्वीप में अलास्का पर्वत श्रेणी में माउंट देनाली सबसे ऊँचा पर्वत शिखर है।
⇒इस महाद्वीप के उत्तर पूर्व में स्थित अल्पेशीयन पर्वत सबसे पुराना पर्वत है ।
⇒केलिफोर्निया की मृत घाटी सबसे नीचा क्षेत्र है।
⇒इस महाद्वीप में कोलोरेडो नदी पर स्थित विश्व का सबसे गहरा और बड़ा गर्त ‘ग्रांड कैनियन’ है।
⇒विश्व की सबसे बड़ी ताजे पानी की झील संयुक्त राज्य अमेरिका एवं कनाडा के बीच स्थित हैं।
⇒इस महाद्वीप में प्रसिद्ध पाँच झीलों – सुपीरियर, मिशीगन ,हृयूरन ,ईरी और ओंटेरियो को महान झील क्षेत्र कहा जाता है।
दक्षिण अमेरिका
⇒इस महाद्वीप के उत्तर में कैरेबियन सागर,पश्चिम में प्रशान्त महासागर और पूर्व में अटलांटिक महासागर है।
⇒यह विश्व का चौथा बड़ा महाद्वीप है।
⇒ब्राजील इस महाद्वीप का सबसे बड़ा देश है जो महाद्वीप के आधे से अधिक भाग पर फैला हुआ है ।
⇒विश्व की सबसे लंबी पर्वत शृंखला एंडीज इस महाद्वीप के पश्चिमी भाग में स्थित है।
⇒एंडीज पर्वत में एकांकागुआ चोटी इस महाद्वीप की सबसे ऊँची चोटी है।
⇒विश्व का सबसे ऊँचा जल प्रपात एंजेल , वेनेजुएला में स्थित है।
⇒अपवाह क्षेत्र की दृष्टि से विश्व की सबसे बड़ी नदी अमेजन है जो अधिकाशः ब्राजील देश मे बहती है।
⇒विश्व का सबसे शुष्क क्षेत्र चिली में स्थित अटाकामा मरुस्थल को माना जाता है।
⇒अमेजन नदी के आसपास स्थित वर्षा वन विश्व का सबसे बड़ा वन क्षेत्र है जिसे ‘धरती का फेफड़े’ भी कहा जाता है।
⇒ब्राजील में विश्व की सर्वाधिक कॉफी का उत्पादन होता है । कॉफी के बागानों को यहाँ ‘फेजेण्डा’ कहा जाता है।
अंटार्कटिका महाद्वीप
⇒अंटार्कटिका महाद्वीप दक्षिणी ध्रुव के चारों ओर स्थित है इसलिए यह हमेशा बर्फ की मोटी परत से ढका रहता है।
⇒यह सबसे ठंडा महाद्वीप है।
⇒सन 1960 ई . में इस महाद्वीप पर जाने वाले प्रथम भारतीय व्यक्ति डॉ .गिरिराज सिंह सिरोही थे।
⇒इनके नाम पर ही यहां के एक स्थान का नाम’सिरोही पॉइंट’ रखा है।
⇒भारत ने मैत्री नामक स्थान पर एक शोध केंद्र स्थापित किया।
यूरोप महाद्वीप
⇒यूरोप विश्व का दूसरा सबसे छोटा महाद्वीप है ।
⇒यूरोप और एशिया के सँयुक्त भाग को यूरेशिया कहा जाता है।
⇒यह यूराल पर्वत और केस्पियन सागर के द्वारा पूर्व में एशिया महाद्वीप से अलग किया गया है।
⇒यह महाद्वीप अपने आप मे ही एक प्रायद्वीप है।
⇒जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का तीसरा बड़ा महाद्वीप है।
⇒वोल्गा नदी यहाँ की सबसे लंबी नदी है जो केस्पियन सागर में गिरती है।
⇒विश्व का सबसे छोटा देश वेटिकन सिटी इसी महाद्वीप में स्थित हैं।
⇒यूरोप के दक्षिणी भाग में भूमध्यसागरीय जलवायु पाई जाती है ।
आस्ट्रेलिया महाद्वीप
⇒आस्ट्रेलिया ,न्यूजीलैण्ड, तस्मानिया और निकटवर्ती द्वीप समूहों को मिलाकर इसे ओशेनिया कहा जाता है।
⇒इस महाद्वीप के पूर्वी भाग में सबसे लंबा पर्वत ‘ग्रेट डिवाइडिंग रेंज’ है।
⇒विश्व की सबसे लंबी मूंगा निर्मित दीवार ‘ ग्रेट बैरियर रीफ’ इस महाद्वीप के पूर्वी तट के पास प्रशांत महासागर में स्थित है।
⇒कंगारू यहाँ का सबसे प्रसिद्ध जीव है।
⇒आस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैंड में ऊन के लिए विश्व प्रसिद्ध ‘मेरिनो’ भेड़ पाली जाती है।
⇒आस्ट्रेलिया के पश्चिमी भाग पर विश्व का तीसरा बड़ा गर्म मरुस्थल (सहारा एवं अरब मरुस्थल के बाद) स्थित है।
⇒दक्षिणी मध्य आस्ट्रेलिया में कालगूर्ली एवं कुलगार्डी नामक दो सोने की विश्व प्रसिद्ध खाने है।
⇒मर्रे – डार्लिंग यहाँ की दो प्रमुख नदियां है।
अध्याय 7 पर्यावरणीय प्रदेश
1.कटिबंध – दो अक्षांशो के बीच विशेष परिस्थितियों का क्षेत्र।
2.स्टेपी – यूरोप एवं एशिया के शीतोष्ण घास के मैदान।
3.धोरे – रेत के टीले।
4.एस्किमो – उत्तरी ध्रुवीय प्रदेशो में रहने वाले लोग।
5.इग्लू – एस्किमो लोगो का बर्फ का घर।
6.प्रेयरी घास के मैदान उत्तरी अमेरिका में पाए जाते है।
7.ऐसा भू भाग जिसकी ऊंचाई कम होती है उसे निम्न भूमि कहा जाता है।
भाग -2
सामाजिक और राजनीतिक जीवन
अध्याय 8 हमारा सामाजिक परिवेश
⇒परिवार समाज की सबसे छोटी इकाई है।
⇒बालक की प्रथम पाठशाला इसका परिवार होता है।
⇒जिस परिवार में माता पिता और भाई बहिन के साथ रहते हैं ,उस परिवार को एकल परिवार कहते हैं।
⇒जिस परिवार में दादा दादी, ताऊ ताई ,चाचा चाची ,बुआ आदि एक साथ रहते हो ,उस परिवार को संयुक्त परिवार कहते हैं।
⇒भारत मे सामान्यतः संयुक्त परिवार प्रथा का ज्यादा प्रचलन रहा है।
⇒परिवार के सदस्यों के बाद हमारे सबसे निकट पड़ोसी होते हैं ।
