लोकोक्तियाँ (हिंदी व्याकरण)

लोकोक्तियाँ
विश्व की सभी भाषाओं में लोकोक्तियों का प्रचलन है। प्रत्येक समाज में प्रचलित लोकोक्तियाँ अलिखित कानून के रूप में मानी गई हैं। मनुष्य अपनी बात को और अधिक प्रभावपूर्ण बनाने के लिए इनका प्रयोग करता है। लोकोक्ति शब्द लोक+उक्ति के योग से निर्मित हुआ है। लोक में पीढ़ियों से प्रचलित इन उक्तियों में अनुभव का सार एवं व्यावहारिक नीति का निचोड़ होता है। अनेक लोकोक्तियों के निर्माण में किसी घटना विशेष का विशेष योगदान होता है और उसी कोटि की स्थिति परिस्थिति के समय उस लोकोक्ति का प्रयोग स्थिति या अवस्था के सुस्पष्टीकरण हेतु किया जाता है, जो उस सम्प्रदाय या समाज को सहर्ष स्वीकार्य होता है।

1.अपना रख, पराया चख – अपना बचाकर दूसरों का माल हड़प करना।

2.अपनी करनी पार उतरनी – स्वयं का परिश्रम ही काम आता है।

3.अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता – अकेला व्यक्ति शक्ति हीन होता है।

4.अधजल गगरी छलकत जाय – ओछा आदमी अधिक इतराता है।

5.अंधों में काना राजा – मूर्खों में कम ज्ञान वाला भी आदर पाता है।

6.अंधे के हाथ बटेर लगना – अयोग्य व्यक्ति को बिना परिश्रम संयोग से अच्छी वस्तु मिलना।

7.अंधा पीसे कुत्ता खाय – मूर्खों की मेहनत का लाभ अन्य उठाते हैं।/ असावधानी से अयोग्य को लाभ।

8.अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत – अवसर निकल जाने पर पछताने से कोई लाभ नहीं।

9.अन्धे के आगे रोवै अपने नैना खोवै – निर्दय व्यक्ति या अयोग्य व्यक्ति से सहानुभूति की अपेक्षा करना व्यर्थ है।

10 अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है। – अपने क्षेत्र में कमजोर भी बलवान बन जाता है।

11.अन्धेर नगरी चौपट राजा – प्रशासन की अयोग्यता से सर्वत्र अराजकता आ जाना।

12.अन्धा क्या चाहे दो आँखें – बिना प्रयास वांछित वस्तु का मिल जाना।

13.अक्ल बड़ी या भैंस – शारीरिक बल से बुद्धिबल श्रेष्ठ होता है।

14.अपना हाथ जगन्नाथ – अपना काम अपने ही हाथों ठीक रहता है।

15.अपनी-अपनी डपली अपना-अपना राग – तालमेल का अभाव/सबका अलग-अलग मत होना/एकमत का अभाव

16.अंधा बाँटे रेवडी फिर-फिर अपनों को देय – स्वार्थी व्यक्ति अधिकार पाकर अपने लोगों की सहायता करता है।

17.अंत भला तो सब भला – कार्य का अन्तिम चरण ही महत्वपूर्ण होता है।

18.आ बैल मुझे मार – जानबूझ कर मुसीबत में फँसना

19.आम के आम गुठली के दाम – हर प्रकार का लाभ/एक काम से दो लाभ

20.आँख का अंधा नाम नयन सुख – गुणों के विपरीत नाम होना।

21.आगे कुआँ पीछे खाई – दोनों/सब ओर से विपत्ति में फँसना

22.आप भला जग भला – अपने अच्छे व्यवहार से सब जगह आदर मिलता है।

23.आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास – उद्देश्य से भटक जाना/श्रेष्ठ काम करने की बजाय तुच्छ कार्य करना/कार्य विशेष की उपेक्षा कर किसी अन्य कार्य में लग जाना।

