मौर्य साम्राज्य

मौर्य साम्राज्य (322 ई.पू.से 184 ई.पू.)

⇒मौर्य साम्राज्य के कार्यकाल में चन्द्रगुप्त मौर्य,बिन्दुसार एवं अशोक जैसे प्रसिद्ध शासक हुए। 

⇒सिकंदर के आक्रमण और नंद वंश के पतन के बाद मगध में मौर्य वंश ने अपना राज्य स्थापित किया

⇒सिकंदर के आक्रमण के बाद चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से नंद वंश को हराकर मगध में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।

⇒323 ईसा पूर्व सिकंदर की मृत्यु के बाद चंद्रगुप्त मौर्य ने कौटिल्य की सहायता से मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।

चंद्रगुप्त मौर्य (322 ई.पू. से 298 ई.पू.)

⇒अपने गुरु चाणक्य की सहायता से नंद वंश के अंतिम शासक घनानंद को पराजित कर 25 वर्ष की आयु में 322 ईसा पूर्व चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।

चंद्रगुप्त मौर्य ने नंदो के अत्याचारी शासन से मगध की जनता को मुक्ति दिलाई और मौर्य वंश की नींव रखी

⇒उसने यूनानी आक्रमणकारियों से भी भारत को मुक्त किया इसलिए उसे भारत का मुक्तिदाता कहा जाता है ।

⇒मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त मौर्य के लिए वृषल शब्द का प्रयोग किया गया है।

⇒जैन साहित्य के अनुसार – क्षत्रिय ।

⇒चंद्रगुप्त मौर्य ने सर्वप्रथम पश्चिम उत्तर भारत के प्रदेशों पर शासन करने वाले यूनानी शत्रुओं का उन्मूलन किया।

⇒चंद्रगुप्त मौर्य ने 323 ईसा पूर्व से 317 ईसा पूर्व के मध्य पंजाब तथा सिंध को यूनानियों से मुक्त करा लिया।

⇒चंद्रगुप्त मौर्य नंद वंश के अंतिम शासक घनानंद (नौंवे)को परास्त कर नंद वंश का उन्मूलन कर दिया।

⇒चंद्रगुप्त मौर्य ने 305 ईसा पूर्व में सेल्यूकस को पराजित किया।

⇒एकमात्र यूनानी लेखक एप्पीयानस ने लिखा है कि सेल्यूकस ने सिंधु नदी पार कर भारत के सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य से युद्ध छेड़ा, अनंत: उससे संधि और वैवाहिक संबंध स्थापित हो गया।

⇒सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त मौर्य को एरिया (काबुल) अराकोसिया (कंधार) ,जेडोसिया(मकरान – बलूचिस्तान) तथा पेरीपेनसदाई (हेरात)प्रदेश संधि में दिए।

⇒सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलेना का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य से कर दिया।

⇒प्लूटार्क के अनुसार चंद्रगुप्त ने उपहार स्वरूप सेल्यूकस को 500 हाथी दिए।

⇒मेगस्थनीज 346 से ईसा पूर्व से 293 ईसा पूर्व के मध्य पाटलिपुत्र स्थित मौर्य दरबार मे रहा।

⇒मेगास्थनीज ने अपने विवरण अपनी पुस्तक इंडिका में लिखा।

⇒जूनागढ़ शिलालेख के अनुसार ‘चंद्रगुप्त मौर्य के गुजरात के प्रांतीय गवर्नर पुष्य गुप्त वैश्य ने सिंचाई हेतु सुदर्शन झील पर एक बांध बनवाया था।’

चंद्रगुप्त मौर्य तथा दक्षिण भारत

⇒दक्षिण तथा पश्चिमी भारत पर चंद्रगुप्त की विजय का ज्ञान अप्रत्यक्ष सक्षम से होता है।

⇒तमिल परंपराओं में मोरियो द्वारा तमिल प्रदेश की विजय के विवरण मिलते हैं जो चंद्रगुप्त मौर्य के काल में हुई होगी।