⇒समाज हमारे शरीर की तरह होता है । जिस प्रकार शरीर के सभी अंग शरीर के लिए काम करते हैं ,उसी प्रकार समाज के सभी व्यक्तियों के सहयोग से ही समाज मे पूर्णता आती है।
अध्याय 9 विविधता में एकता
⇒विविधता हमारे जीवन का प्रमुख और स्वाभाविक अंग है।
⇒भारत मे विविधता के कई पक्ष है , जैसे – नृजातीयता ,भाषा ,रंगरूप , शरीर की बनावट ,काम करने के तरीके ,पूजा- पद्धतियाँ ,जाति , कला और संस्कृति आदि।
⇒असम में बीहू ,केरल में ओणम ,तमिलनाडु में पोंगल ,राजस्थान में गणगौर और तीज, बिहार में छठपूजा ,पंजाब में बैशाखी आदि त्योहार मनाए जाते हैं।
⇒हमारे राष्ट्रीय प्रतीक
राष्ट्रीय ध्वज – तिरंगा
राष्ट्रीय चिह्न – अशोक स्तंभ
राष्ट्रीय पशु – बाघ
राष्ट्रीय पक्षी -मोर
राष्ट्रीय पुष्प – कमल
राष्ट्रीय खेल – हॉकी
राष्ट्र – गान – जन गण मन
राष्ट्र गीत – वन्दे मातरम
अध्याय 10 हमारे बाजार
⇒वस्तु के बदले वस्तु देकर एक दूसरे की आवश्यकताएँ पूरी की जाती है , इस प्रणाली को वस्तु – विनियम कहलाती है।
⇒वस्तु के मूल्य के रूप में वस्तु न दी जाकर मुद्रा दी जाती है ,तो इसे मुद्रा – विनियम कहते हैं।
⇒वे लोग जो वस्तु के उत्पादक और वस्तु के उपभोक्ता के बीच मे होते हैं ,उन्हें व्यापारी कहा जाता है ।
⇒व्यापारी दो प्रकार होते है- थोक व्यापारी व फूटकर व्यापारी
⇒वे व्यापारी जो उत्पादक से बड़ी मात्रा या संख्या में समान खरीद लेते हैं और फिर इन्हें वे छोटे व्यापारियों को बेच देते हैं , थोक व्यापारी कहलाता है।
⇒वह व्यापारी जो अंततः वस्तुएं हम उपभोक्ताओ को बेचता है ,वह खुदरा या फूटकर व्यापारी कहलाता है।
⇒कोई भी व्यक्ति नजदीकी पोस्ट ऑफिस या बैंक में अपना खाता खुलवा सकता है।
⇒खातों के निम्न प्रकार होते हैं –
बचत खाता , चालू खाता , स्थायी जमा खाता ।
⇒ए. टी.एम. – ऑटोमेटिक टेलर मशीन।
अध्याय 11 सहकारिता एवं उपभोक्ता सशक्तिकरण
⇒संगठित रूप से व्यक्ति आपसी सहयोग के साथ जो कार्य करते हैं उसे हम सहकारिता कहते हैं ।
⇒ सहकारिता के मूल तत्व
1.सहकारिता में सदस्यता स्वैच्छिक होती है।
2.इसका संचालन एवं प्रबंध सभी सदस्यों की सहमति से होता है।
3.सभी सदस्यों को एक जैसे अधिकार एवं अवसर प्राप्त होते हैं ।
4.इसमें आर्थिक उद्देश्य के साथ साथ नैतिक एवं सामाजिक उद्देश्यों को भी शामिल किया जाता है।
सहकारिता के मूलमंत्र है – ” एक सब के लिए , सब एक के लिए ” और ” सबके हित में ही हमारा हित है ।”
⇒किन्ही समान आर्थिक या सामाजिक हित वाले क्रिया कलापो के उद्देश्यों से कम से कम 15 व्यक्ति मिलकर एक प्राथमिक सहकारी समिति का गठन कर सकते हैं।
⇒समिति का पंजीकरण सहकारिता विभाग से करवाया जाता है।
⇒अपने उद्देश्यों के अनुसार सहकारी समितियां निम्न प्रकार की होती है –
1.कृषि सहकारी समिति
2.दुग्ध सहकारी समिति
3.उपभोक्ता सहकारी समिति
4.गृह – निर्माण सहकारी समिति
5.सहकारी साख एवं बचत समिति
6.क्रय – विक्रय सहकारी समिति
⇒उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 ई. में बनाया गया।
⇒जब कोई व्यक्ति अपने उपयोग के लिए कोई वस्तु अथवा सेवा खरीदता है तो वह उपभोक्ता कहलाता है ।
⇒वस्तु की गुणवत्ता को प्रमाणित करने वाले आई. एस. आई. ,एगमार्क, एफ. पी. ओ. आदि मानक चिह्न होते हैं।
⇒उपभोक्ता शिकायत के लिए उपभोक्ता न्यायालय गठित किया है –
20 लाख तक -जिला उपभोक्ता मंच पर
20 लाख से 1 करोड़ तक – राज्य उपभोक्ता आयोग पर
1 करोड़ से अधिक राशि – राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग।
⇒उपभोक्ता प्रत्येक स्तर पर 30 दिन की अवधि में न्याय के लिए ऊपरी न्यायालय में अपील कर सकता हैं।
⇒गारण्टी -क्रय की गई वस्तु में एक निश्चित अवधि में दोष आने पर विक्रेता द्वारा बदले में वैसी ही दूसरी वस्तु देने की सुविधा ।
⇒वारण्टी -क्रय की गई वस्तु में एक निश्चित अवधि में दोष आने पर विक्रेता द्वारा उसकी निशुल्क मरम्मत करने की सुविधा।
अध्याय 12 सरकार और लोकतंत्र
⇒सरकार के तीन स्तर होते है –
1.स्थानीय स्तर
2.राज्य स्तर
3.राष्ट्रीय स्तर
⇒सरकार विधायिका के माध्यम से कानून बनाती है जो देश के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं ।
⇒सरकार कानून के माध्यम से काम करती है।
⇒सरकार को शक्ति जनता अपने वोट के माध्यम से प्रदान करती है।
⇒सरकार के प्रकार –
1.राजतंत्रीय सरकार -राजतंत्रीय सरकार में निर्णय लेने और सरकार चलाने की शक्ति अकेले एक ही व्यक्ति अर्थात राजा या रानी के पास होती है ।