24.आधा तीतर आधा बटेर – अनमेल मिश्रण/बेमेल चीजें जिनमें सामंजस्य का अभाव हो।

25.इन तिलों में तेल नहीं – किसी लाभ की आशा न होना।

27.आठ कनौजिए नौ चूल्हे – फूट होना

28.उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे – अपना अपराध न मानना और पूछने वाले को ही दोषी ठहराना।

29.उल्टे बाँस बरेली को – विपरीत कार्य या आचरण करना

30.ऊधो का न लेना, न माधो का देना – किसी से कोई मतलब न रखना/ सबसे अलग।

31.ऊँची दुकान फीका पकवान – वास्तविकता से अधिक दिखावा।/ दिखावा ही दिखावा।/ केवल बाहरी दिखावा।

32.ऊँट के मुँह में जीरा – आवश्यकता की नगण्य पूर्ति

33.ऊखली में सिर दिया तो मूसल का क्या डर – जब दृढ़ निश्चय कर लिया तो बाधाओं से क्या घबराना।

34.ऊँट किस करवट बैठता है – परिणाम में अनिश्चितता होना।

35.एक पंथ दो काज – एक काम से दोहरा लाभ/एक तरकीब से दो कार्य करना/एक साधन से दो कार्य करना।

36.एक अनार सौ बीमार – वस्तु कम, चाहने वाले अधिक/एक स्थान के लिये सैकड़ों प्रत्याशी

37.एक मछली सारा तालाब गंदा कर देती है। – एक की बुराई से साथी भी बदनाम होते हैं।

38.एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं – दो प्रशासक एक ही जगह एक साथ शासन नहीं कर सकते।

39.एक हाथ से ताली नहीं बजती – लड़ाई का कारण दोनों पक्ष होते हैं।

40.एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा – बुरे से और अधिक बुरा होना/ एक बुराई के साथ दूसरी बुराई का जुड़ जाना।

41.कागज की नाव नहीं चलती – बेइमानी से किसी कार्य में सफलता नहीं मिलती।

42.काला अक्षर भैंस बराबर – बिल्कुल निरक्षर होना।

43.कंगाली में आटा गीला – संकट पर संकट आना।

44.कोयले की दलाली में – बुरे काम का परिणाम भी बुरा हाथ काले होता है।/ दुष्टों की संगति से कलंकित होते हैं।

45.का वर्षा जब कृषि सुखानी – अवसर बीत जाने पर साधन की प्राप्ति बेकार है।

46.कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा – अलग-अलग स्वभाव वालों को एक जगह एकत्र करना/इधर-उधर से सामग्री जुटा कर कोई निकृष्ट वस्तु का निर्माण करना।

47.कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर – एक-दूसरे के काम आना।/ परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं।

48.काबुल में क्या गधे नहीं होते – मूर्ख सब जगह मिलते हैं।

49.कहने पर कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता – कहने से जिद्दी व्यक्ति काम नहीं करता।

50.कोउ नृप होउ हमें का हानि – अपने काम से मतलब रखना।

51.कौवा चला हंस की चाल, भूल गया अपनी भी चाल – दूसरों के अनधिकार अनुकरण से अपने रीति रिवाज भूल जाना।

52.कभी घी घना तो कभी मुट्ठी चना – परिस्थितियाँ सदा एक सी नहीं रहतीं।

53.करले सो काम भजले सो राम – एक निष्ठ होकर कर्म और भक्ति करना

54.काज परै कछु और है, काज सरै कछु और। – दुनिया बड़ी स्वार्थी है काम निकाल कर मुँह फेर लेते हैं।

55.खोदा पहाड़ निकली चुहिया – अधिक परिश्रम से कम लाभ होना

56.खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है – स्पर्धावश काम करना/साथी को देखकर दूसरा साथी भी वैसा ही व्यवहार करता है।

57.खग जाने खग ही की भाषा – मूर्ख व्यक्ति मूर्ख की बात समझता है।

58.खिसियानी बिल्ली खम्भा खोंसे – शक्तिशाली पर वश न चलने के कारण कमजोर पर क्रोध करना