⇒जैन परंपरा से भी चंद्रगुप्त मौर्य के दक्षिण विजय की जानकारी मिलती है।

⇒संगम ग्रंथ अहनानूरु व पुरना नुरू से चंद्रगुप्त की दक्षिण विजय की जानकारी मिलती है ।

⇒अशोक के अभिलेख चंद्रगुप्त की दक्षिण विजय समर्थन करते हैं।

⇒जैन परंपरा अनुसार जीवन के अंतिम दिनों में चंद्रगुप्त मौर्य ने जैन भिक्षु भद्रबाहु का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया तथा मगध में पड़े 12 वर्षीय अकाल से निपटने में असफल रहने पर भद्रबाहु के साथ कर्नाटक स्थित श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर जाकर सल्लेखना (आमरण उपवास) द्वारा 298 ईसा पूर्व में शरीर को त्याग दिया।

⇒पुराणों के अनुसार चंद्रगुप्त का शासनकाल 24 वर्ष था।

⇒चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य दक्षिण में कलिंग को छोड़कर ,अफगानिस्तान से पूर्व में असम तक तथा उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कर्नाटक तक विस्तृत था।

बिंदुसार (298 ई.पू. से 273 ई.पू.)

⇒माँ – दुर्धरा 

⇒मंत्री – विष्णुगुप्त एवं खल्लाटक।

उपाधि 

⇒यूनानी लेखको के द्वारा अमित्रोकेट्स।

⇒वायु पुराण में भद्रसार और अन्य पुराणों में वारिसार।

⇒जैन ग्रथ में – सिंहसेन

⇒बौद्ध ग्रंथ दिव्यावदान के अनुसार बिंदुसार ने अपने सबसे बड़े पुत्र सुमन को तक्षशिला का तथा अशोक को उज्जैन का प्रांत अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।

⇒दिव्यावदान – दक्षिण में हुए विद्रोह को सुमन द्वारा ना दबा पाने पर वहाँ शांति स्थापना के लिए अशोक को भेजा गया।

⇒बिंदुसार के समय में भी भारत का पश्चिमी यूनानी राज्यों के साथ मैत्री  संबंध बना रहा।

⇒स्ट्रेबो के अनुसार सीरिया के राजा एण्टियोकस ने डायमेकस नामक राजदूत बिंदुसार की राजसभा में भेजा था।

⇒यह मेगस्थनीज़ के स्थान पर भारत आया था।

⇒प्लिनी के अनुसार – टॉलेमी द्वितीय फिलेडेल्फस ने डायोनिसस को बिंदुसार के दरबार में नियुक्त किया था।

⇒दिव्यावदान के अनुसार बिंदुसार की राजसभा में आजीवक संप्रदाय का एक ज्योतिष रहता था।

⇒पुराणों के अनुसार बिंदुसार राज्यकाल 25 वर्ष था तथा महावंश के अनुसार 27 वर्ष का था।

⇒बिंदुसार ने दो समुद्रों अरब सागर तथा पश्चिम बंगाल की खाड़ी के बीच का क्षेत्र जीत लिया था।

अशोक महान (273 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व)

⇒मां – सुभद्रागी (दिव्यावदान के अनुसार)

⇒अन्य स्रोतों के अनुसार – जनपद कल्याणी

⇒दक्षिणी परम्पराओ के अनुसार – धर्मा

⇒पत्नी –  देवी (विदिशा के श्रेष्ठि की पुत्री)

⇒इसी से महेंद्र तथा संघमित्रा जन्मे ।यह अशोक की प्रथम पत्नी थी।

⇒इलाहाबाद अभिलेख या रानी अभिलेख जिसमें अशोक की एकमात्र रानी कारूवाकी का उल्लेख है यह तीवर की मां थी।

⇒असन्धिमित्रा – अशोक की पटरानी।

⇒सिहली अनुश्रुतियों एवं  दक्षिणी बौद्ध परंपराओं के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या कर राज सिहासन प्राप्त किया था।

⇒उत्तरी बौद्ध परंपराओं के अनुसार – उत्तराधिकार का युद्ध केवल अशोक तथा उसके अग्रज सुसीम के बीच हुआ।