2.तानाशाही सरकार – सरकार विभिन्न हितों के बीच टकरावो को बलपूर्वक दबाकर किसी एक हित को जबरदस्ती से लागू करती है तो ऐसी सरकार तानाशाही होती है ।
3.लोकतांत्रिक सरकार – लोकतांत्रिक सरकार जनता के द्वारा चुनी हुई होती है। जनता वोट देकर अपना प्रतिनिधि चुनती है , जो जनता की ओर से भागीदारी निभाता है ।
⇒लोकतंत्र की विशेषता –
1.प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र
2.समानता एवं न्याय
3.जागरूक और जवाबदेही
4.लोककल्याण
5.विवादों का समाधान
⇒सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार – लिंग , जाति ,क्षेत्रीयता और आर्थिक स्तर के आधार पर भेदभाव किये बिना सभी वयस्क (18 वर्ष या उससे अधिक आयु के ) नागरिकों को मत डालने का अधिकार ।
⇒लोक कल्याण – जनता के हित के लिए किए जाने वाले कार्य
अध्याय 13 बाल अधिकार एवं बाल संरक्षण
⇒बालक समाज एवं राष्ट्र की संपत्ति है।
⇒बाल अधिकार संरक्षण आयोग कानून 2005 के अनुसार ‘बाल अधिकार ‘ में बालक/बालिकाओ के वे समस्त अधिकार शामिल हैं जो 20 नवम्बर ,1989 को संयुक्त राष्ट्र संघ के बाल अधिकार अधिवेशन द्वारा स्वीकार किए गए थे तथा जिन पर भारत सरकार ने 11 दिसम्बर 1992 में सहमति प्रदान की थी।
⇒संयुक्त राष्ट्र संघ बाल अधिकार समझौते के तहत बच्चों को दिए गए अधिकार को चार प्रकार के अधिकारों में बांटा गया।
1.जीने का अधिकार
2.विकास का अधिकार
3.संरक्षण का अधिकार
4.भागीदार का अधिकार
⇒बाल अधिकार हनन क्या है –
1.कन्या भ्रूण हत्या – समाज मे व्याप्त रूढ़िवादिता ,अपरिपक्व मानसिकता एवं पुत्र मोह की इच्छा में समाज मे बड़ी संख्या में बालिकाओ को जन्म से पूर्व गर्भ में ही मार दिया जाता है।
नोट – सरकार द्वारा कन्या भ्रूण हत्या की रोकथाम हेतु “पी. सी. एन्ड पी.एन. डी. टी. 1994 ” के तहत दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही की जाती है।
भारत सरकार द्वारा बालिकाओ के संरक्षण हेतु ” बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ ” अभियान संचालित किया जा रहा है।
2.बाल विवाह – यह पुरानी सामाजिक कुरीति है ।कम उम्र में विवाह करने से बच्चों के शरीर और मस्तिष्क दोनो को गंभीर और घातक खतरे की संभावना रहती है।
बाल विवाह की प्रभावी रोकथाम हेतु “बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम ,2006 का क्रियान्वयन किया जा रहा है।
3.बाल श्रम – आज भी हमारे समाज मे बड़ी संख्या में बच्चे शिक्षा प्राप्त करने के बजाय दुकानों ,कारखानों,घरों,ढाबों,चाय की दुकानों, ईंट भट्टो, खेतो आदि स्थानों पर विभिन्न कामो में लगे हुए हैं । उससे लगातार काम लेकर उनका शोषण किया जाता है।
बाल श्रम अधिनियम (निषेध एवं नियमन ), 1986 – 14 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों का जीवन को जोखिम में डालने वाले व्यवसायों में जिन्हें कानून द्वारा निर्धारित सूची में शामिल किया गया है , में काम करना निषेध करता हैं।
इसके अलावा बच्चों का किशोर न्याय ( देखभाल और संरक्षण )अधिनियम 2000 ने बच्चों के रोजगार को दंडनीय अपराध बना दिया है।
4.बाल यौन हिंसा – भारत सरकार द्वारा 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ होने वाली यौन हिंसा की रोकथाम हेतु “लैंगिक अपराधों से बालको का संरक्षण अधिनियम 2012 लागू किया गया।
5.बाल तस्करी – बाल श्रम,यौन हिंसा एवं अन्य प्रयोजनो के लिए पैसे देकर बहला फुसलाकर, डरा धमकाकर ,शक्तियों का दुरूपयोग करके या अपहरण करके बालक / बालिकाओ की तश्करी की जाती है ।ऐसे आपराधिक कार्यो की रोक थाम के लिए दंडात्मक कानून बनाए गए हैं।
⇒राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग -यह आयोग बालक/ बालिकाओ के अधिकारों के हनन के मामलों की जांच और सुनवाई के साथ साथ बच्चों से जुड़े कानूनों / योजनाओ के क्रियान्वयन की निगरानी / समीक्षा का कार्य करता है ।
निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 एवं लैंगिक अपराधों से बालको का संरक्षण अधिनियम (पोस्को) 2012 की निगरानी की जिम्मेदारी भी इस आयोग को दी गई है।
⇒राजस्थान राज्य बाल संरक्षण समिति – यह समिति राज्य में विभिन्न बाल संरक्षण कार्यक्रमों / कानूनों / नीतियों के क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी है। राजस्थान राज्य बाल संरक्षण समिति की जिला शाखाओं के रूप में सभी जिलों में “जिला बाल संरक्षण ईकाई ” प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर “ब्लॉक स्तरीय बाल संरक्षण समिति “एवं ग्राम पंचायत स्तर पर “ग्राम पंचायत स्तरीय बाल संरक्षण समिति ” का गठन किया गया।