59.गागर में सागर भरना – थोड़े में बहुत कुछ कह देना

60.गुरु तो गुड़ रहे चेले शक्कर हो गये – चेले का गुरु से अधिक ज्ञानवान होना

61.गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त – स्वयं की अपेक्षा दूसरों का उसके लिए अधिक प्रयत्नशील होना

62.गुड़ खाए और गुलगुलों से परहेज – झूठा ढोंग रचना

63.गाँव का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध – अपने स्थान पर सम्मान नहीं होता।

64.गरीब तेरे तीन नाम-झूठा पापी, बेईमान। – गरीब पर ही सदैव दोष मढ़े जाते हैं।/ निर्धनता सदैव अपमानित होती है।

65.गुड़ दिये मरे तो जहर क्यों दे – प्रेम से कार्य हो जाये तो फिर दण्ड क्यों।

66.गंगा गये गंगादास यमुना गये यमुनादास – अवसरवादी होना।

67.गोद में छोरा शहर में ढिंढोरा – पास की वस्तु को दूर खोजना

68.गरजते बादल बरसते नहीं – कहने वाले (शोर मचाने वाले) कुछ करते नहीं

69.गुरु कीजै जान, पानी पीवै छान – अच्छी तरह समझ बूझकर काम करना।

70.घर-घर मिट्टी के चूल्हे हैं – सबकी एक सी स्थिति का होना।/ सभी समान रूप से खोखले हैं।

71.घोड़ा घास से दोस्ती करे तो क्या खाये। – मजदूरी लेने में संकोच कैसा?

72.घर का भेदी लंका ढाहे – घरेलू शत्रु प्रबल होता है।

73.घर की मुर्गी दाल बराबर – अधिक परिचय से सम्मान कम/ घरेलू साधनों का मूल्यहीन होना

74.घर बैठे गंगा आना – बिना प्रयत्न के लाभ, सफलता मिलना

75.घर में नहीं दाने बुढ़िया चली भुनाने – झूठा दिखावा करना

76.घर आये नाग न पूजै, बाँबी पूजन जाय – अवसर का लाभ न उठाकर उसकी खोज में जाना

77.घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध – विद्वान का अपने घर की अपेक्षा बाहर अधिक सम्मान/परिचित की अपेक्षा अपरिचित का विशेष आदर

78.चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाए – बहुत कंजूस होना

79.चलती का नाम गाड़ी – काम का चलते रहना/बनी बात के सब साथी होते हैं।

80.चंदन की चुटकी भली गाड़ी भरा न काठ – अच्छी वस्तु तो थोड़ी भी भली

81.चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात – सुख का समय थोड़ा ही होता है।

82.चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता – निर्लज्ज पर किसी बात का असर नहीं होता।

83.चिराग तले अँधेरा – दूसरों को उपदेश देना स्वयं अज्ञान में रहना

84.चींटी के पर निकलना – बुरा समय आने से पूर्व बुद्धि का, नष्ट होना

85.चील के घोंसले में माँस कहाँ? – भूखे के घर भोजन मिलना असंभव होता है।

86.चुपड़ी और दो-दो – लाभ में लाभ होना।

87.चोरी का माल मोरी में – बुरी कमाई बुरे कार्यों में नष्ट होती है।

88.चोर की दाढ़ी में तिनका – अपराधी का सशंकित होना/ अपराधी के कार्यों से दोष प्रकट हो जाता है।

89.चोर-चोर मौसेरे भाई – दुष्ट लोग प्रायः एक जैसे होते हैं/ एक से स्वभाव वाले लोगों में मित्रता होना

90.छछंदर के सिर में चमेली का तेल – अयोग्य व्यक्ति के पास अच्छी वस्तु होना।

91.छोटे मुँह बड़ी बात – हैसियत से अधिक बातें करना

92.जहाँ काम आवै सुई का करै तरवारि – छोटी वस्तु से जहाँ काम निकलता है वहाँ बड़ी वस्तु का उपयोग नहीं होता है।