⇒राज्याभिषेक 269 ई.पू.- राज्यारोहण के चार वर्ष पश्चात।

⇒राज्यारोहण के पूर्व अशोक पूजन तथा तक्षशिला का प्रांतीय शासक था।

उपाधि

⇒बौद्ध ग्रंथ के अनुसार बौद्ध होने से पूर्व अशोक को चण्ड अशोक कहते हैं।

⇒देवनाम प्रिय (देवताओं का प्रिय) तथा पियदसि (प्रियदर्शी)

शिलालेख

⇒शिलाओ तथा चट्टानों पर उत्कीर्ण राज्यादेश को कहा जाता है।

स्तंभों पर उत्कीर्ण शासनादेश स्तंभ लेख कहलाते हैं।

⇒अशोक के शिलालेख भारत, नेपाल, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में अब तक 47 स्थानों पर पाए गए हैं।

शासन आदेशों को शीला ऊपर खुदवाने वाला प्रथम भारतीय शासक अशोक था।

⇒अशोक के शिलालेख का प्रथम बार पता पादरी टिफेनथेलर ने 1750 ई. में लगाया।

⇒टिफेनथेलर ने दिल्ली – मेरठ स्तम्भ के टुकड़े देखे।

⇒इतिहासकार टर्नर ने सर्वप्रथम साहित्य के अशोक का समीकरण अभिलेखों के देवानांप्रिय से किया ।

कलिंग युद्ध 

⇒361 ई. पू. में अशोक के राज्याभिषेक के आठवें वर्ष।

⇒कलिंग युद्ध का वर्णन अशोक के 13 वें वृहत शिलालेख में हुआ।

परिणाम

⇒कलिंग मौर्य साम्राज्य का अंग बना लिया गया।

⇒युद्ध की नृशंसता देखकर अशोक ने आक्रमण की नीति को त्यागकर ,जन हृदय जीतने की कोशिश की।

⇒उसने पैतृक शैव धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया।

⇒तोसली या धौली को विजित कलिंग की राजधानी बनाया।

⇒कलिंग के दो प्रशासनिक केंद्र बनाए -1. उत्तरी केंद्र – तोसली या धौली 2. दक्षिण केंद्र – जौगढ़

⇒डॉ. हेमचन्द राय चौधरी के अनुसार -‘मगध सम्राट बनने के पश्चात कलिंग युद्ध अशोक का प्रथम तथा अन्तिम युद्ध था।’

अशोक का धम्म

⇒सिहंली किवदंतियों के अनुसार अशोक के भतीजे निग्रोध ने उसे बोद्ध मत में दीक्षित किया ।

⇒उपगुप्त की पहचान मोग्गलिपुत्त तिस्स से की गयी है।इसी के प्रभाव से अशोक पूर्ण बौद्ध बना।

मौर्य काल में कला तथा स्थापत्य 

⇒मौर्य-काल से  पहले स्थापत्य के क्षेत्र  में निर्माण हेतु लकड़ी, मिट्टी की ईटो व घास-फूस आदि का प्रयोग किया जाता था।

मौर्य-काल में ही सर्वप्रथम कला के क्षेत्र में “पत्थर (पाषाण) का प्रयोग” किया गया।

⇒मौर्य युगीन  कला के दो  भाग  (श्रेणियां)

(अ) राजकीय (दरबारी) कला

(ब) लोककला

(अ) दरबारी अथवा राजकीय कला :-(दरबारी आश्रित कलाकारों द्वारा निर्माण)

इसमें शासकों द्वारा निर्मित स्मारक मिलते है।

जैसे- राजप्रासाद, स्तम्भ, गुहा विहार, स्तूप इत्यादि।

(ब) लोक-कला :- (स्वतंत्र कलाकारों द्वारा निर्माण) 