⇒चाईल्ड हेल्प लाईन (1098) – राज्य में कठिनाइयों में घिरे पीड़ित / उपेक्षित / लावारिस तथा देखरेख और संरक्षण की जरूरत वाले बच्चों के लिए 1098 टोल फ्री टेलीफोन सेवा संचालित की जा रही है।
अध्याय 14 स्थानीय स्वशासन : ग्रामीण और शहरी
⇒स्वतंत्रता के बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने त्रि स्तरीय पंचायत राज व्यवस्था का प्रारंभ 2 अक्टूबर 1959 को नागौर (राजस्थान) से किया था।
⇒पंचायत राज व्यवस्था के अंतर्गत देश की ग्रामीण जनता सरकार के कार्यो में भाग लेती है।
⇒ग्रामीण स्वशासन त्रि स्तरीय संरचना है। सबसे पहले स्तर पर गांव की ग्राम पंचायत का गठन होता है।
⇒दूसरे स्तर अर्थात विकास खंड स्तर पर पंचायत समिति का गठन होता है।
⇒तीसरे स्तर अर्थात जिले में जिला परिषद का गठन होता है।
ग्राम पंचायत
⇒वार्ड सभा – वार्ड सभा ग्राम पंचायत की सबसे छोटी इकाई होती है । एक ग्राम पंचायत में जितने वार्ड पंचों की संख्या निर्धारित होती है उस ग्राम पंचायत क्षेत्र को उतने ही भागो में बांटा जाता है।
⇒वार्ड सभा की अध्यक्षता वार्ड पंच द्वारा की जाती है।
⇒ग्राम सभा – किसी ग्राम पंचायत क्षेत्र की मतदाता सूची में दर्ज मतदाताओं की सभा को ग्राम सभा कहते हैं ।
⇒गांव का कोई भी ऐसा स्त्री या पुरुष जिसकी उम्र 18 वर्ष या उससे अधिक हो और जिसका नाम गांव की मतदाता सूची में दर्ज हो और जिसे मतदान करने का अधिकार प्राप्त हो वह ग्राम सभा का सदस्य होता हैं।
⇒ग्राम सभा की बैठक प्रत्येक तीन माह में एक बार अर्थात वर्ष में चार बार होती है।
⇒ग्राम पंचायत – किसी भी बड़े गांव में या आस पास के कुछ छोटे गांवो को मिलाकर एक ग्राम पंचायत बनाई जाती है ।
⇒ग्राम पंचायत का मुखिया सरपंच होता हैं तथा उस ग्राम पंचायत क्षेत्र के सभी वार्ड पंच उस ग्राम पंचायत के सदस्य होते हैं ।
⇒सरपंच का चुनाव ग्राम पांच के मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष मतदान से किया जाता हैं।
⇒सभी वार्ड पंच अपने मे से ही किसी एक वार्ड पंच को उपसरपंच चुन लेते हैं।
⇒ग्राम पंचायत की बैठक माह में दो बार आयोजित की जाती हैं।
⇒ग्राम पंचायत के कार्यो की क्रियान्विति के लिए ग्राम पंचायत में सरकारी कर्मचारी होते हैं, जिनमे से एक ग्रामसेवक पदेन सचिव होता हैं।
⇒ग्राम सचिवालय – ग्राम सचिवालय व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक माह की 5, 12, 20 व 27 तारीख को ग्राम पंचायत स्तरीय कर्मचारी ,जैसे -ग्राम सेवक ,पटवारी, कृषि पर्यवेक्षक, ए. एन. एम., हैण्डपम्प मिस्त्री आदि दिन भर ग्राम पंचायत मुख्यालय पर उपस्थित रहते हैं।
⇒पंचायत समिति – प्रत्येक जिले को विकास खंडों में बांटा गया है । प्रत्येक विकास खंड स्तर पर पंचायत समिति का गठन किया गया है।
⇒विकास खंड में शामिल सभी ग्राम पंचायतो को मिलाकर पंचायत समिति का गठन होता है।
⇒पंचायत समिति का मुखिया प्रधान कहलाता है।
⇒प्रत्येक पंचायत समिति क्षेत्र को वार्डो में विभाजित किया गया है । प्रत्येक वार्ड के मतदाता अपने एक प्रतिनिधि का निर्वाचन करते हैं , जो पंचायत समिति का सदस्य होता है।
⇒पंचायत समिति के सदस्य अपने मे से ही किसी एक सदस्य को प्रधान व एक सदस्य को उप- प्रधान के रूप में निर्वाचित करते हैं।
⇒पंचायत समिति के क्षेत्र के विधान सभा सदस्य और उस क्षेत्र में स्थित सभी ग्राम पंचायतों के सरपंच भी पंचायत समिति के सदस्य होते हैं।
⇒जिला परिषद – ग्रामीण विकास की दृष्टि से प्रत्येक जिले में जिला परिषद बनाई गई है , जो पंचायती राज व्यवस्था की तीसरी औऱ सर्वोच्च इकाई है।
⇒एक जिले की सभी पंचायत समितियों को मिलाकर उस जिले की जिला परिषद का गठन होता है।
⇒जिला परिषद का कार्यालय जिला मुख्यालय पर होता है।
⇒जिले से निर्वाचित विधान सभा, लोकसभा और राज्य सभा के सदस्य तथा जिले की समस्त पंचायत समितियों के प्रधान जिला परिषद के सदस्य होते हैं।
⇒जिला परिषद का मुखिया जिला प्रमुख होता है।
नगरीय स्वशासन –
⇒जो कार्य ग्रामीण क्षेत्र में ग्राम पंचायत द्वारा किये जाते हैं ,शहरों में इस प्रकार के कार्य नगर पालिका ,नगर परिषद या नगर निगम करती है।
⇒20,000 से अधिक एवं एक लाख से कम जनसंख्या वाले नगर में नगर पालिका होती है।
⇒एक लाख से अधिक किंतु पाँच लाख से कम जनसंख्या वाले नगर में नगर परिषद होती है।
⇒पाँच लाख या उससे अधिक जनसंख्या वाले नगर में नगर निगम होता है।