93.जल में रहकर मगर से बैर – बड़े आश्रयदाता से दुश्मनी ठीक नहीं

94.जब तक साँस तब तक आस – जीवन पर्यन्त आशान्वित रहना

95.जंगल में मोर नाचा किसने देखा – दूसरों के सामने उपस्थित होने पर ही गुणों की कद्र होती है।/ गुणों का प्रदर्शन उपयुक्त स्थान पर।

96.जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी – मातृभूमि का महत्त्व स्वर्ग से भी बढ़कर है।

97.जहाँ मुर्गा नहीं बोलता वहाँ क्या सवेरा नहीं होता – किसी के बिना कोई काम नहीं रुकता कोई अपरिहार्य नहीं है।

98.जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि – कवि दूर की बात सोचता है।/ सीमातीत कल्पना करना

99.जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई – जिसने कभी दुःख नहीं देखा वह दूसरों का दुःख क्या अनुभव करे

100.जाकी रही भावना जैसी, हरि मूरत देखी तिन तैसी – भावनानुकूल (प्राप्ति का होना) औरों को देखना

101.जान बची और लाखों पाये – प्राण सबसे प्रिय होते हैं।

102.जाको राखे साइयाँ मारि सके न कोय – ईश्वर रक्षक हो तो फिर डर किसका, कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

103.जिस थाली में खाये उसी में छेद करना। – विश्वासघात करना।/ भलाई करने वाले का ही बुरा करना।/ कृतघ्न होना

104.जिसकी लाठी उसकी भैंस – शक्तिशाली की विजय होती है।

105.जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ – प्रयत्न करने वाले को सफलता/ लाभ अवश्य मिलता है।

106.जो ताको काँटा बुवै ताहि बोय तू फूल – अपना बुरा करने वालों के साथ भी भलाई का व्यवहार करो

107.जादू वही जो सिर चढ़कर बोले – उपाय वही अच्छा जो कारगर हो

108.झटपट की घानी आधा तेल आधा पानी – जल्दबाजी का काम खराब ही होता है।

109.झूठ कहे सो लड्डू खाय, साँच कहे सो मारा जाय। – आजकल झूठे का बोल बाला है।

110.जैसी बहे बयार पीठ तब वैसी दीजै – समयानुसार कार्य करना।

111.टके का सौदा नौ टका विदाई – साधारण वस्तु हेतु खर्च अधिक

112.टेढ़ी उँगली किये बिना घी नहीं निकलता – सीधेपन से काम नहीं (चलता)

113.टके की हाँडी गई पर कुत्ते की जात पहचान ली – थोड़ा नुकसान उठाकर धोखेबाज को पहचानना ।

114.डूबते को तिनके का सहारा – संकट में थोड़ी सहायता भी लाभप्रद/पर्याप्त होती है।

115.ढाक के तीन पात – सदा एक सी स्थिति बने रहना

116.ढोल में पोल – बड़े-बड़े भी अन्धेर करते हैं।

117.तीन लोक से मथुरा न्यारी – सबसे अलग विचार बनाये रखना

118.तीर नहीं तो तुक्का ही सही – पूरा नहीं तो जो कुछ मिल जाये उसी में संतोष करना।

119.तू डाल-डाल मैं पात-पात

चालाक से चालाकी से पेश आना।/ एक से बढ़कर एक चालाक होना।

120.तेल देखो तेल की धार देखो – नया अनुभव करना धैर्य के साथ सोच समझ कर कार्य करो/ परिणाम की प्रतीक्षा करो।

121.तेली का तेल जले मशालची का दिल जले – खर्च कोई करे बुरा किसी और को ही लगे।

122.तेते पाँव पसारिये जेती लाम्बी सौर – हैसियतानुसार खर्च करना/अपने सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना

123.तन पर नहीं लत्ता पान खाये अलबत्ता – अभावग्रस्त होने पर भी ठाठ से रहना/ झूठा दिखावा करना।