लोक रूचि की वस्तुओं का निर्माण । जैसेः-

यक्ष-यक्षिणी की मूर्तियाँ, मिट्टी की मूर्तियाँ आदि।

दरबारी अथवा राजकीय कला :-

पाटलिपुत्र और चन्द्रगुप्त मौर्य का राजप्रसाद  (महल) –

स्ट्रेबो  के  अनुसार- 

पोलिब्रोथा (पाटलिपुत्र) गंगा और सोन नदियाँ के संगम पर स्थित था।

⇒लंबाई 80 स्टेडिया व चौड़ाई 18 स्टेडिया थी।

⇒आकार-समानांतर चतुर्भुज के समान था।

⇒चारों ओर लकड़ी की दीवार बनी हुई थी।

⇒चारदीवारी में कुल 64 द्वार तथा 570 बुर्ज थे।

सुसा तथा एकबटना के राजप्रासाद भी चन्द्रगुप्त मौर्य के राजप्रासाद (पाटलिपुत्र) की सुन्दरता की बराबरी नही कर सकते।(स्ट्रेबों व ईलियन)

अशोक के राजप्रासाद 

अशोक के राजप्रासाद के अवशेष स्पूनर महोदय को पटना के समीप कुम्रहार से मिले थे।

कुम्रहार राजप्रासाद में एक बड़ा हाल था जिसकी छत 80 विशाल स्तंभों पर टिकी थी।

स्पूनर ने इस कक्ष को  चन्द्रगुप्त द्वारा निर्मित माना है परन्तु अल्तेकर और मिश्र के अनुसार यह अशोक का राजप्रासाद कक्ष था।

कुम्रहार (पाटलिपुत्र) राजप्रासाद को चीनी यात्री फाह्यान’ ने देवताओ द्वारा निर्मित’ बताया है।

⇒पाषाण स्तम्भ सर्वप्रथम ’अशोक’ के समय बनाए गये ।

स्तम्भ :-

मौर्य-युगीन वास्तुकला के सर्वोत्तम उदाहरण स्तम्भ माने जाते है।

अशोक ने अनेक स्तम्भों का निर्माण करवाया था। इन स्तम्भों को दो श्रेणियां में विभाजित किया जाता है।

(अ) लेखयुक्त स्तम्भ

(ब) लेख विहीन स्तम्भ

अशोक के लेखयुक्त स्तम्भ :-

1. प्रयाग स्तम्भ :- अकबर कौशाम्बी से दिल्ली लाया।

2. दिल्ली टोपरा स्तम्भः-इसे फिरोजशाह तुगलक टोपरा से दिल्ली लाया था।

3. दिल्ली मेरठ स्तम्भः– इसे भी फिरोजशाह तुगलक मेरठ से  दिल्ली लाया था।

4. रूम्मिन्देई स्तम्भ

5. निग्लिवा स्तम्भ

नोटः- ये दोनों (4 एवं5) स्तम्भ नेपाल की तराई मे स्थित हैं।

6. सारनाथ स्तम्भ

7. साँची स्तम्भ

8. रामपुरवा स्तम्भ (सिंहशीष)

9. लौरिया-अरराज

10. लौरिया नन्दनगढ़ स्तम्भ

नोटः-ये तीनों (8, 9 एवं 10) स्तम्भ बिहार के चम्पारन जिले में स्थित है।

अशोक के लेख विहीन स्तम्भ :-

1. कौशाम्बी स्तम्भ (यह शीर्ष विहीन स्तम्भ है)

2. रामपुरवा स्तम्भ (इसके शीर्ष पर वृषभ है)

3. संकिसा स्तम्भ (इसके शीर्ष पर हाथी है)

अशोक स्तम्भों की प्रमुख विषेषताएँः- 

1. ये एकाश्मक  हैं अर्थात् एक ही पत्थर से तराशकर  बनाये गये हैं।

2. ये बिना किसी आधार (चौकी या चबुतरा) के स्वतंत्र रूप से  भूमि पर टिकाये गए हैं

3. इन स्तम्भों के शीर्ष पर पशुओं की आकृतियां हैं।

4. ये स्तम्भ सपाट हैं और अलंकारहीन है ।

5. नीचे से ऊपर की ओर क्रमशः पतले हैं।

6. स्तम्भ शीर्षों पर लगी पशु मूर्तियों का प्रतीकात्मक अर्थ है।

 

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