⇒नगर पालिका, नगर परिषद या नगर निगम के गठन के लिए इनके क्षेत्र को वार्डो में बाँट दिया गया है ।प्रत्येक वार्ड के मतदाता अपने एक प्रतिनिधि का निर्वाचन करते हैं , जो पार्षद कहलाता है।
⇒पार्षद, उस क्षेत्र के लोकसभा व विधानसभा के सदस्य तथा कुछ मनोनीत लोग भी इनके सदस्य होते हैं।
⇒निर्वाचित पार्षद अपने मे से ही किसी एक पार्षद को अपना मुखिया और एक को उप -मुखिया चुनते हैं।
⇒नगर पालिका के मुखिया – अध्यक्ष, नगर परिषद के मुखिया – सभापति और नगर निगम के मुखिया – मेयर या महापौर कहलाता हैं।
⇒नगरीय स्वशासन का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
अध्याय 15 जिला प्रशासन और न्याय व्यवस्था
⇒शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रशासनिक दृष्टि से राज्य को संभागों में , संभाग को जिलो में , जिले को खंडों एवं तहसीलों में तथा तहसील को पटवार वृत में बांटकर शासन की प्रत्येक इकाई के स्तर पर प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की गई है।
⇒राजस्थान में सात संभाग व उनमे 33 जिले है।
⇒जिले का सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी जिला कलक्टर होता है।
⇒जिला कलक्टर विभिन्न रूपो में कार्य करता है- जैसे – जिला कलक्टर ,जिला मजिस्ट्रेट ,कलक्टर (पंचायत), कलक्टर (रसद), कलक्टर(भू – अभिलेख),जिला निर्वाचन अधिकारी आदि।
⇒जिले के सम्पूर्ण प्रशासनिक कार्य जिला कलक्टर द्वारा स्वयं एवं उसके मार्गदर्शन में किये जाते हैं।
जिला प्रशासन के कार्य –
1.शांति एवं कानून व्यवस्था बनाये रखना
2.जिले के भू – अभिलेख अद्यतन रखना तथा किसानों से भू – राजस्व प्राप्त करना
3.रसद एवं अन्य सामग्री उपलब्ध करवाना
4.चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाना
5.कृषि -विकास एवं सिंचाईं की सुविधाएं उपलब्ध करवाना
6.जिला योजनाओ का निर्माण व क्रियान्विति
7.वनों का विकास एवं पर्यावरण सुधार
8.संवैधानिक संस्थाओं के चुनाव करवाना
9.जनता एवं सरकार के बीच की कड़ी का कार्य
10.पंचायत राज व्यवस्था एवं जिला प्रशासन
11.जन समस्याओं व शिकायतों का निवारण
12.जिला स्तरीय शैक्षिक प्रशासन
जिले की न्याय व्यवस्था
⇒नागरिकों के बीच मे सामान्यतः तीन प्रकार के विवाद हो सकते हैं –
1.दीवानी विवाद – संपत्ति (जमीन जायदाद),चीजो की खरीददारी, विवाह,किराया और संविदा संबंधी विवाद दीवानी विवाद कहलाते हैं और इन विवादों का निपटारा दीवानी न्यायालय में होता है।
2.फौजदारी विवाद – हत्या ,मारपीट ,चोरी तथा शांति भंग करने से सम्बंधित विवाद फौजदारी विवाद कहलाते हैं और इन विवादों की सुनवाई फौजदारी न्यायालय में होती है।
3.राजस्व विवाद – भूमि संबंधी विवाद में कृषि भूमि के उत्तराधिकारी, नामांतरण, खातेदारी, लगान ,आदि विवाद आते हैं।
अध्याय 16 मतदाता जागरूकता एवं मतदान प्रक्रिया
⇒25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है।
⇒बी.एल.ओ.(BLO) – बूथ लेवल ऑफिसर
⇒ई.वी.एम. – इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ,जो मतदान के दौरान मतों का रिकार्ड रखती हैं।
⇒वी.वी.पी.ए. टी. – यह एक प्रिंटर डिवाइस है जो थर्मल प्रिटेड पेपर पर्ची के द्वारा मतदाता द्वारा डाले गए वोट की पुष्टि करता है।
⇒वी.वी.पी.ए.टी.- वोटर वेरिफाईएबल पेपर ऑडिट ट्रायल।
⇒प्रिंटेड पर्ची वी.वी.पी.ए. टी. मशीन के ड्राप बॉक्स में 7 सैकण्ड में चली जाती है।
भाग – 3
इतिहास
अध्याय 17 हमारा अतीत
⇒हमारे अतीत में जो ज्ञान के भंडार है ,उसका पता हमे पुरातन सामग्री , शिलालेख आदि से चलता है।
⇒पुरातात्विक स्रोत – पुरातात्विक स्रोत वे है जो पुराने है और पुरातत्ववेताओ द्वारा इकट्ठे किये गए है।
⇒पत्थर पर जो लेख उत्कीर्ण किए जाते हैं , उन्हें शिला लेख कहते हैं।
⇒साहित्यिक स्रोत – साहित्यिक स्रोत वे है , जो किसी भी भाषा में लिखित रूप में प्राप्त है। कहानियां,कथाएँ व किसी भाषा एवं लिपि के ग्रंथ साहित्यिक स्रोत कहलाते हैं।
⇒आज से दस हजार वर्ष पूर्व तक का काल पूरा ऐतिहासिक काल माना जाता है।
⇒पत्थर के बाद मनुष्य ने धातुओ में सर्वप्रथम ताँबे की खोज की।
⇒सिन्धु – सरस्वती सभ्यता – सर्वप्रथम 1921 ई. में पंजाब के हड़प्पा तत्पश्चात सिंंध के मोहनजोदड़ो नामक स्थानों पर खुदाई में इस सभ्यता का पता चला।
⇒सिन्धु – सरस्वती सभ्यता के प्रमुख स्थल – पाकिस्तान में – मोहनजोदड़ो, हड़प्पा ,कोटदीजी एवं चन्हूदड़ों ।
भारत मे – पंजाब में चंडीगढ़ के पास रोपड़, गुजरात में लोथल व धोलावीरा ,राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में कालीबंगा ।