124.तीन बुलाए तेरह आये – अनिमन्त्रित व्यक्ति का आना।

125.तीन कनौजिये तेरह चूल्हे – व्यर्थ की नुक्ताचीनी करना।/ ढोंग करना।

126.थोथा चना बाजे घना – गुणहीन व्यक्ति अधिक डींगें मारता है/आडम्बर करता है।

127.दूध का दूध पानी का पानी – सही सही न्याय करना।

128.दमड़ी की हॉडी भी ठोक कर लेते हैं। – छोटी चीज को भी देखभाल बजाकर लेते हैं।

129.दान की बछिया के दाँत नहीं गिने जाते – मुफ्त की वस्तु के गुण नहीं देखे जाते।

130.दाल भात में मूसल चंद – किसी के कार्य में व्यर्थ में दखल देना।

131.दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम – संदेह की स्थिति में कुछ भी हाथ नहीं लगना।

132.दूध का जला छाछ को फूंक फूंक कर पीता है। – एक बार धोखा खाया व्यक्ति दुबारा सावधानी बरतता है।

133.दूर के ढोल सुहाने लगते हैं – दूरवर्ती वस्तुएँ अच्छी मालूम होती हैं /दूर से ही वस्तु का अच्छा लगना पास आने पर वास्तविकता का पता लगना

134.दैव दैव आलसी पुकारा – आलसी व्यक्ति भाग्यवादी होता है।

135.धोबी का कुत्ता घर का न घाट का – किधर का भी न रहना न इधर का न उधर का

136.न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी – ऐसी अनहोनी शर्त रखना जो पूरी न हो सके/बहाने बनाना।

137.न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी – झगड़े को जड़ से ही नष्ट करना

138.नक्कार खाने में तूती की आवाज – अराजकता में सुनवाई न होना।/ बड़ों के समक्ष छोटों की कोई पूछ नहीं।

139.न सावन सूखा न भादों हरा – सदैव एक सी तंग हालत रहना

140.नाच न जाने आँगन टेढ़ा – अपना दोष दूसरों पर मढ़ना/ अपनी अयोग्यता को छिपाने हेतु दूसरों में दोष ढूंढना।

141.नाम बड़े और दर्शन खोटे – बड़ों में बड़प्पन न होना/ गुण कम किन्तु प्रशंसा अधिक।

142.नीम हकीम खतरे जान, नीम मुल्ला खतरे ईमान – अध कचरे ज्ञान वाला अनुभवहीन व्यक्ति अधिक हानिकारक होता है।

143.नेकी और पूछ-पूछ – भलाई करने में भला पूछना क्या?

144.नेकी कर कुए में डाल – भलाई कर भूल जाना चाहिये।

145.नौ नगद, न तेरह उधार – भविष्य की बड़ी आशा से तत्काल का थोड़ा लाभ अच्छा/व्यापार में उधार की अपेक्षा नगद को महत्त्व देना।

146.नौ दिन चले अढ़ाई कोस – बहुत धीमी गति से कार्य का होना

147.नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली – बहुत पाप करके पश्चाताप करने का ढोंग करना।

148.पढ़े पर गुने नहीं – अनभवहीन होना।

149.पढ़े फारसी बेचे तेल, देखो यह विधना का खेल –शिक्षित होते हुए भी दुर्भाग्य से निम्न कार्य करना।

150.पराधीन सपनेहु सुख नाहीं – परतंत्र व्यक्ति कभी सुखी नहीं होता।

151.पाँचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती – सभी समान नहीं हो सकते।

152.प्रभुता पाय काहि मद नाहीं – अधिकार प्राप्ति पर किसे गर्व नहीं होता।

153.पानी में रहकर मगर से बैर – शक्तिशाली आश्रयदाता से वैर करना।

154.प्यादे से फरजी भयो टेढ़ो- टेढो जाय – छोटा आदमी बड़े पद पर पहुँचकर इतराकर चलता है।

155.फटा मन और फटा दूध फिर नहीं मिलता – एक बार मतभेद होने पर पुनः मेल नहीं हो सकता ।

156.बारह बरस में घूरे के दिन भी फिरते हैं। – कभी न कभी सबका भाग्योदय होता है।

157.बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद – मूर्ख को गुण की परख न होना।/ अज्ञानी किसी के महत्त्व को आँक नहीं सकता।