⇒सिन्धु सरस्वती सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता ईसा से 2500 वर्ष एवं वर्तमान से 4500 वर्ष पुरानी मानी जाती है।
⇒सरस्वती नदी – इस नदी के तट पर वेदों की रचना होने का प्रमाणिक विवरण प्राप्त होता है। इस नदी का उदगम स्थल शिवालिक पहाड़ी से माना जाता है। यह नदी हरियाणा ,राजस्थान में होती हुई कच्छ की खाड़ी में गिरती थी। प्राचीन साहित्य में इस नदी को सिन्धु नदी की माँ कहा गया है।
⇒सिन्धु सरस्वती सभ्यता का नगर नियोजन –
⇒इस सभ्यता की सबसे विशेष बात थी , यहां की विकसित नगर निर्माण योजना।
⇒हडप्पा और मोहनजोदड़ो दोनो नगरों में अपने दुर्ग थे।
⇒सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती थी और नगर आयताकार खंडों में विभक्त हो जाता था।
⇒हड़प्पा के दुर्ग में सबसे अच्छी इमारत धान्यकारो की थी।
⇒इस सभ्यता में तीन सामाजिक वर्ग रहते थे – एक शासक वर्ग जो दुर्ग में रहते थे।
दूसरे व्यापारी वर्ग जो शहर के दूसरे भाग में रहते थे।
तीसरा मजदूर वर्ग व आसपास के किसान जो अन्न पैदा करते और गांवो में रहते थे।
सिन्धु सरस्वती सभ्यता की समकालीन विश्व की सभ्यताएं
1.मिश्र की नील नदी घाटी सभ्यता –अफ्रीका के उत्तर में नील नदी क दोनों किनारों पर यह सभ्यता फली फूली है|
2.मेसोपोटामिया की दजला फरात सभ्यता – वर्तमान ईराक के दोआब (मेसोपोटामिया) स्थान पर दजला एवं फरात नामक नदियों के भू – भाग पर यह सभ्यता विकसित हुई।
3.चीन ह्वांगहो नदी सभ्यता – चीन की ह्वांगहो नदी के निचले हिस्से के मैदानी इलाकों में जहां उपजाऊ दुम्मट मिट्टी पाई जाती थी , वहां इस सभ्यता का विकास हुआ।
राजस्थान के प्रमुख पुरातात्विक स्थल
⇒कालीबंगा – राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में कालीबंगा नामक स्थान पर 19621 ई. में दो टीलो की खुदाई में पूरा – ऐतिहासिक काल के अवशेष प्राप्त हुए ।
⇒आहाड़ – उदयपुर की बेड़च नदी के किनारे पर आहाड़ नामक बस्ती ताम्र नगरी के नाम से प्रसिद्ध थी , इसी बस्ती के पूर्व दिशा में मिट्टी के टीलो पर खुदाई में पाषाण युग एवं ताम्र युग के पत्थर , तांबे और मिट्टी के बर्तनों का अवशेष मिले हैं।
⇒गिलूण्ड – उदयपुर से 95 किमी. उत्तर पूर्व में गिलूण्ड (राजसमंद) नामक स्थान पर एक टीले की खुदाई में आहाड़ के समान अवशेष प्राप्त हुए।आहाड़ व गिलूण्ड दोनो स्थलों की सभ्यता आहाड़ संस्कृति के नाम से जानी जाती है।
⇒बागौर – भीलवाड़ा जिले के बागौर नामक स्थान पर कोठारी नदी के किनारे पाषाण एवं ताम्रकालीन उपकरण एवं पुरावशेष एक टीले की खुदाई में प्राप्त हुए । यह बनास संस्कृति के नाम से जाना जाता है।
⇒बालाथल – उदयपुर के पूर्व में 42 किमी. दूर वल्लभनगर के निकट बालाथल नामक गाँव मे एक टीले की खुदाई में ताम्र पाषाण कालीन बर्तन ,मूर्तियां एवं अन्य ऐतिहासिक अवशेष प्राप्त हुए।
⇒नोह् – पूर्वी राजस्थान के भरतपुर शहर से 5 किमी. दूर नोह् नामक स्थान पर तांबे और हड्डियों के उपकरण , लोहे की कुल्हाड़ी आदि प्राप्त हुए।
⇒चंद्रावती – माउंट आबू की तलहटी में आबू रोड के निकट चंद्रावती नामक स्थान पर ऐसे पुरावशेष प्राप्त हुए जो प्राचीन मानव जीवन के निवास आवास और उनके जीवन के विविध पक्षो पर जानकारी देते हैं। यहां उत्खनन से किले के अवशेष व अनाज संग्रह के कोठार मिले हैं। यह परमार वंश की राजधानी थी।
⇒गणेश्वर – सीकर जिले में कांतली नदी के तट पर इस सभ्यता स्थल से ताम्र पाषाण काल की वस्तुएं भारी मात्रा में प्राप्त हुई।
⇒बैराठ – जयपुर जिले में बैराठ विभिन्न युगों में विकसित सभ्यता स्थल रहा है। महाभारत काल मे मत्स्य जनपद की राजधानी थी।यहां सम्राट अशोक के शिलालेख भी प्राप्त हुए।
अध्याय 18 वैदिक सभ्यता एवं संस्कृति
⇒वैदिक संस्कृति भारत की सनातन संस्कृति है।
⇒वैदिक संस्कृति का ज्ञान हमें वेदों तथा वैदिक साहित्य से प्राप्त होता है।
⇒वेद हमारी संस्कृति की धरोहर है।
⇒सबसे पहले ऋग्वेद लिखा गया ।
⇒वेदों को लिखे जाने के आधार पर वैदिक काल को दो भागों में बांटा गया है – 1.पूर्व वैदिक काल 2. उत्तर वैदिक काल
⇒ऋग्वेद के समय की सभ्यता को ऋग्वैदिक सभ्यता एवं उसके बाद वैदिक काल की सभ्यता को उत्तर वैदिक काल की सभ्यता कहते हैं।
⇒वेद भारत का आदि ग्रंथ है एवं आर्यावर्त की प्राचीन रचनाएँ है।
⇒वेदों की संख्या चार है – ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद ,अथर्ववेद।
⇒ऋग्वेद – सबसे प्राचीन वेद। गायत्री मंत्र ऋग्वेद का ही मंत्र है।