158.बद अच्छा, बदनाम बुरा – कलंकित होना बुरा होने से भी बुरा है।

159.बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी। – जब संकट आना ही है तो उससे कब तक बचा जा सकता है।

169.बावन तोले पाव रत्ती – बिल्कुल ठीक या सही सही होना

160.बाप न मारी मेंढकी बेटा तीरंदाज – बहुत अधिक बातूनी या गप्पी होना

161.बाँबी में हाथ तू डाल मंत्र मैं पढूँ – खतरे का कार्य दूसरों को सौंपकर स्वयं अलग रहना।

162.बापू भला न भैया, सबसे बड़ा रुपया – आजकल पैसा ही सब कुछ है।

163.बिल्ली के भाग छींका टूटना – संयोग से किसी कार्य का अच्छा होना/अनायास अप्रत्याशित वस्तु की प्राप्ति होना।

164.बिन माँगे मोती मिले माँगे मिले न भीख –भाग्य से स्वतः मिलता है इच्छा से नहीं।

165.बिना रोए माँ भी दूध नहीं पिलाती – प्रयत्न के बिना कोई कार्य नहीं होता।

166.बैठे से बेगार भली – खाली बैठे रहने से तो किसी का कुछ काम करना अच्छा।

167.बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाए – बुरे कर्म कर अच्छे फल की इच्छा करना व्यर्थ है।

168.भई गति साँप छछूंदर जैसी – दुविधा में पड़ना।

169.भूल गये राग रंग भूल गये छकड़ी तीन चीज याद रही नोन, तेल, लकड़ी – गृहस्थी के जंजाल में फंसना

170.भूखे भजन न होय गोपाला – भूख लगने पर कुछ भी अच्छा नहीं लगता।

171.भागते भूत की लंगोट भली – हाथ पड़े सो लेना/ जो बच जाए उसी से संतुष्टि/कुछ नहीं से जो कुछ भी मिल जाए वह अच्छा।

172.भैंस के आगे बीन बजाये भैंस खड़ी पगुराय। – मूर्ख को उपदेश देना व्यर्थ है।

173.बिच्छू का मंत्र न जाने साँप के बिल में हाथ डाले – योग्यता के अभाव में उलझनदार काम करने का बीड़ा उठा लेना।

174.मन चंगा तो कठौती में गंगा – मन पवित्र तो घर में तीर्थ है।

175.मरता क्या न करता – मुसीबत में गलत कार्य करने को भी तैयार होना पड़ता है।

176.मानो तो देव नहीं तो पत्थर – विश्वास फलदायक होता है।

177.मान न मान मैं तैरा मेहमान – जबरदस्ती गले पड़ना।

178.मार के आगे भूत भागता है – दण्ड से सभी भयभीत होते हैं।

179.मियाँ बीबी राजी तो क्या करेगा काजी? – यदि आपस में प्रेम है तो तीसरा क्या कर सकता है ?

180.मुख में राम बगल में छुरी – ऊपर से मित्रता अन्दर शत्रुता धोखेबाजी करना।

181.मेरी बिल्ली मुझ से ही म्याऊँ – आश्रयदाता का ही विरोध करना

182.मेंढ़की को जुकाम होना – नीच आदमियों द्वारा नखरे करना।

183.मन के हारे हार है मन के जीते जीत – साहस बनाये रखना आवश्यक है। हतोत्साहित होने पर असफलता व उत्साहपूर्वक कार्य करने से जीत होती है।

184.यथा राजा तथा प्रजा – जैसा स्वामी वैसा सेवक

185.यथा नाम तथा गुण – नाम के अनुसार गुण का होना।

186.यह मुँह और मसूर की दाल – योग्यता से अधिक पाने की इच्छाकरना

187.मुफ्त का चंदन, घिस मेरे नंदन – मुफ्त में मिली वस्तु का दुरुपयोग करना।

188.रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई – सर्वनाश होने पर भी घमण्ड बने रहना/टेक न छोड़ना।