⇒यजुर्वेद -यज्ञों में प्रयुक्त होने वाले श्लोक एवं मंत्र ।गद्य पद्य दोनो में लिखित।यानी चम्पू शैली में
⇒सामवेद – देवताओ के पूजा करने के सभी मंत्र शामिल।भारतीय संगीत में स्वर का उद्भव ।कुछ भाग ऋग्वेद से लिया गया।
⇒अथर्ववेद – अथर्व ऋषि के नाम पर इस वेद का नाम अथर्ववेद पड़ा।चिकित्सा विधि एवं रोगों से संबंधित ज्ञान ।
⇒वेद के चार भाग है – 1.संहिता 2.ब्राह्मण 3.अरण्यक 4.उपनिषद
⇒सम्पूर्ण भर्तीयजीवन , दर्शन और साहित्य का आधार धर्म ही रहा है।
⇒वैदिककालीन सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताएं
1.संयुक्त परिवार प्रथा
2.नैतिक व आध्यात्मिक शिक्षा
3.नारी का समाज मे महत्वपूर्ण स्थान
4.जीवन मे सोलह संस्कारों का महत्त्व
5.वसुधैव कुटुम्बकम की भावना
6.आश्रम व्यवस्था
7.वर्ण व्यवस्था
⇒मनुष्य जीवन की आयु को 100 वर्ष मानकर आश्रम जीवन को चार भागों में बाँटा गया है –
1.ब्रह्मचर्य आश्रम – ब्रह्मचर्य आश्रम मनुष्य के जीवन का पहला भाग माना गया है । इसमें यज्ञोपवीत संस्कार से 25 वर्ष की आयु तक व्यक्ति अविवाहित रहते हुए गुरुकुल में रह कर विद्या अध्ययन करता था। ब्रह्मचर्य आश्रम में जो कुछ सीखता था , उसको वह अपने व्यवहार में उतारने का कार्य गृहस्थाश्रम में करता था।
2.गृहस्थ आश्रम – गृहस्थाश्रम की आयु 25 से 50 वर्ष तक मानी गई थी। गृहस्थ पर सम्पूर्ण समाज का दायित्व होता है। विवाह इस आश्रम का मुख्य संस्कार है। यह आश्रम अन्य सभी आश्रमो का पोषक है।
3.वानप्रस्थ आश्रम – वानप्रस्थाश्रम की आयु 50 से 75 वर्ष तक के बीच मानी गई है। वानप्रस्थाश्रम में व्यक्ति परिवार के दायित्व से मुक्त होकर अपना जीवन गांव के निकट जंगल मे बिताता था। गृहस्थ आश्रम में रहकर जो अनुभव प्राप्त किया था , उसको समाज मे बाँटता था ।गृहस्थ आश्रम में वह अपने परिवार के कल्याण के लिए सोचता था किंतु यहां पर वह सम्पूर्ण समाज के कल्याण के लिए सोचता है।
4.सन्यास आश्रम – सन्यास आश्रम मनुष्य की आयु का 75 से 100 वर्ष माना जाता है। वानप्रस्थाश्रम तककि यात्रा में जब मनुष्य ज्ञान व कर्म की शिक्षा को पूर्णरूपेण प्राप्त कर लेता है तब वह उपदेश देने योग्य हो जाता है। उपदेशक निःस्वार्थी होता है। इस काल मे व्यक्ति अपना सम्पूर्ण भाग उस परम पिता परमात्मा को सौप कर समाज को ही अपना आराध्य मानकर जीवन के शेष 25 वर्ष समाज की सेवा के लिए समर्पित करता है। इस आश्रम में व्यक्ति एक जगह नही रहता बल्कि अलग अलग स्थानों पर विचरण करता हुआ लोगो को सदाचार की शिक्षा देता था।
⇒आर्यो के राजनीतिक जीवन का मूल आधार कुटुम्ब था।
⇒कई कुटुम्बों को मिलाकर एक ग्राम बनता था । ग्राम के अधिकारी को ग्रामणी कहते थे।
⇒कई ग्रामों के समूह को मिलाने पर विश नामक इकाई बनती थी जिसके अधिकारी को विशपति कहते थे।
⇒कई विशो के समूह से जन नामक इकाई बनती थी जिसके अधिकारी को शासक या राजन कहते थे।
⇒राजन राज्य का सर्वोच्च अधिकारी होता था।
⇒आर्यो का मुख्य व्यवसाय कृषि था।
⇒आर्यो का दूसरा मुख्य व्यवसाय पशुपालन था।
⇒आर्य लोग व्यापार भी करते थे । व्यापारी वर्ग को पणि कहा जाता था।
⇒आर्य लोग स्वर्ण निर्मित निष्क नामक सिक्का का प्रयोग करते थे।
ऋग्वेद कालीन नदियाँ
प्राचीन नाम | वर्तमान नाम |
कुभा | काबुल |
कुर्मदा | कुर्रम |
गोमती | गोमल |
सुवस्तु | स्वात |
वितस्ता | झेलम |
अश्किनी | चिनाब |
परुषणी | रावी |
शतुद्री | सतलज |
द्वषद्वती | सरस्वती |
विपाशा | व्यास |
अध्याय 19 महाजनपद कालीन भारत एवं मगध साम्राज्य
⇒महाजनपदों की संख्या सोलह थी।
प्रमुख महाजन पद
1.मत्स्य – राजस्थान के अलवर जिले से चम्बल नदी तक।राजधानी – विराटनगर ( वर्तमान नाम बैराठ), महाभारत के अनुसार पांडवों ने अपना अज्ञातवास का समय बिताया था।
2.काशी – प्रारम्भ में महाजनपद काल का सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य। राजधानी – वाराणसी ।
3.कौशल – विस्तार – उत्तरप्रदेश के अवध क्षेत्र में। राजधानी – अयोध्या ( रामायण के अनुसार)
श्रावस्ती (बौद्ध ग्रंथों के अनुसार)
बुद्ध के समय चार शक्तिशाली राजतंत्रों में से एक।
4.अंग – मगध के पश्चिम में स्थित है ।आधुनिक बिहार के मुंगेर और भागलपुर जिले सम्मिलित थे मगध और अंग राज्यो के बीच चंपा नदी बहती थी। राजधानी – चंपा । अंत में मगध में विलीन ।
5.मगध – प्राचीनतम राजधानी – गिरिव्रज , बाद में राजगृह व पाटलिपुत्र । बुद्ध के काल मे चार शक्तिशाली राज्यो में से एक।
6.वज्जि – यह एक संघात्मक गणराज्य ,जो आठ कुलो से बना। राजधानी – वैशाली ।
7.मल्ल – यह भी एक गणराज्य था । यह दो भागों में विभाजित था। एक की राजधानी – कुशीनारा औऱ दूसरी की राजधानी – पावा। अंततः मगध में विलीन।
8.चेदि – राजधानी – शक्तिमती , जिसे बौद्ध साक्ष्य मे सोत्थवती कहा गया।
चेदि लोगो का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है।
महाभारत में यहाँ के राजा शिशुपाल का उल्लेख हुआ है।
9.वत्स – राजधानी – कौशाम्बी।
कौशाम्बी व्यापार का प्रसिद्ध केंद्र था।
बुद्ध के समय यहाँ का राजा उदयन था , जो बड़ा शक्तिशाली व पराक्रमी था।
उदयन की मृत्यु के बाद मगध ने इसको हड़प लिया।
वत्स राज्य भी बुद्ध के समय चार प्रमुख राजतंत्रों में से एक।
10.कुरु – राजधानी – इंद्रप्रस्थ
आधुनिक दिल्ली के आस पास का क्षेत्र।
महाभारत काल का एक प्रसिद्ध राज्य।
हस्तिनापुर इस राज्य का प्रमुख प्रसिद्ध नगर।
11.पांचाल – दो भागों में विभाजित ।
उत्तरी पांचाल – राजधानी – अहिच्छत्र
दक्षिणी पांचाल – राजधानी – कांपिल्य
12.शूरसेन – राजधानी – मधुरा।
महाभारत तथा पुराणों में यहां के राजवंशो को यदु या यादव कहा गया है।
13.अश्मक – दक्षिण में गोदावरी नदी के तट पर स्थित।
राजधानी – पोतलि अथवा पोदन
बाद में अवन्ति ने इसे अपने राज्य में मिला लिया।
14.अवन्ति – वर्तमान उज्जैन का भू प्रदेश तथा नर्मदा घाटी का कुछ भाग।
दो भागों में विभाजित – उत्तरी भाग की राजधानी – उज्जैन व दक्षिणी भाग की राजधानी – महिष्मति।
15.गांधार – वर्तमान में पाकिस्तान के पेशावर तथा रावलपिडी के जिले।
इस राज्य में कश्मीर घाटी तथा प्राचीन तक्षशिला का भू प्रदेश आता था।
राजधानी – तक्षशिला
16.कम्बोज – यह राज्य पहले एक राजतंत्र था ,किंतु बाद में गणतंत्र बन गया।
राजधानी – राजपुर
बुद्ध के काल मे चार शक्तिशाली राज्य –
1.मगध
2.वत्स
3.अवन्ति
4.कौशल
महाजनपदों की शासन व्यवस्था –
राजा – राजा को गणपति कहा जाता था। वह निर्वाचित किया जाता था।
मंत्रिपरिषद – गणपति की शासन चलाने की सलाह देती थी। शासन की सबसे महत्वपूर्ण इकाई मंत्रिपरिषद मानी जाती थी।
परिषद – वर्तमान में लोकसभा के समान। गणपति और मंत्रिपरिषद शासन के बारे में परिषद को जानकारी देते थे। परिषद के सदस्यों का चुनाव जनता करती थी और यही पर गणपति और मंत्रिपरिषद के सदस्य बैठते थे।
सैन्य व्यवस्था – गणराज्य की रक्षा के लिए सेना और सेनापति होता था । युद्ध के समय जनता सेना का साथ देती थी।
न्याय – राजा न्याय का सर्वोच्च अधिकारी होता था , जो सभी न्यायालयों द्वारा अपराधी बताये जाने के बाद दंड देता था ।
कर एवं आय – व्यय – महाजनपदों के राजा विशाल किले बनाते थे और बड़ी सेना रखते थे इसलिए इन्हें प्रचुर संसाधनों एवं कर्मचारियों की आवश्यकता होती थी। कृषि ,व्यापार और व्यवसाय से कर लिया जाता था। वनों और खदानों से होने वाली आय राज्य की होती थी , इससे मंत्रिपरिषद ,सेना और पुलिस का खर्च चलाया जाता था।
मगध साम्राज्य का उदय –
छठी शताब्दी ई.पू. में भारत मे 16 महाजनपद थे। इन 16 महाजनपदों में से मगध राजनीतिक ,भौगोलिक और सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था , जो अन्य महाजनपदों को अपने मे विलीन कर भारत के प्रथम विशाल साम्राज्य के रूप में विकसित हुआ।
छ्ठी से चौथी शताब्दी ई. पू. में लगभग दो सौ साल के भीतर मगध (आधुनिक बिहार) सबसे शक्तिशाली एवं महत्त्वपूर्ण महाजनपद बन गया।
मगध की महत्ता –
1. हाथी सेना का महत्त्वपूर्ण अंग।
2.मगध के चारो ओर गंगा और सोन जैसी नदियों से घिरा होना।
3.लोह खनिज के भंडार
4.मगध की प्रारंभिक राजधानी गिरिव्रज थी ।
पहाड़ियों के बीच बसा गिरिव्रज एक किलेबंद शहर था।
राजगृह एवं पाटलिपुत्र भी सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थानों पर स्थित थे ।
राजगृह पाँच पर्वत शृंखलाओं से घिरा हुआ था। जहाँ किसी भी शत्रु के लिए पहुँचना दुष्कर था तो पाटलिपुत्र गंगा और सोन से आवृत्त थी।
मगध साम्राज्य के उत्थान एवं समृद्धि में अजातशत्रु का बड़ा योगदान रहा।
नंद वंश के शासकों ने धन संचय करने और विशाल सेना को रखने के लिए अत्यधिक कर लगाए। करो का बोझ अधिक होने से प्रजा राजा को घृणा की दृष्टि से देखती थी ।परिणामस्वरूप असंतुष्ट वर्ग ने चाणक्य की सहायता से चंद्रगुप्त की अपना नेता चुना ,जिसने नंद वंश को समाप्त कर प्रसिद्ध मौर्य साम्राज्य की नींव डाली।
मगध के प्रमुख शासको के नाम
हर्यंक वंश – बिम्बिसार, अजातशत्रु
शिशुनाग वंश – शिशुनागग
नंद वंश – महापद्मनन्द , घनानंद
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