189.रंग में भंग पड़ना – आनन्द में बाधा उत्पन्न होना।

190.राम नाम जपना, पराया माल अपना – मक्कारी करना।

191.रोग का घर खाँसी, झगड़े का घर हाँसी – हँसी मजाक झगड़े का कारण बन जाती है।

192.रोज कुआ खोदना रोज पानी पीना – प्रतिदिन कमाकर खाना/ रोज कमाना रोज खा जाना।

193.लकड़ी के बल बन्दरी नाचे – भयवश ही कार्य संभव है।

194.लम्बा टीका मधुरी बानी दगेबाजी की यही निशानी। – पाखण्डी हमेशा दगाबाज होते हैं।

195.लातों के भूत बातों से नहीं मानते – नीच व्यक्ति दण्ड से/भय से कार्य करते हैं कहने से नहीं।

196.लोहे को लोहा ही काटता है – बुराई को बुराई से ही जीता जाता है।

197.वक्त पड़े जब जानिये को बैरी को मीत – विपत्ति/अवसर पर ही शत्रु व मित्र की पहचान होती है।

198.विधिकर लिखा को मेटनहारा – भाग्य को कोई बदल नहीं सकता।

199.विनाश काले विपरीत बुद्धि – विपत्ति आने पर बुद्धि भी नष्ट हो जाती है।

200.शबरी के बेर – प्रेममय तुच्छ भेंट

201.शक्करखोर को शक्कर मिल ही जाती है। – जरूरतमंद को उसकी वस्तु सुलभ हो ही जाती है।

202.शुभस्य शीघ्रम – शुभ कार्य में शीघ्रता करनी चाहिए।

203.शठे शाठ्यं समाचरेत – दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिये।

204.साँच को आँच नहीं – सच्चा व्यक्ति कभी डरता नहीं।

205.सब धान बाईस पंसेरी – अविवेकी लोगों की दृष्टि में गुणी और मूर्ख सभी व्यक्ति बराबर होते हैं।

206.सब दिन होत न एक समान – जीवन में सुख-दुःख आते रहते हैं, क्योंकि समय परिवर्तनशील होता है।

207.सैइयाँ भये कोतवाल अब काहे का डर – अपनों के उच्चपद पर होने से बुरे कार्य बेहिचक करना।

208.समरथ को नहीं दोष गुसाईं – गलती होने पर भी सामर्थ्यवान को कोई कुछ नहीं कहता।

209.सावन सूखा न भादों हरा – सदैव एक सी स्थिति बने रहना।

210.साँप मर जाये और लाठी बिना न टूटे – सुविधापूर्वक कार्य होना/ हानि के कार्य का बन जाना।

211.सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है। – अपने समान सभी को समझना।

212.सीधी अँगुली घी नहीं निकलता – सीधेपन से कोई कार्य नहीं होता

213.सिर मुंडाते ही ओले पड़ना – कार्य प्रारम्भ करते ही बाधा उत्पन्न होना।

214.सोने में सुगन्ध – अच्छे में और अच्छा।

215.सौ सुनार की एक लुहार की – सैंकड़ों छोटे उपायों से एक बड़ा उपाय अच्छा।

216.सूप बोले तो बोले छलनी भी बोले – दोषी का बोलना ठीक नहीं।

217.हथेली पर दही नहीं जमता – हर कार्य के होने में समय लगता है।

218.हथेली पर सरसों नहीं उगती – कार्य के अनुसार समय भी लगता है।

219.हल्दी लगे न फिटकरी रंग चोखा आ जाय – आसानी से काम बन जाना।/ कम खर्च में अच्छा कार्य।

220.हाथ कंगन को आरसी क्या – प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता क्या?

221.हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और – कपटपूर्ण व्यवहार/कहे कुछ करे कुछ।/ कथनी व करनी में अन्तर।

222.होनहार बिरवान के होत चीकने पात- महान व्यक्तियों के लक्षण बचपन में ही नजर आ जाते हैं।

223.हाथ सुमरिनी बगल कतरनी – कपटपूर्ण व्यवहार करना।

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